Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 207
________________ १८४ कविवर बुधजन व्यक्तित्व एवं कृतित्व (५) यदि स्वयं विद्वान् हो तो ज्ञान का मद नहीं करता । (६) यदि शरीर में बल हो तो बल का मद नहीं करता । (७) यदि प्रभुता प्राप्त हुई हो तो प्रभुता का मद नहीं करता । (८) यदि अत्यधिक सम्पन्नता हो तो धन का मद नहीं करता । ३ पद्य - वो श्रातम-ज्ञान, तजि रागादि विभात्र पर ताके है क्यों मान जात्यादिक वसु अधिर को || ४-७-३८ अर्थ - (जिसे अपनी श्रात्मा के भानपूर्वक) सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति हुई है और जिसने राग-द्वेषादि को विभाव भाव जानकर छोड़ दिया है ऐसे जीव को पाठ भद ( कुलजाति श्रदि) कैसे हो सकते हैं ? ||३८|| ३. मूढ़ता पद्य - - वन्दत है मरहंत, जिन-मुनि, जिन-सिद्धान्त को । न मैं न देख महंत, कुगुरुद्वकुदेव, कुग्रथ को || ४-५-३६ पर्थ- उस सम्यग्दृष्टि जीव को श्रद्धा इतनी दृढ़ होती है कि वह (अरहंत देव ) ( सच्चैदेव) निन्यमुनि ( सच्चे गुरू) जिनवाणी ( सच्चे शास्त्र) को ही नमस्कार करता है । वह इनके विपरीत कुगुरू, कुदेव, कुणास्त्रों को (भय से, प्राशा से, स्नेह से, लोभ से भी कभी नमस्कार नहीं करता बाहे वे कितने ही महिमा श्रतः वह ३ मूढ़ता से रहित होता है ||३६|| शास्त्रो क्यों न हों ? यह अनायत - कुत्सित भागम देव, कुत्सित गुरु पुनि सेवका । रशंसा षट्मेव, करे न समकित ज्ञान है | पद्य - ४६-४० प्रथं वह सम्यग्दृष्टि जीव खोटे शास्त्र, खोटे देव और खोटे गुरुषों को तथा उनके सेवकों (प्रशंसकों) की प्रशंसा कदापि नहीं करता अतः वह यह अनायतन का भी त्यागी होता है ॥ ४० ॥ पथ--प्रगटा इसा सुभाव, करा प्रभाव मिथ्यात का । वन्दे ताके पांव, "बुधजन" मन-वच काय ते । ४-१०-४१ अर्थ - " बुधजन " कवि कहते हैं कि मिथ्यात्व के प्रभाव होने से जिसका ऐसा स्वभाव प्रगट हुआ है। मैं ऐसे वीतराग स्वभावी सम्यग्दृष्टि जीव की मन, वचन, काय से वंदना करता हूँ ।। ४१ ।। पांचवीं ढाल (छन्द चाल) पद्य - तिरजंत मनुष्य दोऊ गति मे, व्रत धारक, सरघाचित में । सो श्रगलित नौर न पीवं, निशि भोजन तजत सदीयं ॥ ५-१-४२ अर्थ - तियं च श्रौर मनुष्य इन दोनों गतियों में श्रद्धावान व्रतधारक (जैन गृहस्थ) बिना छना जल नहीं पीता है और सदा के लिये रात्रि भोजन का त्यागी होता है ॥४२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241