Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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कलिका राकेन्द्र बिम्बानना लिखा, वहीं 'चोखे' 'चौपदे', 'चुभते-चौपदे' में उनकी भाषा सर्वथा बदल गयी है। इसी प्रकार निराला की भाषा वर्ण-विषयों के अनुसार अपने तेवर और व्यंजना शक्ति को बदलती चलती है। शब्दों के भरपूर और दक्ष उपयोग से कवि ने हिन्दी के अभिजात शब्द-कोश की सवंर्द्धना की है। ‘कुकुरमुत्ता' के माध्यम से कवि ने एकदम साधारण ग्रामीण और कठोर शब्दों में भरा-पूरा आत्म-विश्वासी व्यक्तित्व सिरजा है और इस परंपरित धारणा को निर्मूल कर दिया है कि कविता की रचना के लिए संस्कारशील शब्द ही उपयुक्त होते हैं। यहाँ तो उर्दू शब्दों और एक दम ग्रामीण शब्दों मे ठेठ मुहाविरेदानी की सर्वथा नई क्षमता मुखरित हुई है:
"चाहिए तुझको सदा मेहरून्निशा जो निकाले इत्र, रू, ऐसी दिशा बहाकर ले चले लोगों को, नहीं कोई किनारा जहाँ अपना नहीं कोई भी सहारा" ख्वाब में डूबा चमकता हो सितारा
पेट में डंड पेले हों चूहे, जबाँ पर लफ्ज़ प्यारा।" 'अणिमा'- कवि के जीवन का सन्धि स्थलः- 'कुकुरमुत्ता' के बाद कवि का जो काव्य-संग्रह प्रकाश में आया वो था 'अणिमा' | जो सन् 1943 ई० में युग-मन्दिर उन्नाव से प्रकाशित हुई थी । 'अणिमा' में कवि अपने जीवन की पीड़ा, छल-छद्म, शोषण आदि की प्रवृत्तिों का निदर्शन (नमूना) प्रस्तुत किया है। कविता देखने में सरल हैं, लेकिन गंभीर-गूढ़ता को समेटे हुए हैं। कुछ-एक प्रशस्तियों, श्रद्धांजलियों को छोड़ दें तो 'अणिमा' में अभिव्यक्ति के विभिन्न रूप दृष्टिगोचर होते हैं। संवेदना एवं भाषा दोनों ही स्तरों पर यह-संकलन कवि-जीवन का सन्धि -स्थल है। जिसमें एक ओर 'गीतिका', 'अनामिका' के तत्सम् गीतों की सी मृदु-गीतात्मकता है, दूसरी
1. 'कुकुरमुत्ता'-निराला रचनावली-भाग-2, पृष्ठ-51
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