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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मूल्य मांक सकेंगे और कबि के भावुक हृदय की गतिविषि को भी पहिचान सकेंगे।" इस प्रकार यह सारा ही अन्ध सैद्धान्तिक विवेचन सुन्दर, सुगम एवं ललित सूक्तियों, विविध अनुप्रासों आदि को लिये हुए हैं ।
तत्वार्थ बोध का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन
तत्वार्थबोध की भाषा अज मिश्रित राजस्थानी है, किन्तु उसका रूप साहित्यिक है। अतः उसमें श्राय ५ क्रियापदों पर अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है । विधान-छन्द-शैलो
रामन रचना मुख्य रूप से मुक्तक दोहों में है और छन्द शास्त्र की दृष्टि से दोहे प्रायः निर्दोष हैं। विवेच्यरचना में कवि ने दोहा छन्द के अतिरिक्त सोरठा, चौपाई, छप्पय, अडिल्ल, कुण्डलिया, गाथा और गीता छन्दों के प्रयोग किये हैं। प्रसाद और माधुर्य गुण से रचना परिपूरणं है ।
इस प्रकार के अध्ययन से विदित होता है कि कदि का भाषा पर अद्भुत अधिकार पा । वे बड़े से बड़े गंभीर भाव को एक पंक्ति में स्पष्टता और पूर्णता के साथ व्यक्त कर सकते थे। 'इसमें गोम्मटसार जीवाड़ के प्रायः सभी विषयों पर प्रकाश डाला गया है । इस ग्रन्थ को कविवर ने वि.सं. १८७९ में राजा जयसिंह के शासनकाल में बनाकर पूर्ण किया।'
११-पव-संग्रह (स्फुटपद) १८८०-६१ वि०सं०
'कविवर बुधजन का पद संग्रह भी विभिन्न राग-रागिनियों से युक्त है । इस संग्रह में २४३ पद हैं । इन पदों में अनुभूतियों की तीनता, लयात्मक, संवेदनशीलता और समाहित भावना का पूरा प्रस्तिस्व विद्यमान है। इनके पदों में स्वानुभूति एवं अध्यात्म की तल-स्पशिनी छाया विद्यमान है। भाव और भाषा की दृष्टि से यह
परमानन्द शास्त्री : अनेकान्त वर्ष ११, किरण ६, सपा. झुगल किशोर मुख्तार, धीर सेवा मंदिर, सरसावा (सहारनपुर), वि०स २००६ परमानन्द शास्त्री, वर्ष ११, किरण ६ पृ० २४६ । संवत् अठारा सं विर्ष, अधिक गुण्यासी वेगा । कार्तिक सुदि शशि पंचमी, पूरण अन्य प्रशेष || मुखस बर्स जयपुर तहां, नप जयसिंह महाराज ।
बुधजन कोनो अन्य तहां, निज पर के हित काज ।। बुधजनः तस्वार्थबोध, पद्य संख्या १३, १४ पृ.स २७७ प्रका• कन्हैयालाल गंगवाल, सस्कर।