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जीवन परिचय
पूर्वज आमेर में रहते थे, जो जयपुर के पूर्व 'हाड़ राज्य ली राजधानी थी। वहां से थे सांगानेर जा बसे, परन्तु जीवन-निर्वाह में कठिनाई का अनुभव होने से वे जयपुर जाकर रहने लगे, वहीं संवत् १८२० के आसपास उनका जन्म हुआ। मृत्य तिथि :
कविवर बुधजन की मृत्यु-तिथि का भी कहीं कोई उल्लेख प्राप्त नहीं हुआ। उनकी अंतिम रचनाएं वर्षमान पुराण सूचनिका एवं योगसार भाषा है, जिनकी रचना वि. सं. १८६५ में हुई । अत: यह निश्चित है कि कवि की मृत्यु वि. सं. १८९५ के पश्चात् ही हुई होगी। साहित्य सेवा:
। उनका जीवन, चिन्तन और साहित्य-साधना के लिए समर्पित जीवन था। वे सभी प्रकार के भौतिक द्वन्द्रों से परे थे । सदैव प्रात्म-साधना व साहित्य-साधना में निरत रहते थे। राजनैतिक व सामाजिक विवादों से परे रहकर श्रावक धर्म का पालन करते थे। उनका कार्यक्षेत्र व अध्ययन क्षेत्र जयपुर था 1
"साहित्य-प्रेम उन्हें बचपन से ही था। वे बचपन से ही कविताएं किया करते। उन्होंने अपने उस साहिगि अगोजीन के अन्तिम क्षणों तक निभाया । वे सदा साहित्य-चिंतन में लीन रहा करते थे, पर अाज हमें उनके जीवन की रूपरेखा भली-भांति ज्ञात नहीं है ।"
करियर बुधजन प्रध्यात्म-बोली के सदस्य थे। शीली गोष्ठी को कहते हैं, जो हिन्दी जन साहित्य के निर्माण केन्द्र थे । मागरा, अजमेर, ग्वालियर, जयपुर, दिल्ली मादि केन्द्रों पर १८वौं और १६वीं पाताब्दी में हिन्दी-जैन-साहित्य के प्रमुख ग्रन्थों का प्रणयन उक्त केन्द्रों पर होता रहा है।
"बुधजन कवि के जीवन के २०० वर्ष पूर्व प्रागरे में एक गोष्ठी थी, जिसमें निरन्तर आध्यात्मिक चर्चाएं होती थीं। कविवर बनारसीदास जी उसके प्रमुख सदस्य थे। इस गोष्ठी के माध्यम से ही उन्होंने शिक्षा पाई तथा कवि व पंडित बने ।" इस मण्डली के अन्य प्रमुख विद्वान थे--"पं. रूपचन्द पांडेय, जगजीवन, धर्मदास, कुवरपाल, कवि सालिवाहन, नंदकवि, हीरानन्द, बुलाकीदास, भैया भगवतीदास, जगतराम, भूधरदास, नथमल बिलाला आदि 13
१. कवि बुधजन : सुषजन सतसई, प्रशस्ति पृष्ठ ५, संपादक नाथूरामग्री प्रेमी
हि. सा. का. सं. इति, हिन्दी प्रन्ध रत्नाकर कार्यालय बम्बई प्रकाशन | २. जैन डॉ. प्रेमसागर : हिन्वी जैन भक्तिकाव्य मोर कवि पृ. १७, प्र. संस्करण
१९१४ भारतीय ज्ञान पोठ काशी प्रकाशन । ३. देखिये हीरानम्म कुत समवसरण विधान ।