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क्षत्रचूड़ामणिः । (स्त्रीणां एव दुर्मतिः) स्त्रियोंकी बुद्धि खोटी होती है____ अर्थात् श्रीदत्त सेठने इसलिये अपनी स्त्रीसे कहा कि स्त्रियोंके दुष्ट स्वभावसे यह मेरी स्त्री यह न समझ ले कि यह इसकी दूसरी पत्नी है ॥ ४० ॥ वीणाविजयिनो योग्या भोग्या पुत्री ममेति सः । कटके घोषयामास राजानुमतिपूर्वकम् ॥ ४१ ॥ ____अन्वयार्थ:-किर (सः) उस श्रीदत्त सेठने (राजानुमति पूर्वकम्) राजाकी आज्ञापूर्वक ( कटके ) राज्यभरमें “ योग्या) सर्वापमा योग्य (मम पुत्री) मेरो पुत्री (वीणा विजयिनः भोग्या) वीणा बनाने में जीतनेवालेकी भोग्य है अर्थात् जो वीणा बनाने में इसे जीत लेगा वही इसका पति होगा" (इति घोषयामास ) इस प्रकार घोषणा कराई ॥ ४१ ॥ अकुतोभीतिता भूमेर्भूपानामाज्ञयान्यथा । अस्तामन्यत्सुवृत्तानां वृत्तं च न हि सुस्थितम् ॥४२॥ _____ अन्वयार्थः- क्योंकि (भूपानां आज्ञया) राजाओंकी आज्ञासे (भूमेः) प्रनाके रहनेवाले मनुष्योंको (अकुतोभीतिता) किसीसे भी भय नहीं होता (अन्यथा) इसके विपरीत अर्थात् राजाकी आज्ञाके विना (अन्यदूरे आस्तां) और तो दूर ही रहे (सुवृत्तानां) सच्चरित्र पुरुषोंका (वृत्तंच) सदाचार भी (हि न सुस्थितम) निश्चयसे स्थिर नहीं रह सकता ॥ ४२॥ .. ... वीणामण्डपमासेदुस्तावता धरणीभुजः। स्त्रीरागंणात्र के नाम जगत्यांन प्रतारिताः॥४३॥