Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 196
________________ तुलनात्मक अध्ययन तु त्यागि और न भजू, सुनिये दीनदयाल | महाराज की सेवे तजि, सेवे कौन कंगाल ॥१॥ परमात्म पद की प्राप्ति के लिये वीतराग और सर्वज्ञ की प्रतिमा का दर्शन, पूजन और स्मरण प्रत्यन्त आवश्यक है। यह हमारी भावना को शुद्ध करने का साधन है, इससे प्रशुभ कर्म छूटकर शुभ कर्मों का बल बढ़ता है । भ्रात्मा के परिणाम निर्मल करने का यह सहज मार्ग है । वीतराग प्रतिमा के द्वारा हम वीतराग प्रभु की प्राराधना करते हैं। उनसे शान्ति एवम् संतोष भादि गुणों की अभिलाषा की जा सकती है । परधन मावि सांसारिक कामनाओं की इच्छा करना मूल है। किसान का लक्ष्य प्राप्ति के लिये खेती करना है। उसे गेहूं चावल आदि के साथ मूसा प्राप्त हो ही जाता है । उसी प्रकार भक्त को परमात्म-दशा की प्राप्ति के लक्ष्य रखते हुए धर्मानुराग से अभ्युद पद स्वयमेव मिल जाता है । मतः प्रतिमा पूजा का लक्ष्य मात्म गुणों के विकास का ही रहना चाहिये । १७३ गृहस्थ के देवपूजा, गुरुपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान इन षट् मावश्यक कर्मों में भी पूजा और दान प्रमुख हैं । रयणसार में प्राचार्य कुन्दकुन्द ने गृहस्थ और मुनि धर्म के कर्त्तव्यों को बताते हुए लिखा है :– गृहस्थ धर्म में दान व पूजा ही मुख्य है। उसके बिना कोई श्रावक नहीं कहला सकता । मुनिमार्ग में ध्यान और अध्ययन ( स्वाध्याय) मुख्य है । उनके बिना कोई मुनि नहीं कहला सकता 12 १. पूजा - भक्ति, गुणानुराग को कहते । जिन प्रतिमा में आत्मा के निर्विकार शुद्ध स्वरूप को देखता हुआ सम्यग्दृष्टि अपने स्वरूप को वैसा ही बनाने की ओर प्रयत्नशील रहता है | उसके प्राचरण में प्रवृति और निवृत्ति दोनों मं दिrers पड़ते है, उसकी पूजा भक्ति विलक्षणता को लिये हुए होती है। जिसमें प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों धाराएं प्रभ्युदय और निःश्र ेयस् दोनों के फल को प्राप्त कराने में कारण होती हैं | वास्तव में भगवान की भक्ति से भगवान बन जाता है । ग्राम निवेदन परक भक्ति : भारम निवेदन की प्रक्ति पद्धति में मक्त श्रपने अवगुणों का बखान करके अपने प्राराध्य से उन्हें निवारण करने के लिये प्रार्थना करता है : २. प्राक्कथन : पं. नाथूलाल जो शास्त्री इन्दौर मित्य पूजन पाठ संग्रह प्रकाशक भी गेंदालाल रतनलाल सेठी, लातेगांव (म० प्र० ) प्राचार्य कुकुन्द ररपसार पक्ष कमांक ११ वाणं पूजा मुक्लं सावयधम्मे, न सावया तेरण विना । झारणान्भवां मुक्ल, सहधम्मे ण तं विरणा सोखि ||

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