Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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(1) अंतरंग तत्व। (2) बहिरंग तत्व। (3) विरोधी तत्व। (1) अन्तरंग तत्व:- लौंजाइनस ने अपनी पुस्तक 'आन दि सब्लाइम' में औदात्य के पॉच उद्गम स्रोतों का निर्देश किया है, जिनमें दो जन्मजात या अंतरंग हैं और शेष तीन कलागत। इन पाँचों में प्रथम और सर्वप्रमुख है, महान धारणाओं की क्षमता.... दूसरा है उद्दाम और प्रेरणा-प्रसूत आवेग। औदात्य के ये दो अतएव लगभग जन्मजात होते हैं अर्थात् इन दोनों तत्वों का संबंध आत्मा की गरिमा से है: "इसलिए इस विषय में भी....यथा सम्भव हमें अपनी आत्मा में उदात्त विचारों का पोषण करना चाहिए और उसे भव्य प्रेरणाओं से परिपूरित रखना चाहिए। इसको इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि "औदात्य महान् आत्मा की प्रतिध्वनि है।"
इस प्रकार उदात्त के दो अंतरंग तत्व हैं : उदात्त-विचार और प्रेरणा-प्रसूत आवेग इन दोनों में भी मुख्य है- आवेग। "मैं यह बात पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जो आवेग उन्माद उत्साह के उद्दाम वेग से फूट पड़ता है और इस प्रकार से वक्ता के शब्दों को विक्षेप से परिपूर्ण कर देता है, उसके यथा-स्थान व्यक्त होने से स्वर में जैसा औदात्य आता है, वह अत्यन्त दुर्लभ है।
लौंजाइनस ने केवल प्रेरणा-प्रसूत भव्य-आवेग को ही औदात्य का उद्गम माना है। आवेग के सभी रूप उदात्त नहीं होते और स्वभावतः वे उदात्त- कला की सृष्टि नहीं कर सकते। अतः औदात्य और आवेग को पर्याय मानना भूल होगी। भव्य आवेग से अभिप्राय ऐसे आवेग का है जिससे "हमारी आत्मा जैसे अपने आप ही ऊपर उठकर गर्व से उच्चाकाश में विचरण करने
1. काव्य में उदात्त तत्व (डॉ० नगेन्द्र) पृष्ठ-53-55
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