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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
. 'बुधजन' संगति की गुरू की तं, मैं पाया मुझ ठामा ॥३॥ "बुधजन" के गीत्यात्मक पदों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता
(१) भक्ति-परक या प्रार्थमा-परक । (२) तथ्य निरूपक या दार्शनिक ।
भगवद् भक्ति के बिना जीवन विषय भोगों में ही व्यतीत हो जाता है । विषयी प्राणी तप, ध्यान, भक्ति, पूजा आदि में अपना चित्त नहीं लगाते ! उन्हें परपरगति ही श्रेयस्कर प्रतीत होती है। यदि वह भगवद् भक्ति में नग जाप सो उसके सम्पूर्ण दुःख दूर हो सकते हैं तथा प्रात्मज्ञान प्राप्त हो सकता है | विषयासक्त प्रागी यह सोचता है कि भक्ति या धर्म नादि कार्य तो वृद्धावस्था में करेंगे, परन्तु उसे यह ध्यान रखना चाहिये कि जब तक शरीर में शक्ति है तभी तक भगवद् भक्ति की जा सकती है । अत: शरीर के स्वस्थ रहते हुए प्रमु-भजन अवश्य करना चाहिये । कवि इसी तथ्य को निम्न पद में अभिव्यक्त कर रहा है--
'भजन बिन यों ही जनम गमायो । पानी पेल्यां पाल न बांधी, फिर पोछे पटनायो ॥१५॥ रामा मोहभये दिन खोबत, प्राशा-पाश बंधाम्रो । जप-तप-संजम, दान न दीना, मानुष जनम हरायो ।।२।। देह-सीस जब कांपन लागी, दसन चलाचल धायो । लागी अागि वुझावन कारन, चाहत कूप खुदायो ॥३॥ काल अनादि भ्रमायो, भ्रमतां कबहुं न थिर चित जायो । 'हरि' विषय सुख, भरम मुलानो, मृग तृष्णा वश धायो॥४।।
कवि के पदों में संगीत और लय के साथ प्रयाह एवं भाव भी विद्यमान है। कदि के समस्त पदों में भक्ति की उत्कटता और प्रात्म-समर्पण की भावना होने से अभिव्यंजना शक्ति विद्यमान है जो उनके समस्त पदों को गीति-काव्य की परिधि में लाते हैं।
कविवर बुधजन ने तध्य-निरूपक या दार्शनिक पद भी लिखे है, पर उनमें दार्शनिक दुरूहता नहीं प्राने पाई है। नीति विषमक और दार्शनिक पदों में कवि ने जैनागम के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है । वे दुख्ता से बचते रहे हैं। उनकी
बुषजनः हिन्दी पर प्रहपृ० स० १६१, संपा० डॉ० कस्तूरवाद कासली
वाल, महावीर भवन, जयपुर, प्र. संस्करण मई १९६५ । २. बुधजन: बुधजन विलास, पद्य संख्या २१, पृष्ठ स० ११, जिनवाणी प्रचारक
कार्यालय, १६१/१ हरीसन रोग, कलकत्ता।