Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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__ 'अणिमा' की कुछेक कविताएँ ठेठ गद्यात्मक शब्दावली और संरचना की दृष्टि से सफल बन पड़ी हैं। 'यह है बाजार' कविता मे गॉव की रखैल प्रवृत्ति पर सूक्ष्म और सीधा व्यंग्य किया गया है। वर्णन की नितान्त रूखी समझे जाने वाली किन्तु प्रस्तुत प्रसंग में बेमिसाल लय-शून्य भाषा में। 'लगेगी न बार' 'बैठाली' व्याही जैसे गॅवार शब्दों का बेलाग प्रयोग देखने योग्य है
"सुखिया बोली अपनी सास को सुनाकर यों, मास के पैसे शायद अब तक भी बाकी हों, अच्छा है अगर करें पूरी धेली ज्यों त्यों। टूटा रूपया खर्च होते लगेगी न बार ।" दुखिया बोला मन में, "ठहर अरी सास की, मास खिलाता हूँ मैं तुझे अभी रास की चोरी है याद मुझे, बात कौन घास की
बैठाली क्या जाने व्याही का प्यार।।" 'अणिमा' में प्रयोगवादी ठरे की कविता "चूँकि यहाँ दाना है" अपनी अजीबो-गरीब संरचना के कारण उल्लेखनीय है। इसकी संवेदना कुछ-कुछ अस्पष्ट और पेंचीदी है। तोड़-मरोड़ करने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि इस कविता में आज की पूँजीवादी व्यवस्था पर व्यंगात्मक रीति से तीखा आघात् किया गया है। जिसमें सारे संबंध, सारे किया कलाप, यहाँ तक की आत्मीय माँ-बाप का रिश्ता सब पैसे के आश्रित है। 'दाना' का एहसान है:
"चूँकि यहाँ दाना है इसीलिए दीन है, दीवाना है। लोग हैं महफिल है, नग्में हैं, साज हैं, दिलदार है, और दिल है,
1. 'यह है बाजार' - अणिमा-निराला रचनावली-2, पृष्ठ-92