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तुलनात्मक अध्ययन
गीतिकाव्य के क्षेत्र में भी बुधजन का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनके सम्पूर्ण पद गेय हैं, जिनमें हृदय का मार्मिक स्पंदन माधुर्य से अनुप्राणित है । उन्होंने भाषा को अपने प्रकृत रूप में ही प्रभावशाली बनाया । उनके साहित्य में पाडंबरों के लिये अाग्रह नहीं है । उनके साहित्य में मौलिक चेतना तरंगित होती है । गम्भीर-चिंतन, समुन्नत हादिक प्रसार, कबि की रचनामों में उपलब्ध है ।
वैसे तो हिन्दी साहित्य का निर्माण वि० सं० १६० से प्रारम्भ हुमा। एक जैन कवि ने इसका प्रारम्भ किया था । वह सतत चलता रहा। जैन कवि लिखते रहे। उन्होंने जो कुछ लिखा उनमें थोड़ा या बहुत मक्ति का अंश अवश्य था । अत: मध्यकाल में वि० सं० १००० से १६०० तक हिन्दी साहित्य में भी जन भक्ति धारा चलती रही । इस काल में बनारसीदास, भूधरदास, प्रानन्दघन, दौलतराम मादि के समान अधजन ने मी भक्ति-रस-पूर्ण रचनाएं की हैं जो जन जगत में अत्यधिक लोकप्रिय हैं । इस प्रकार की रचनामों में बुधजन" का एकमात्र लक्ष्य रहा है कि मनुष्य केवल लोकिक विषय-वासनानों में प्रासत न रहे। किन्तु अपनी पहिचानकर, अपनी उन्नति का प्रयत्न करे। उन्होंने जितनी भी रचनाएं की हैं उनके पीछे उनका कोई स्वार्थ नहीं रहा । वे साधारण गृहस्थ थे उन्होंने जो कुछ लिखा स्वान्तः सुखाय ही लिखा । रीतिकाल के कवि होते हुए भी उन्होने नायिकानों के नख शिख का वर्णन रंचमात्र भी नहीं किया । यह उनकी बहुत बड़ी विशेषता कही जा सकती है।
'मध्ययग के साहित्यिक काटियों ने हिन्दी भाषा में जिस भावधारा का ऐश्वर्य विस्तार किया है उसमें असाधारण विशेषता पाई जाती है । यह विशेषता यह है कि उनकी रचनात्रों में उच्च कोटि के साधक एवं कवियों का एकत्र सम्मिश्रण हुमा है। इस प्रकार का सम्मिलन दुर्लभ है ।'
जीवन-व्यापिनी सापना तथा साहित्य-साधना को हम भिन्न-भिन्न रूपों में लक्षित नहीं कर सकते हैं । क्योंकि मध्य-युगीन हिन्दी कवियों में अधिकतर ऐसे ही सन्त कवि हुए हैं, जिनकी वैयक्तिक साधना ने ही उनके साहित्यिक जीवन का निर्माण किया और साधना की जीवन्त-धारा ही साहित्य-बनकर स्फुटित हुई। अध्यात्म की एक पोर पूर्ण झुकाव होने के कारण बुधजन भी सन्त कवि के समान थे । एक सन्त-साधक थे और उनकी साधना ही उनके साहित्य की पीयूष धारा है।
'इस प्रकार मध्य युगीन साहित्य में स्वतः उत, बहुमुखी, साहित्यिक भावधाराएं प्रसारित हुई । जिनमें तात्कालिक जन-जीवन अत्यधिक प्रभावित हुआ । सांसारिक नश्वर सुख-दुख की परिधि से उसका हृदय कपर उठा, उसने बड़े शान्त
१. अनेकान्त वर्ष १६ : किरण ६, फरवरी १९६७, पृ० सं० ३४६ । २. डॉ० हजारी प्रसाद विवेवीः हिन्दी साहित्य, पृ० ५७ ।