Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व कोढ़ मांस वृत जुरविष, सूल हिदल यो धार । द्रग रोगी मथुन तजी, नवी धान प्रतिसार ।। ६७८ | अनदाता साता विपत, हितदाता गुरुजान । श्राप पिता फुनि धायपति, पच पिता पहिचान ।।२७६।। गुररानी नृपकी तिया, बहुरि मित्रकी जोय । पतिनी-मा निजमातजुत, मात पांच विधि होय ।२८०।। धसन छेद ताड़न तपन, सुबरनकी पहिचान । दयासील श्रू त तप गुननि, जान्या जात सुजान ।।२१॥ जम्प होम पूजन क्रिया, वेदत्तत्ववद्धान । करन रनमें नि, दुज पुरीत गणवान ।।२८२।। भली बुरी चितमें बसस, निरखत ले उर धार । सोमवदन वक्ता चतुर दुत स्वामिहितकार ॥२३॥ याहीत सुकुलीनता, भूप करें अधिकार । प्रावि मध्य अवसानमें, करते नाहिं विकार ॥२४॥ दुष्ट तियाका पोषणा, भरसकों समझाय । वरीत कारज पर, कौन नाहि दुःख पाय ।।२८५।। दारिदमै दुरविसनम, दुरभित फूनि रिपुघात । राजद्वार समसानमैं, साथ रहै सौ नात ॥२६॥ दारिदमै दुरविसनमें, दुरभिख फुनि रिपुवात । राजद्वार समसानमै, साथ रहै सो भ्रात ।।२७।। सपं दुष्ट जन दो बुरं, तामै दुष्ट बिसेख । दुष्ट जतनका लेख नहिं, सर्प जतनका लेख ।।२८८।। नाहीं घन भूषन वसन, पंडित जदपि कुरुप । सुधर सभामै यों लसैं, जैसे राजत भूप ।।२८६।। स्नान दान तीरथ किये, केवल पुन्य उपाय । एक पिताकी को भक्तित, तीन वर्ग मिलि जाय ।।२६०।। जो कुदेव को पुजिकै, चाहे शुभ का मेल । सौ बालूकों पैलिक, कादमा पाहै तेल ।।२९१ ।। धिक विधवा भूषन सजै वृद्ध रसिक धिक होय । धिक् जोगी भोगी रहै, सुत धिक पड़े न काय ।। २६२।। नारी धनि जो सीलजुत, पति धनि रति निजनार । नीति निपुन नुपति पनि, संपत्ति धनि दातार ।।२६३।।

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