________________
छह ढाला
१८५
पद्य–मुख अभय वस्तु नहि लावै, जिन भक्ति त्रिकाल रचावं ।
मन-वच-तन कपट निवार, कृत-कारित-मोद संधारं ॥ ५-२-४३ अर्थ-व्रती गृहस्थ कभी भी प्रजानफल मादि २२ प्रकार के अभक्ष पदायों का) मक्षण नहीं करता। प्रात: मध्यान्ह और सायंकाल (त्रिकाल) जिनेन्द्रदेव की भक्ति करता है । भपन मन, कपन कार्य स तथा तारित-अनुमोदना से (किसी के साथ किसी भी प्रकार का) कपट का व्यवहार नहीं करता ।।४३॥ पध-जैसी उपशमित कषाया, तसा सिन त्याग रनाया ।
को सात-व्यसन को त्याग, कोऊ अणुव्रत में मन पागं ॥१५-३-४४ अर्थ-(इसके प्रागे अंसा-अंसा कपाय का उपशम होता जाता है अर्थात् कषाय घटती जाती है, वैसी ही वैसी वह त्यागवृत्ति को धारण करता जाता है। कोई तो सप्त-व्यसनों का त्यागकरता है और कोई पांच अणुवतों के पालन में अपना मन लगाता है । इस प्रकार बह अणुवन का पालन करता है ॥४४॥
हिसाव सत्याग व्रत पद्य-त्रसजीव कम नहिं मार, विरया थावर न संहार ।
पर-हित-विन झूठ न बोल, मुख सांच बिना नहिं खोल । ५-४-४५ अर्थ-(वह सम्यग्दृष्टि गृहस्थ अहिंसा अणुनत के पालनार्थ) त्रस जीवों की हिंसा का सर्वथा त्यागी होता है और यद्यपि स्थावर जीवों की हिंसा का त्यागी नहीं है तथापि उनकी (निष्प्रयोजन) विराधना नहीं करता। यह उसका अहिंसा-अणुव्रत
सत्याणुव्रत की रक्षार्थ दूसरों की प्रारण-रक्षा-हेतु ही भसत्य बोलता है अन्यथा नहीं। वह अपने प्राणों की रक्षार्थ कमी भी असत्य नहीं बोलता। वह अब बोलेगा तब सत्य ही बोसेगा ।४५॥
प्रचौर्य व ब्रह्मचर्य प्रण व्रत पद्य-जन मृतिका दिन, धन सबह, बिनदियो लेय नहिं कबह ।
__व्याही बनिता बिनधारी, लधु बहिन, बड़ी महतारी ॥ ५-५-४६
अर्थ-जल और मिट्टी के सिवाय अन्य किसी भी प्रकार की बस्तु बिना दिये कभी भी गृहरण नहीं करता प्रतः वह प्रचौम-मणुव्रत पालता है । विवाहिता पल्ली के सिवाय, अपने से छोटी उम्र की स्त्रियों को बहिन के समान और अपने से बड़ी स्त्रियों को माता के समान समझता है अतः वह ब्रह्मचर्य मणुवत पालता है ॥४६॥
परिग्रह परिमाण-पण प्रत पोर विम्बस का स्वरूप पद्य–सिसना का जोर संकोचे, ज्यादा परिग्रह को मोर्च। दिस की मरजादा लावं, बाहर नहिं पाप हिलावे ।
५-६-४७