Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ १६८ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व हानिबाई श्रारंम्पो दूर करे, धीर सलज सुन्दर र येते गुन नरमाह ।। ११६ ।। पराक्रमी मतिमान | सो निरमै बलवान ॥ १२० ॥ तो रह जाय ।। १२५ ।। प्रति बोलें ज्या मान । J प्रतिमति करी सयान ।। १२६ ।। उद्यम साहस धीरता, एते गुन जा पुरुष मैं, रोगी भोगी पालसी, बहमी हठी ये गुन दारिदवानके, सदा रहत असी घास विचारकं, छतो दय छिटकाय । श्रछती मिली हाथ नाहि, तब कोरे रह जाय ।। १२२ ।। विनय भक्ति कर सबलकी, निवल गोर सम भाग | हिदू हाय जीना भला, बंर सदा दुखवाय ।। १२३ ।। नदीतीर को रूखरा, करि बिनु अंकुश नार । राजामन्त्री रहित बिगरत लगे न बार ।। १२४ ॥ महाराज महावृक्षकी, सुखदा शीतल खाय । सेवत फल लाभ न तो, छाया श्रति स्वानंत रोग ह्व, प्रति सोयें धनहानि ह्व झूठ कपट कायर अधिक साहस चंचल भ ेग | गान सलज प्रारंभनिपुन, तिथ न तुपति रतिरंग ॥ १२७॥ दुगु क्षुषा लज चौगुनी, भ्रष्ट गुर्ती विवसाय | काम व गुनो नारिकै, वरन्यौ सहज सुभाय ॥ १२८ ॥ पतिचितहित अनुगामिनी, सलज सील कुलपाल । या लक्षमी जा वर बसें सो है सदा निहाल ।। १२६ ।। क्रूर कुरूपा कलहिनी, करकस बैन कठोर | ऐसी भूतनि भौगिवाँ बसियो नरकनि घर ।। १३०।। वरज्ये कुलकी बालिका, रूप कुरूप न जीय | रूपी प्रकुली पराती, हीन कहै सब कोय ॥ १३१ ॥ विपति वीर रन विक्रमी, सम्पति क्षमा दयाल | कलाकुशल कोविद कबी, न्याय नीति भूपाल ।। १३२ ।। सांच झूठ भाषं सुहित हिंसा दयाभिलाख । प्रति आमद प्रति व्यय करें ये राजनिकी साख ।। १३३ ।। सुजन सुखी दुरजम डरें करें, न्याय प्रजा पलें पख ना करें, श्रेष्ठ नृपति अज्ञान । भयवान ।। १२१।। घन संघ । गुन पंच ॥ १३४॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241