Book Title: Lonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Author(s): Praveshkumar Sinh
Publisher: Ilahabad University
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(iii) गरिमामय रचना-विधान :- लौंजाइनस ने विस्तार से इन तीनों तत्वों को लेकर अपने विचार प्रगट किए है। समुचित अलंकार-योजना :इस प्रसंग में लेखक ने दो तथ्यों को ग्रहण किया है। (I) अलंकार-विधान का औचित्य । (ii) उदात्त के पोषक अलंकारों का निर्देश।
अपनी मूल धारणा के अनुरूप ही लौंजाइनस अलंकार-विधान में औचित्य को प्राथमिकता देते हैं, उदात्त-शैली के निर्माण मे अलंकारों का प्रयोग तो आवश्यक होता ही है, किन्तु उससे भी अधिक आवश्यक प्रयोग का औचित्य जो स्थान ढंग परिस्थिति और उद्देश्य के ऊपर निर्भर रहता, अर्थात भव्य से भव्य अलंकार भी उसी स्थिति में उदात्त का पोषक हो सकता है जब उसका प्रयोग स्थान परिस्थिति रीति और उद्देश्य के अनुकूल हो। वास्तव में अलंकार प्रयोग की सार्थकता तो तब है जब वह प्रसंग का सहज अंग बनकर आए और इस बात पर भी किसी का ध्यान न जाए कि यह अलंकार है। संक्षेप में लौंजाइनस की "आन दी सब्लाइम” नामक पुस्तक में उदात्त आलम्बन के गुण हैं, जीवन्त आवेग, प्रचुरता, तत्परता जहाँ उपयुक्त हो वहाँ गति तथा ऐसी शक्ति और वेग जिसकी समता करना संभव नहीं।" भाव-पक्षः- उदात्त की अनुभूति के अंतर्तत्व इस प्रकार है:" मन की ऊर्जाः- अर्थात् आत्मा का उत्कर्ष करने वाली प्रबल अनुभूति; लौंजाइनस ने दो प्रकार के आवेगों की ओर संकेत किया है एक उत्साह आदि जिनसे आत्मा का उत्कर्ष होता है और दो भय-शोक आदि हीनतर आवेग जो
आत्मा काअपकर्ष करते हैं। उदात्त की अनुभूति पहली कोटि मे आती है।" जिससे हमारी आत्मा जैसे अपने आप ही ऊपर उठकर गर्व से उच्चाकाश में
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