Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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यद्यपि निराला छायावाद के प्रवर्तकों में परिगणित होते हैं, किन्तु निराला जैसे अनेक क्षितिजों और दिगंत भूमिकाओं के कवि को किसी वाद की सीमा में बाँधना कठिन है। निराला का युग प्रमुखतः प्रगीत युग रहा है और इस युग का काव्योत्कर्ष वस्तुतः प्रगीत काव्य का ही उत्कर्ष कहा जाएगा। निराला वस्तुमुखी और चित्रात्मक विशेषताओं के प्रगीत कवि हैं। प्रगीत पद्धति में नाद सौन्दर्य की ओर अधिक ध्यान रहने से संगीत तत्व का अधिक समावेश देखा गया है। संगीत को काव्य के और काव्य को संगीत के अधिक निकट लाने का सबसे अधिक प्रयास निराला जी ने किया है।
निराला ने अपने साहित्य की रचना करते समय शायद यह सोचकर कि उनका साहित्य स्वयं निराला बनकर युवा पीढ़ी की परम्परा से, रूढियों से, सामाजिक विषमताओं से, संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित करता रहे, अपने पात्रों को भी अपने विद्रोही, अक्खड़ मस्तमौला और तेजस्वी स्वरूप में प्रस्तुत किया है। आज भी महामानव व विद्रोही निराला अपने पात्रों के माध्यम से कह उठता है:
"तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा पत्थर से निकले फिर
गंगा जल धारा।।" सचमुच यह निराला का आत्म-विश्वास बोल रहा है, पत्थर से गंगा-धारा निकालने का उनका यही आत्म-विश्वास व अक्खडपन ही तो उन्हें इस सीढ़ी पर लाकर खड़ा कर देता है, जहाँ उनका दीन-हीन किसान भी कान्ति का आह्वान करता है
"जग के महामय आँगन में बरसो विप्लव के नवजलधर"।'
1. बादल-राग : निराला रचनावली (1) : पृष्ठ-129
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