Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 226
________________ बुधजन सतसई हयगय लोहा काटि पुनि नारी पुरुष पखान बसन रतन भोतनी मैं प्रभ्वर अधिक विमान ॥१३६॥ सत्य दीप बाती क्षमा, सील तेल संजोय । निपट जतनकरि धारिये प्रतिबिंबित सब होय ॥ २०० ॥ परधन परतिय का चिते, संतोषामृत राचि तं सुखिया संसार में, तिनको भय न कदाचि ॥ २०१ || रंक भूपपदवी लहै, भूरत सुत विद्वान | श्रधा पात्रं विपुल धन, गिने तृना ज्यों मान ॥ २०२ ॥ विद्या विपम कुशिष्यको विष कुपथीकों व्याधि | तरुनि विष सम बुद्धको दारि प्रीति प्रसाधि || २०३ || सुचि असुचि नाहि गर्न, गिनं न न्याय अन्याय । पाप पुन्य को ना गिर्न, भूसा मिलै सु खाय ।।२०४।। ; एक भात के सुत भये एक मते नहि कोय । जैसे कांटे और के, बांके, सीधे होय ।। २०५|| देखि उठे आदर करें, पूछे हिल तं बात । जाना जाना ताहिका, नित नवहित सरसाल || २०६ || श्रादि श्रनप मवि धनी, पद पद बघती जाय । सरिता ज्यों सतपुरुष हित, क्यों हूं नाहि श्रथाय ॥२०७॥ गुडि कहना गुडि पूछना देना लेना रीति । खाना आपखवावना षटविधिवधि है प्रीति ॥ २०८ ॥ विद्या मित्र विदेश में धर्म मीत है अन्त । नारि मित्र घर के विषं व्याधि औषधि मित ||२०|| नृपहित जो विरजा हित, पिरजा हित नृपरोष | दोड, सम साधन करें, सो श्रमात्य निरदोष ।। २१० ॥ पाय चपल अधिकार फौं, शत्रु मित्र सौम तोष पोष बिना, ताक है निकट रहे सेवा करे, लपटत होय खुस्याल | I दीन हीन लखते नहीं, प्रमदा लता मुनाल ॥ २१२ ॥ परिवार । धिक्कार ।।२११।। ऐसा भूपति संवत होत आपकी हान | リ परक्रमी कोबिद जिलपि, सेवाविद विद्वान ||२९३॥ २०३

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