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प्रथमोलम्बः ।
प्रेत वेश्मनि) उस नगरके बाहर श्मशानभूमि में पातयामास ) डाल दिया || ८४ ॥ जीवानां पापवैचित्र श्रुतवन्तः श्रुतौ पुरा । पश्येयुरधुनेतीव श्रीकल्पाभूदकिंचना ॥ ८५ ॥
अन्वयार्थ : – (पुरा) पूर्व काल में (श्रुतौ ) शास्त्रों में (जीवानां पापवैचित्री) जीवोंके पापोंकी विचित्रता ( श्रुतवन्तः) सुननेवाले पुरुष (अधुना) इस समय (पश्येयुः) देख लें कि ( इतीव हेतोः) इसी हेतुसे मानो ( श्री कल्पा ) लक्ष्मी के समान विजया रानी इस समय (अकिंचना अभूत्) जन धनसे निर्धन शून्य हो गई है ॥ ८५ ॥ क्षणनश्वरमभ्वैर्यमित्यर्थ सर्वथा जनः । निरणैषीदिमां दृष्ट्वा दष्टान्ते हि स्फुटा मतिः ॥ ८६ ॥ अन्वयार्थः - ( जनः ) मनुष्य ( ऐश्वर्यम् क्षणनश्वरम् ) राज सम्पति क्षण में नाश हो जाती है ( इत्यर्थ) इस अर्थको (इमां दृष्ट्वा ) रानीको देखकर (सर्वथा) सर्वथा (निर्णेषीत् ) निर्णय कर लें ? क्योंक (दृष्टान्ते) दृष्टान्त मिलने पर ( मतिः) बुद्धि (स्फुटा भवेत् ) विशद व निर्मल हो जाती है ॥ ८६ ॥ पूर्वान्हे पूजिता राज्ञी राज्ञा सैवापराहके । परेतभूशरण्याभूत्पापाद्विभ्यतु पण्डिताः ॥ ८७ ॥
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अन्वयार्थः -- (या राज्ञी ) जो रानी (पूर्वान्हे) प्रातः काल ( राज्ञा ) राजासे (पूजिता) पूजित थी ( सा एव) उस ही रानीने ( अपरान्ह के) मध्यान्ह काल में ( परेतभूशरण्या भूतू ) मसान भूमिका शरण लिया अत्र नीतिः अतएव (पापाद् ) पापसे (पण्डित लोग डरें ।