________________
क्षत्रचूड़ामणिः । (जनपदाः) देशनिवासी (निर्वेदं) उदास और विरक्त पनेको (प्रतिपेदिरे) प्राप्त हुए ? अत्र नीतिः (हि) निश्चयसे (अभिनवा) नई तुरंतको (पीड़ा) पीड़ा (नृणां) मनुष्योंको (प्रायः वैराग्य कारणम्) प्राय: वैराग्यका कारण होती है अर्थात् यह एक नियमसा है कि संसारी लोग नई अच्छी या बुरी वार्तासे शीघ्र ही सुख और दुःखका अनुभवन किया करते हैं ॥ ७१ ।। अधिस्त्रि रागः क्रूरोऽयं राज्यं प्राज्यमसूनपि । तद्वञ्चिता हि मुश्चन्ति किं न मुञ्चन्ति रागिणः॥७२॥
अन्वयार्थः- (अयं) यह (अधिस्त्रिरागःस्त्री विषयक प्रेम वा अनुराग (क्रूरः) बड़ा क्रूर वा कठोर है (तद्वञ्चिता) उसके उगाये हुए मनुष्य (प्राज्यं राज्य) बड़े भारी राज्यको और (असूनपि) प्राणोंको भी (मुञ्चन्ति) छोड़ देते हैं ? सच है (रागिणः) रागी पुरुष (किं न) क्या नहीं (मुच्चन्ति) छोड देते हैं अर्थात् (सर्व मुञ्चन्ति) सबको छोड़ देते हैं ।। ७२ ॥ नारीजघनरन्ध्रस्थविण्मूत्रमयचर्मणा । वराह इव विभक्षी हन्त मूढः सुखायते ॥७३॥
___अन्वयार्थः- (हन्त) खेद है ? (मूढः) मूर्ख जन (नारी जघन रंघस्थ विण्मूत्रमय चर्मणा) स्त्रियोंकी जंघाओंके छिद्रमें स्थित मलमूत्रसे भरे हुए चमड़ेसे (विड्भक्षी) विष्टा खानेवाले (वराह इव) शूकरकी तरह (सुखायते) सुखी होते हैं अर्थात् विषयासक्त मूर्ख जन निन्दनीक विषय भोगादिकमें भी आनन्द करते हैं ॥ ७३