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क्षत्रचूड़ामणिः। अन्वयार्थ? --- ( अथ ) इसके अनंतर ( एकदा ) एक दिन (प्रसन्नधी:) प्रसन्नचित्त ( सूरिः ) गुरुने (निन प्रान्तं आवसन्तं ) अपने पास रहनेवाले (अन्तेवासिन) शिष्यसे (एकान्ते) एकान्तमें (अचीकथत् ) कहा ॥ ५ ॥ श्रुतशालिन्महाभाग श्रूयतामिह कस्यचित् । चरितं चरितार्थेन यदत्यर्थ दयावहम् ॥ ६ ॥
___ अन्वयार्थ---(श्रुतशालिन्महाभाग) हे शास्त्रज्ञानसे शोभित उत्तम भाग्यवाले ! (इह) इस लोकमें प्रसिद्ध (कस्यचित् ) किसीके (चरित) चरित्रको ( श्रूयतां ) सुनो ! ( यत् चरितं ) जो चरित्र (चरितार्थन) सुननेसे (अत्यर्थ) अत्यंत ( दयावहम् ) दया करनेवाला है ॥ ६ ॥ विद्याधरास्पदे लोके लोकपालाह्वयान्वितः । लोकं वैपालयन्भूपः कोऽपि कालमजीगमत् ॥७॥
___ अन्वयार्थः---( विद्याधरास्पदेलोके ) विद्याधरोंका है स्थान जिसमें ऐसे लोकमें (ल कपालाह्वयान्वितः) लोकपाल है नाम जिसका ऐसा (कोऽपि भूपः) कोई राजा र लोकं वैपालयन् ) प्रजाका पालन करता हुआ (कालं अनीगमत) कालको विताता भया ॥ ७ ॥ क्षणक्षीणत्वमैश्वर्ये क्षीबाणामिव बोधयत् । क्षेपीयः पश्यतां नश्यदभ्रमैक्षिष्ट सोऽधिराट् ॥८॥
अवधार्थ-एक दिन (सः अधिराट् ) उस राजाने (क्षीवाणां) धनोन्मत्त पुरुषोंको (ऐश्वर्य) ऐश्वर्यमें (क्षणक्षीणत्वं) क्षण मात्रमें नष्ट हो जाता है ? (इति) ऐसा (बोधयत् ) बोध करानेवालेके सदृश