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प्रथम खण्ड
१ - युग और परिस्थितियां
प्रथम अध्याय पृष्ठभूमि
शताब्दियों तक समान रूप से व्याप्त रहने वाली संस्कृति का इतिहास प्रायः लिपिबद्ध किया जाता रहा है। की समय-समय पर श्रावृत्ति होती रही है । सभ्यता तथा संस्कृति को मुखरित करने वाला साहित्य उसका प्रमुख माध्यम रहा है । साहित्य में ऐसी घटनाओं का भी सजीव वर्णन उपलब्ध होता है, युग धोर परिस्थितियों का चित्रण मिलता है, जिनका उल्लेख इतिहास का विषय होने पर भी आज तक इतिहास के परिवेश के अन्तर्गत स्थान प्राप्त नहीं कर सका है। इसलिए हम केवल यही समझते रहे हैं कि इतिहास की पुस्तकों में जिनका विवरण नहीं मिलता, बे इतिहास की दृष्टि से उनकी चर्चा करना भी क्या प्रयोजनीय है ?
इतिहास से परे हैं ।
मानवीय सभ्यता तथा इतिहास की घटनाओं
जो प्रायः ऐतिहासिकों की
युग-युगों में उपलब्ध होने वाले सभी प्रालेखों के आधार पर व्यापक भार तीय संस्कृति का श्रालेखन नहीं हो सका है । इसीलिये वर्तमान में भी नित नवीन अनुसंधानों के द्वारा हमें समीचीन तथ्य उपलब्ध होते हैं, दृष्टि से बोल रहे हैं । इतिहास में जिन तथ्यों का अंकन नहीं हो पाया है, उसके मुख्य दो कारण प्रतीत होते हैं । प्रथम तो इतिहासविदों के समक्ष सभी प्रकार की सामग्री का उपलब्ध न होना और दूसरे उनकी अपनी दृष्टि में मान्यता विशेष का होना ।
अपनी रुचि तथा दृष्टि विशेष के कारण सभी प्रकार के लेखक युग तथा परिस्थितियों के अनुसार साहित्य-सर्जन करते रहे हैं। राजनीतिक तथा सांस्कृतिक संक्रमण के युग में उनमें जो परिवर्तन लक्षित होते रहे हैं, उनका स्पष्ट प्रतिबिम्ब साहित्य में भी चित्रित होता रहा है । किन्तु वास्तविकता यह है कि सभी रचनात्रों में इस प्रकार की प्रवृत्ति लक्षित नहीं होती । फिर भी साहित्यिक रचनाओं में बहुविध चित्रण में उनका समावेश यथा स्थान पाया जाता है । "देश और काल से साहित्य का अविछिन सम्बन्ध है और प्रत्येक देश के विभिन्न कालों को सामाजिक,