Book Title: Kavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Mulchand Shastri
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 168
________________ तुलनात्मक अध्ययन १४५ तक जहां कहीं भी इन्द्रियक ज्ञान का कारण होता है, वह (आत्मा) उसका तुरन्त अनुभव कर लेती है।' मुख्य बात यह है कि जन दर्शन में बहुजीववाद स्वीकार किया गया है तथा प्रत्येक जीव की स्वतम सत्ता स्वीकार की गई है। जीव द्रव्य को पत्र भेः । ....पुदाल, ', प, प्रकाश और काल । जो रूप, रस, गन्ध, स्पर्श प्रादि गुणों से युक्त है वह पुद्गल है। यह कंध अवस्था में पुरण-गनन क्रिया रूप होता रहता है । समस्त ष्य जगद इसी का विस्तार है। शब्द. बंघ, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, उद्योत, प्रातप से सब गुद्गल द्रव्य की पर्याय (दशाए) है। पुद्गल परमाणु स्वभावतः क्रियाशील है। उसकी गति-सीन, मन्द, मध्यम, अनेक प्रकार की होती है। पारीर, इन्द्रिय, प्रारण, अपान, श्वासोच्छवास प्रादि पुद्गल से ही निर्मित हैं 1 धर्मद्रव्य मौर अधमंद्रव्य-जीव और पुद्गल के समान धर्म और अधमंद्रष्य भी हो स्वतंत्र द्रव्य है। इनका अर्थ पुण्य-पाप नहीं है । धर्मद्रव्य गतिला परिणमन करने वाले जीव और पुद्गलों को गमन में सहायक होता है और अधर्मद्रव्य ठहरते हुए पुद्गल और जीवों को ठहरने में सहायक हैं । ये दोनों द्रव्य लोकाकाश के बराबर हैं । रूप, रस, गंध, स्पर्श प्रौर शब्द से रहित होने के कारण प्रमूर्तिक और निष्क्रिय है । उत्पाद, ध्यय और प्रौव्य युक्त है । लोक और अलोक का विभाग इन दोनों द्रव्यों के सवभाव का फल है । यह द्रश्य समस्त भजीवादि दृश्यों को पदगाह स्थान देता है । अर्थात् जीय, पुद्गल धर्म, अधर्म, कालादि समस्त पदार्थ युगपत जिसमें प्रवकाश प्राप्त करते हैं, वह पाकाया है । यह निष्क्रिय प्रौर रूप, रस, गंध, स्पर्श एवं शम्दादि से रहित होने के कारण प्रमूर्तिक है। प्रकाश दान ही इसका असाधारण गुण है । पुदगल का एक परमाणु जितने भाकाश को रोकता है, उसे प्रदेश कहते हैं। इस प्रमाण से It is well renembrance that according to the Jain's the sound occupies the whole of the body in which it lives, so that from the tip of the hair to the nail of the foot, where ever there may be any cause of sensation, It can atona feel it. A history of Indian Philosophy : Cambridge University press, 1938 P 189 २. सोबंधी सुहमो, थुलो स'ठारण भेदतम छाया। उजोदादव सहिया, पुग्गल दव्वस्स पज्जाया ॥ प्राचार्य नेमिचन्द्र, द्रम्पस प्रह, गाथा क्रमांक १६, पृ०स० १२ वि०म० २०३३ प्रका० हस्तिनापुर।

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