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कषिपर बुधमन : या संकलित
द्यानतराय की पंचासिका और दौलतराम का सत्व-उपदेश भी छहढाला कहलाने लगे । सर्व प्रथम कविवर द्यानतराय ने वि. सं. १७१८ कार्तिक मास की त्रयोदशी को इस प्रकार की छह भागों में विभक्त साधारण उपदेशात्मक रचना की थी तथा कुल ५० छन्द होने से उसका नाम पंचासिका रखा था, जैसा कि ग्रन्थ के अंतिम छंदों से ज्ञात होता है। इसके बाद कविवर खुषजन ने साल शुक्ल तृतीया (अक्षयतृतीया) वि. सं. १८५९ में विषय के क्रमानुसार प्रकरण बद्ध करते हुए इस प्रकार की एक रचना की थी तथा उसका नाम 'छहढाला' रखा था । यह रचना पं. द्यानतराम की रचना से विषय-वर्णन में मधिक विस्तृत है।
इसके पश्चात कवि दौलतराम ने 'कवियर बूधजन' की बहढाला से प्रेरणा प्राप्त कर शिल्प-कला के कोशल के साथ सर्या गपूर्ण रखना प्रस्तुत की। उनकी इस रचना में बुधजन की भाषा और भावों की छाया यत्र-तत्र दिखाई देती है। श्री दौलतराम ने स्वयं अपनी रचना के अंतिम छंद में निर्देश भी किया है । उनके ही घाब्दों में:
मुझ पं. दौलतराम ने कवि बूधजन 'छहढाला' का प्राश्रय लेकर वि. सं. १८९१ की अक्षय तृतीया को यह ग्रन्थ पूर्ण क्रिया । सामान्यत: यह स्वीकार कर लिया गया है कि दौलतराम की 'छहढाला' के पूर्व कविवर बुधजन की छहहाला मादर्श रूप में श्री बुधजन की यह रचना सुन्दर और महत्वपूर्ण है । पहले सर्वत्र इसी का पठन-पाठन होता था । इस रचना ने अनेक व्यक्तियों पर प्रभाव डालकर उनके जीवन को बदलने और अध्यात्मिकता की प्रोर झुकाने में बड़ा योग दिया है । कविवर बुधजन और कविवर दौलतराम, इन दोनों की छहताला प्राध्यात्मिक जैन साहित्य की अनुपम निधि है । बड़े-बड़े ग्रन्थों का सार इनमें भर दिया गया है।
कविवर बुधजन 'छहढाला' की पहली दाल में परिणत वैराग्य बद्धिनी बारहभावनाएं, भाद और लय की मधुरता दोनों एष्टियों से बढ़िया हैं । भाषा और भाव -- - - १. भय उपशम पलसों कहे, थामत प्रक्षर सेह ।
देख सुबोष पंखासिका, मुषजन शुख करेह ॥ कषि धानसराय : छहबाला, पम संख्या ४७, पृ. सं. १६, प्र. संस्करण शान्तिवीर नगर, महावीरजी।।
इकनवबसु एक वर्ष की, तीज शुक्ल साह । कर्यो तस्व उपवेश यह ललिषवन की भाष ।। दौलतराम : छहवाला, पत्र सं. १६, पृ. ५२, सरल जन प्रग्य भंगार,
जबलपुर प्रकाशन । ४. हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री : सन्मति शंबेगा. वर्ष १३, अंक
सितम्बर १९६८ ।