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भाक पक्षीय विश्लेषण
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प्रभावित होती है । आपके गुणों का कोई पार नहीं पा सकता । मैं केवल प्रपने मुख से आपका गुणानुवाद गाता हुम्रा आपके चरणों में मस्तक झुकाकर प्रार्थना करता हूँ कि श्राप मेरे (बुधजन के ) संपूर्ण दोषों को दूर करें 11
इसके अतिरिक्त पूर्ववर्ती प्राचार्यों एवं कवियों की भांति मुषजन ने भी बारह भावनाओं का सुन्दर वर्णन किया है । बारह भावनाओं के वर्णन की जैन साहित्य में एक लम्बी परंपरा प्राप्त होती है। प्रस्तुत प्रकरण में बारह भावनाओं के रचयिता आचार्यों एवं कवियों के नाम मात्र दे रहा हूँ । उन विद्वानों ने विभिन्न शताब्दियों में विभिन्न भाषाओं में इस प्रकार को सरल रचनाएं की है :
सर्वप्रथम जंनाचार्य कुंदकुद ने प्राकृत भाषा में 'बारस प्रणुवेक्खा' नाम से रचना की थी उनके पश्चात् स्वामी कार्तिकेय, जल्हासिंह रइलू, मट्टारक सकल कौति, पं. योगदेव, भट्टारक गुणचन्द्र दीपचन्व शाह, बुषजन, मंगत राय, पं० लक्ष्मीचन्द, पं० ब्रह्म साधारण भूधरदास, जगसी, हेमराज, जयचन्द, दीपचन्द, दौलतराम, मैया भगबतीदास, शिवलाल, गिरधर शर्मा, ब० चुन्नीलाल देसाई, युगलजी कोटा, नथमल बिलाला क्षु० मनोहर बरप ने नसुखदास, डॉ० ज्योतिप्रसाद बारेलाल आदि ने बारह भावनाएं लिखीं 1
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कविवर बुधजन ने 12 भावनाओं में सांसारिक जीवन की प्रसारता को सरसता के साथ कहा है। इस संसार में राजा और रंक सबको मरना है। मरने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता। लोक में जन्म, जरा और मरण से प्राक्रान्त जीव की शरण स्थिति का विचार करना अशरण भावना है। संसार के स्वरूप और उसके दुःखों का विचार करना संसार अनुप्रेक्षा है । म्रात्मा प्रकेला जन्मता है और अकेला मरता है तथा अकेला ही अपने कर्मफल का अनुभव करता है । कोई किसी के सुखदुःख में साझी नहीं हो सकता । इस प्रकार चिंतन करना एकत्व भावना है। जीव का शरीर आदि से प्रथक् चितन करना अन्यत्व भावना है। शरीर की अपरिहार्य शुचिता का विचार करते हुए उससे विरक्त होना अशुचि भावना है। कर्मों के श्राश्रव की प्रक्रिया का चिंतन करता और उसे श्रनन्त संसार बंध का कारण समझना आश्रव भावना है । संघर के स्वरूप का चिंतन करना संवर अनुप्रेक्षा है। कर्म की निर्जरा श्रौर उसके कारणों के सम्बन्ध में विचार करना निर्जरा भावना है। लोक के स्वभाव और आकार आदि का चिंतन करना लोक भावना है। सम्यक् दर्शन,
१. तुम परम उबारा हो गुन धारा, पाराबारा पारकरो । सुखतें गुनगाऊ, सोस नमाऊ, 'बुधजन' के सब दोष हरो ।। कवि बुधजनः सरस्वती पूजा, शास्त्र भंडार दि० जैन मंदिर, पाटोदी, लिखित प्रति
जयपुर, हस्त