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भाव पक्षीय विश्लेषण
भाग का नाम भरत क्षेत्र, द्वितीय भाग का नाम हेमवत और ततीय भाग का नाम हरिक्षेत्र मे । इस ही प्रकार उत्तरदिशा के प्रथम भाग का नाम ऐरावत, द्वितीय भाग का नाम हैरण्यवत और तृतीय भाग का नाम रम्यक क्षेत्र है । मश्ग्रभाग का नाम विदेह क्षेत्र है। भरतक्षेत्र की चौड़ाई ५२६ योजन है | विदेह क्षेत्र के बीचों बीच सुमेरु पर्वत है । सुमेरु पर्धन की एक हजार योजन कल्पना होती है, उनको कल्म कहते हैं और जहां ग्रह कल्पना नहीं है उमे कल्पातीत कहते हैं । कल्प में १६ स्वर्ग हैं-१ सौधर्म, २ ईशान, 3 मार, ४ प , हे तर ७ लावत, ८ कापिष्ठ, ९ शुक्र, १० महाशुक्र, ११ सतार, १२ सहसार, १३ मानत १४ प्रारखत, १५ प्रारण, १६ प्रच्युत । इन सौलह स्वर्गों में से दो-दो स्वारे में संयुक्त राज्य है । इस कारण सौधर्म ईशान, सान्त कुमार-माहेन्द्र इत्यादि दो-दो स्वर्गों का एक-एक युगल है । उपरोक्त १६ स्वगों में १२ इन्द्र है। सोलह स्वों के ऊपर कल्पातीत में लो अपो ग्रेवेयक, तीन मध्यम प्रेवेयक और तीन उपरिम प्रवेयक इस प्रकार नव ग्रेवेषक है। नव प्रेदेयक के ऊपर नव अनुदिश विमान तथा उनके ऊपर पंच अनुसर विमान हैं । इस प्रकार इस उर्वनोफ में बंमानिक देवों का निवास है।
मरू को चुलिका से एक बाल के (केश के) अन्तर पर ऋजु विमान है। यहां से सोधर्म स्वर्ग का प्रारंभ है। मरू तल से लगाकर डेढ़ राजू की ऊंचाई पर सौधर्म-ईशान युगल का अन्त है । उसके कार डेढ़ राजू मैं सानत्कुमार-माहेन्द्र युचल है । उससे ऊपर आधे-साधे राजू में छहूँ युगल हैं। इस प्रकार छह राजू में पाठ युगल हैं।
लोक के अन्त में एक राजू चौड़ी, सात राज् लम्बी और ग्राउ पोजन मोटी ईयत् प्रारभार नामक पाठची पृथ्वी है। उस पाठबी पृथ्वी के बीच में रूप्यमयी छत्राकार मनुष्यक्षेत्र समान गोल ४५ लक्ष योजन चौड़ी मध्य में पाठ योजन मोटी (अंत तक मोटाई क्रम से घटती हुई है ।) सिद्ध शिला है । उस सिद्ध शिला के ऊपर तनुवाद में मुक्तजीव विराजमान हैं। उस शिवालय धाम (मोक्ष) में अनन्त सिद्धजीत्र हैं वे अनंत ज्ञान अध्यावाघ सुत प्रादि अनंत गुणों से शोभायमान हैं कविवर बुधजन उनको सदा प्रणाम करते हैं।
१ सिद्ध अनंतानंसको, तहां शिवालयथाम ।
राजे प्रव्यायाधसुख, तिनको सदा प्रणाम !! बुधजनः तत्वार्यबोध, पद्य संख्या ४२ पृष्ठ ४६ प्रका. कन्हैयालाल गंगवाल, लश्कर