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बुधजन द्वारा निबद्ध कृतिया एवं उनका परिचय
शासक भी धन के कारण भयभीत करते रहते हैं । धन अधिक हो जाने पर मनुष्य मद्यपान, वेश्यागमन, परस्त्री सेवन, मांस भक्षण, जुमा प्रावि दुर्व्यसनों का सेवन करने सग जाना है। धन की गाजित होने रक्षा का भग नौद उसके विनष्ट हो जाने पर दुखों का अनुभव करता है । धन के लिये नाना प्रकार से क्रोध, छल मादि करता है। अतः आदि, मध्य और अन्त कहीं भी किसी भी दशा में धन सुख का कारण नहीं है । सुख तो परिणामों में समता भावों को धारण करने से प्राप्त होता है।"
सम्यग्दर्शन के बाहरी कारणों का दिग्दर्शन कवि ने निम्न शब्दों में कराया है :
जिन महिमा जिन छवि दरस, दुख बेदन सुर रिद्धि ।
भव सुमरण, पागम श्रवण, कारण बाहय प्रसिद्धि । सम्यग्दर्शन के अन्तरंग कारणों का उल्लेख करते हुए कवि कहते हैं :
अन्तरंग सम्यक्त्व का, करन लब्धि है मूर ।
तातें वरनू सन्धि कू, जैसे माषी सूर ।। कवि ने निश्चय और व्यवहार दोनों नयों की उपादेयता और अनुपादेयता का बड़ा ही भावपूर्ण एवं तर्कसंगत वर्णन किया है । उसे कवि के ही शब्दों में :--
"जिसमें पर की अपेक्षा नहीं है, जो मनुएम है, जिसका न मादि है और न मन्त । अपने ही गण-पर्यायों में जो भेद ग्रहण नहीं करता तथा वस्तु के शुद्ध स्वरूप को ग्रहण करता है उसे निश्यय नय कहते हैं | प्रसत्यार्थ नय को व्यवहारनय तथा सत्यार्थ नय को निश्चय-नय कहते हैं । निश्चय नय के प्राश्रय से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है । वह बंध का कारण नहीं है । इस जीब ने व्यबहार नय से वस्तु के स्वरूप को अनंतकार श्रद्धा में लिया और सुना परन्तु निश्चय नय के बिना संसार में भ्रमण ही किया । प्रतः आपापर का भेद विज्ञान होने पर, स्वानुभव के द्वारा समस्त वेदों (लिगों) का अथवा भव-भ्रमण का उच्छेद करना ही योग्य है ।"
"उपयूँ ऋत थोड़े से दोहों में जो पर्थ गांभीर्य है, उस पर से ही पाठक इस ग्रन्थ की उपयोगिता, महत्ता और विषय विवेचन की सरल एवं मनोहर सरणि का
२. ३.
कुषजन : तत्वार्थोष, पत्र स. ९, १०, ११, १२, १३ लस्कर, प्रकाशन । वही, पद्य स. ६३, अही, पद्य स. ६४। युधजनः तत्वार्थबोध, पद्य सख्या ३६, ४४, पृ० १७, १८, १८ लाकर