Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 228
________________ बुधजन सतसई २०५ विवसाईते दूर क्या, को विदेश विद्वान । कहा भार समरथ को, मिष्ट कई को प्रान ।।२३।। बुलकी सोभा सीत, तन सोहै गुनगान । पढ़िवी सोहै सिधि भय, धन सोहै दै दान ।।२३१।। असंतोषि दुम भ्रष्ट है, संतोषी नुप हान । निरला कुलतिय अधम, मनिका सलज न जान ।।२३२॥ कहा कर मूरख चतुर, जो प्रभुह प्रतिकूल । हरि हल हारे जतनकरि, जरे जवू निरमूल ।।२३३।। खती लखिये प्राप्त उठि, मध्यानै लखि येह । अपरान्ह धन निरखिये, नित सुत ललि करि नेह ।।२३४।। विद्या दियं कुशिष्यकों, कर सुगुरु अपकार । लाख लड़ावो भान जा, खोसि लय अधिकार ।।२३।। ना जाने कुलशीलकाके, न कीज बिएमा । तात मात जात दुःखी, ताहि न रखिये पास ।।२३६।। गनिका जोगी भूमिपति, वानर माहि मंजार । इनत राखं मित्रता, परं प्रान उरमार ॥२३७।। पर पनही भ्रष्टु खीर गो पौषधि बीज प्रहार । ज्यों लाभ त्यो लीजिये, कीजे दुख परिहार ||२३८।। नपति निपुन अन्याय मैं, लोमनिपुन परिधान । चाकर चोरी में निपुन, क्यों न प्रजा की हान ।।२३६।। धन कमाय अन्याय का, वृष दफा थिरता पाय । र है कदा षोडस घरस, तो समूल नस जाय ।।२४०।। गाड़ी तरु गो उदधि वन, कंद कूप गिरिराज । दुरविषमैं नौ जीवका, जीवो करें इलाज ।।२४१।। जात कुल शोमा लई, सो सपूत वर एक । भार भर रोड़ी चरे, गर्दभ भये अनेक ।।२४२।। दुधरहित घंटासहित, गाय मोल क्या पाय । त्यौं मूरख आटोपकार, नाहि सुघर आँ जाय ॥२४॥ कोकिल प्यारी वनत, पति अनुगामि नार । नर बरविद्याजुत सुधर, तप उर क्षमा विचार ।।२४४!! दूरि बसत नर दूत गुन, भूपति देत मिलाय । दांकि दूरि रखि केतकी, बास प्रगट ह जाय ।।२४५।।

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