Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 217
________________ १६४ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व तो सो और न ना मिल्यो, चाय थक्यो पहु मोर । ये मेरे गाढ़ी गढ़ी, तुम ही हो पितचोर ।।५७।। बहुत बकस हरवत रहूं, थोरी कही सुने न । तरफत दुखिया दीन लखि, ढीले रहें बनै न ॥५८|| रटू रावरो सुजस सुनि, तारन तरन जिहाज । भव बौरत राखे रहे, तोरी मोरी लाज ॥५६॥ डूबत जलषि जिहाज गिरि, तार्यो नुप श्रीपाल । वाही किरपा कीजिये, वाही मेरो हाल ॥६॥ बिन मतलब बहुते मधम, तारि दये स्वयमेष । स्यों मेरो कारज सुगम, कर देवन के देव ।।६१।। मानस पते पान जारि र स्वयमेव । रयों मेरो कारज सुगम कर वेवन के देव ।।२।। निदो भावी अस करौ नांहीं कछु परवाह । लगन लगी जात न तजी, की जो तुम निरवाह ।। ६३॥ तुमें त्याग भोर न भज, सुनिये दीनदयाल । महाराज की सेव तजि, सेवे कौन कंगाल ॥६४) जाछिन तुम मन मा बसे, प्रानन्दधन भगवान ।। दुख दावानल मिट गयो, कीनों प्रमृतपान ॥६५॥ तो लखि उर हरषत रह, नाहि पान की चाह ।। दीखत सर्व समान से, नीच पुरुष नर नाह ।। ६६॥ तुम में मुझ में भेद यो, और भेद कछु नाहिं । तुम तन तजि परब्रह्म भये, हम दुखिया तन माहि ॥६७।। जो तुम लखि निज को लसे, लच्छन एक समान । सुधिर बने त्याचे कुबुषि, सो व्है है भगवान ॥६८।। जो तुमतें नाहीं मिले, चल सुद्धंद मदवान । सो जग में मविचल भ्रमें, लहे दुखांकी खान ।।६।। पारउतारे भविक बह, देय धर्म उपदेस । लोकालोक निहारिके, कीनों सिव परवेस ॥७॥ जो जांचे सोई लहै, दाता अतुल प्रशव । व नरिंद फनिंद मिलि, करें तिहारी सेव ।।७१।।

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