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७८ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
"कवि को प्रमु के चरणों की शरण इतनी प्रिय है कि वे भव-भव में उसी की याचना करते हैं।"
कविवर बुधजन जैन दर्शन और सिद्धान्त के पारंगत अनुभवी विद्वान थे। दुधजन की तरह बनारसीदास, मैया भगवतीदास, घानतराय, दौलतराम आदि ने भी आध्यात्मिक व नीति परक रचनाएं की। बिहारी सतसई के फसिपम दोहे नीलि सम्बन्धी हैं । वृन्दसतसई, गिरधर की कुण्डलियां, दीन दयाल गिरि की रचनाए' भी नीति परक हैं। इस प्रकार हिन्दी में १६ वीं शताब्दी तक नीति परक रचनाएं होती रहीं । बुधजन की रचनाए' मुख्यतः तीन भागों में विभाजित की जा सकती हैं । (१) नीति प्रधान रचनाएं (२) सैद्धान्तिक रचनाएं (३) प्राध्यात्मिक रचनाए।
नीति परक रचनाएं समास पाली में लिखी गई हैं । जैन कवियों ने अपने साहित्य सृजन के मूल में ही प्रध्यारम को रखा है । प्रायः सभी हिन्दी जैन कवियों ने मात्म-जागरण प्रधान पदों की रचना की है । प्राज भी सभी लब्धप्रतिष्ठ कवि अपनी कविता का चरम लक्ष्य प्रारमा की उन्नति ही मानते हैं। वास्तव में कविता वही है ओ मानव की प्रात्म उन्नति का पथ प्रशस्त कर सके ।
बुधजन ने अपनी रचनाओं में मुख्यतः दोहा, चौपाई, पद, कुण्डलिया, कवित्त, सर्वया आदि छन्दों का प्रयोग किया है । इनके पड़ों में ब्रज और राजस्थानी (ढूढारी) के मिश्रण की स्पष्ट झलक है। बारी में जैन साहित्य के बड़े-बड़े पुराणों का पद्यानुवाद भी उन्होंने किया है।
ऋत्रिकी सैद्धान्तिक रचनात्रों में विषय प्रवान बर्णन चली है । उन्होंने सभी सिद्धान्तों का समावेश सरल-माली में किया है। हिन्दी में उनके द्वारा लिखित अध्यात्म, भक्ति और रूपफ काथ्य सम्बन्धी भी हैं। उनकी सभी रचनाए' हिन्दी भाषा में हैं । उनके समस्त पद भक्ति रस से परिपूर्ण हैं । कवि ने अपने भाराष्य की भक्ति करते हुए उसके रूप लावश्य' का विवेचन किया है उनकी समस्त रचनाए पछ बद्ध हैं।
एक बात और विशेष ध्यान देने की है कि सुधजन के पदों की भाषा पर ब्रज का प्रभाव है । अजभाषा की मूल प्रकृति प्रोकारान्त है । कवि के पदों में अनेक प्रकारान्त शब्द मिलते हैं । यथा-मिल्यो, कर्यो, मर्यो, गयो, गहयो, भन्यो इस्यादि । यही
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या नहीं सुरवास, पुनि नरराम परिजन साथ भी । पुष याचर तुम भक्ति भव-भव बीजिये शिवनाथ को ।। बुधअनः देवदर्शन स्तुति, ज्ञानशेठ पूजांजलि, पद्य , पृ० ४३४-३५ भारतीय भानपीठ काशी प्रकाशन ।