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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
राजस्थानी, ब्रजभाषा प्रभृति भारत की समस्त प्रादेशिक भाषानों में जैनाचार्य और बैन कवियों ने साहित्य का सृजन किया । सम्पग जैन साहित्य अभी तक प्रकाश में नहीं पाया है। जिसने ग्य प्रकाश में आये हैं, उनसे कहीं अधिक संख्या में जैन भाण्डागारों में अद्यावधि प्रप्रकाशित दशा में हैं।
___ हिन्दी जन साहित्य के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि 'दि जैन साहित्य में हिन्दी प्रन्थों की संख्या भी बहुत अधिक है। विगत तीन सौ वर्षों में अधिकांस अन्य हिन्दी में ही रचे गये हैं। जैन-श्रावक के लिये न्याध्याय करना मावश्यक है । अतः जन साधारण की भाषा में जिनवाणी को निबद्ध करने की चेष्टा प्रारम्भ से ही होती पाई है। इसी से हिन्दी जन साहित्य में गवग्रम्प बहुतायत से पाये जाते हैं। सोलहती द र दिन-प्र जन साहित्य में उपलब्ध हैं और इसीलिए हिन्दी भाषा के क्रमिक विकास का प्रध्यमन करने वालों के लिये ये बड़े काम के हैं।।
अालोच्य काल में संस्कृत, और अपभ्रंश भाषा के ग्रंथों का हिन्दी गद्य में अनुवाद हुमा । अनुवाद का यह कार्य सर्व प्रथम जयपुर के विद्वानों ने बढारी भाषा में प्रारम्भ किया था । माज भी उनके अनुवाद उसी रूप में पाये जाते हैं। जैन कवियों ने केवल अनुवाद ही नहीं किये, किन्तु स्वतन्त्र रूप से भी हिन्दी और पद्य दोनों में रचनाएं की। गद्य साहित्य में पंडित प्रवरमल का 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' पं० दौलतराम की पद्मपुराण की बचानका प्रादि प्रसिद्ध ग्रंथ है। पद्य-साहित्य में पं० दौलतराम छह डाला, कविवर बुधजन की छहढाला व बुधजन सतसई, मादि जैन साहित्य की प्रमूल्य-निधि है। इनके अतिरिक्त पं० सदासुख, घानत राय, मंया भगवतीदास, पं० जयचन्द छाबड़ा, भूधरदास प्रादि विद्वानों ने अपने समय की भाषा में गा एवं पद्य अथवा दोनों में पर्याप्त रचनाएं की।
'बुधजन साहित्य में यों तो सभी रस यथास्थान अभिव्यजित हुए हैं, पर मुख्यता शान्त-रस की है । कवि की मूल भावना अध्यात्म-प्रधान है। वह संसार से बिरक्ति भौर मुक्ति से मनुरक्ति की प्रेरणा देती है। शान्त रस का स्थायी भाव निवेद है। यही कारण है कि प्रत्येक काव्य का प्रन्स शान्त रसात्मक ही है । शुगार रस सर्वथा नहीं है, ऐसी बात नहीं है' 12
१. पं० कैलाशचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री : जैन धर्म, पृ० सं० २५६, चतुर्म संस्करण,
१९६६, भा० वि० जन संघ, धौरासी, मधुरा।। २. डॉ० नरेन्द्र भानावत : 'जिनवारणी' पत्रिका, वर्ष ३२, मक ४-७, जयपुर ।