Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 193
________________ १७० कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व कविवर बुधजन ने अपने प्राराध्य को अनंत गुणों हा भंडार मामा है। जिससे कोई भी साधक अपनी गुप्त प्रात्मिक शक्तियों को प्रगट करने की प्रेरणा प्राप्त करता है । वस्तुतः पाराध्य के गुणों की प्रशंसा करना ही मक्ति है । भक्ति करने से चित्त निर्मल होता है । चित्त की निर्मलता से पुण्य का बघ होता है, वही पुण्य उदय काल में सुख की सामग्री जुटाता है । तथ्य यह है कि जैन भक्त कवियों ने जैन दर्शन के मिद्धान्तों के अनुरूप निष्काम भक्ति की प्रेरणा दी है । इस विषय मे आघायं काका कालेलकर के निम्न उद्गार दृष्टव्य हैं "सचमुच भक्ति ही जीवन है । नदी का सागर की तरफ बहना, जीव का शिव की मोर प्रखण्ड चलने वाला भाकर्षण 'सीमा" का परिपुष्ट होकर "भूमा" में समाजाना, यही तो भक्ति है और भक्ति तो प्रखण्ड बड़ने वाली रममय प्रवृत्ति है। बहने वाली नदियां जिस समुद्र में जाकर मिलती हैं. उस समुद्र को न बना है. न घटना है, तो भी उसमें ज्वार भाटा की लोला चलती है और किसी भी नदी के प्रवाह की अपेक्षा स्वयं समुद्र के अन्तःप्रवाह अधिक वेगवान और समर्थ होते हैं। भक्ति का क्षेत्र अत्यन्त विशाल है उसमे जाति-पाति वा भेद नहीं होता। मुनि वादिराज का शरीर कोढ़ युक्त या प्रमु स्मरण से वह स्वर्ण जैसा चमक उठा। सोप और मेंढक जैसे जीवों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई । धनंजय का पुत्र प्रभु की भक्तिः से जीवित हो गया । मक्ति के प्रताप से संसार के मुख मिलते हैं पर जन भक्त संसार के सुखों की कामना से कमी मी मक्ति नहीं करता । वह तो प्राध्यःस्मिक सुख को ही अपना लक्ष्य बनाता है । प्रभु ग्माण में मानतुग के बन्धन टूट गये पर मानतुग ने बन्धन मुक्त होने की कामना से प्रभु-स्मरण नहीं किया। कविवर "बुधजन" की जिनेन्द्र मक्ति प्रसिद्ध है। 4 जयपुर राज्य का दीवान अमरचन्द के यहां प्रधान मुनीम थे । दीयान ने उन्हें एक जिन मदिर बनवाने की आज्ञा दी परन्तु कवि ने दो जिन मंदिर बनवाये । इसके पीछे उनकी भावना यही थी कि ये मंदिर आराधना के घर हैं । यहां प्राकर अधिक से अधिक लोग भक्ति करें। आपके भक्ति पूर्ण पव इस बात को द्योतित करते हैं कि प्रापकी भक्ति निष्काम थी। वे कभी-कभी भक्ति रस की सरस धारा में निमग्न हो इस बात का विचार किया करते थे कि हे बुधजन ! तुने जिनेन्द्र के भजन प्रथवा प्रात्मक्षेत्र के प्राराधना बिना ही अपने मानव जीवन को यों ही गंवा दिया और जी कुछ रहा है वह भी बीता जा रहा है। तूने पानी पाने से पहले पाल न बांधी फिर पीछे पछताने से क्या १. काका कालेसकर: हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि का प्रारकथान पृ० सं० ३, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241