Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व त्यागि बुद्धि परजायकू लसर्व सम भाय राग दोष सतखिन टरपो, राचे सहज सुभाय ।।२६॥ मो ममता बमना मया, समता प्रातमराम । ममर प्रजन्मा होय सिव, जाय लहो विसराम ॥२७॥ हेत प्रीति सबसौं तज्या, मगन निजातप माहि । रोग सोग अब क्यों बने, खाना पीना नाहि ॥२८॥ जागि रहे निज ध्यान में, धरि धीरज बलवान । मार्व किमि निद्रा जरा, निरसेदक भगवान ॥२६|| जातीवत प्रषिक बल, सुधिर सूखी निज माहि । वस्तु चराचर लखि लई, भय विसमे यों नादि !|३०|| तत्वारथसरधान करि, दीना मोह विनास । मान हान कीना प्रगट, केवलज्ञान प्रकास ॥३१॥ अतुल सक्ति परगट भई, राजत है स्वयमेव । स्वेद खेद बिन थिर भये, सब देवन के देव ॥३२॥ परिपूरम हो सब तरह, करना रह्मा न फाज । भारत चिन्ता ते रहित, राजत हो महाराज ॥३३॥ वीर्य पनंता परि रहे, सुख मनंत परमान । दरस अनंत प्रमान जुत, मया अनंताशान ॥३४॥ प्रजर अमर प्रक्षय अनंत, अपरस भवरन वान । बाह्त थके सुरगुर गुनी, मोमन में किम जायं ॥३५॥ कहत थके सुरगुर गुनी, मोमन में किम मांय । ये उर में जितने भरे, तितने कहै न जाय ॥३६॥ प्ररज गरज की करत हूं, तारन तरन सुनाथ । भव सागर में दुख सन्तू, तारो गह करि हाथ ॥३५॥ बीती जिती न कहि सकू, सब भासत है तोय । याही ते विनती करू, फेरि बीते मोय ॥३८॥ बारण बानर बाघ महि, अंजन भील बंडार । जाविधि प्रभु मुखिया किया, सो ही मेरी बार !॥३६।। हूँ अजान जाने बिना, फिर्यो चतुर गति पान । अब घरना सरना लिया, करो कृपा भगवान ॥४०॥ जग जन की विनती सुनो, महो जगतगुरुदेव । जालों हूँ जग में रहू, तोलों पाऊं सेव ।।४।।

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