________________
बुधजन सनसई
नहीं मान कुलपुरुपको, जगत मान थनवान । लखि चडालके विपुल धन, लोक करें सनमान ||१६७।। सम्पति के सन्न ही हितू. विपतामें सब दूर । सूखी सर रखी नमें, से जाते . ।।१६ - ।। तो नारि भूत बंधू जना, दारिद प्रायें साथि । फिरि प्रामद लखि मायके, मिलि हैं चायावांथि ।।१६६।। संपति साथ घटे बड़े, सूरन बुधिबल धीर । ग्रीषम सर सोभा हरे सोहेवरसस नीर ॥१७॥ पटभूषन मोहे सभा, धन दे मोहे नारि । खेती होय दरिद्रतें, सज्जन मो मनुहार ।।१७।। धर्महानि संश्लेश प्रति, सत्र बिनयकारि होय । ऐसा धन नहीं लीजिये, भूखे रहिये सोम ।।१७२।। घौर सिभिल उदमी चपल, मूरन सहित गुमान । दोष धनबके गुन कहै, निलज सरल चितवान ।।१७३।। काम छोरि सो जीमजे, न्हाजे छोरि हजार। लाख छोरिके दान करि, जपिजे बारबार ॥१७४।। गुरु राजा नट भट बनिक, कुटनी गनिका थान । इनले माया मत करो, पं मायाकी खान ।।१७।। खोटी संगति मति करो, पकरो गुरु का हाथ । करो निरन्तर दान पुनि, लखो प्रथिर सब साथ ॥१७६।। नप सेचातें नष्ट दुज, नारि नष्ट बिन सील । गनिका नष्ट सन्तोसते, भूप नष्ट चित्त डील ||१७७।। नाहीं तपसि मुद मन, नही सूर कृतघाव | नहीं सती तिम मद्यपा, फुनिजी गान सुभाव ॥१७॥ सुत को जन्म विवाहफल, अतिथिदान फल गेह । जन्म सुफल गुरु से पठन, तजियो राग सनेह ।।१७६।। जहां तहां तिय माहिये, जहां तहां सुत होय । एकमातसुत भ्रात बहु, मिले न दुरलभ सोय ||१०|| निज भाई निरगुन भली, परगुनजुत किहि काम | मांगन तरु निरफल जदपि, छाया राख पाम ।।१८१॥ निसि में दीपक चन्द्रमा, दिन में दीपक सूर । सर्व लोक दीपक घरम, कुल दीपक सुत सूर ।।१२।।