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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जिस प्रकार संस्कृत में श्लोक को, प्राकृत भाषा में गाया को, अपभ्रश भाषा में दूहा को मुख्य छन्द माना गया है । उसी प्रकार हिन्दी में 'दोहा बन्द को प्रमुखता दी गई है । जैन कवियों ने दोहा बन्द का प्रयोग अपनी माध्यात्मिक रचनात्रों में किया है । १६वीं शताब्दी के पाण्डे रूपचन्द धादि ने, १७वीं शताब्दी के पाण्डे हेमराज नादि ने, १६ वीं शताब्दी के गमग 'प्रादि वी शताबी के 'बुधजन प्रादि कवियों ने इस छन्द का प्रयोग अपनी प्राध्यात्मिक एवं नीति–परक रचनाओं में किया है । आपने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'बुधजन सतसई' में इस छन्द का इतना सफल प्रयोग किया है कि उस काल का अन्य कोई कवि अपनी सफलता से उसकार प्रयोग नहीं कर सका । जन्होंने सम्पूर्ण ग्रन्थ ही दोहा छन्द में लिखा है। 'बधजन सतसई के अतिरिक्त अपनी अन्य रचनामों में कवि ने चौपाई कवित, सया, दोहा, छप्पय, धनाक्षरी, फागु पद प्रादि अनेकों छन्दों का सफल प्रयोग किया है । रचनाओं की भाषा सरन और प्रवाह पूर्ण है। अनेक नये-नये छन्द, नयी-नयी राग-रागिनियों में प्रयुक्त किये गये हैं । इस दिशा में कषि की मौलिकता प्रशंसनीय है।