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कृतियों का भाषा विषयक एव साहित्यक अध्ययन
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"यदि विचार कर देखा जाय तो धर्म एक है और उसे जीवन में उतारने का मार्ग भी एक ही है परन्तु विश्व में जो अनेक धर्म दिखाई देते हैं और उनमें परस्पर जो अन्तर है उसको दार्शनिक पृष्ठ भूमि का ज्ञान हम इस साहित्य का गहन मंथन किये बिना नहीं कर सकते।"
कविवर खुपम जिस टीEET) वर में शादिस रचना की, उसका इतिहास डॉ० जार्ज ए० प्रियर्सन के अनुसार निम्न प्रकार है :
"इस प्रकार जयपुर की सीमा के निकट मारवाड़ क्षेत्र में बोली जाने वाली मारवाड़ी भाषा मारवाड़ प्रान्त में ददारी कहलाती है। यह जयपुरी भाषा का एक नाम है क्योंकि इस पर जयपुरी का गहरा प्रभाव है । वास्तव में यह मिश्रित भाषा है और जयपुर सीमा के निकट होने से मारवाड़ी की अपेक्षा संभवतः जयपुरी के अधिक निकट है । हूँढारी के भी दो भेद हैं । [१] चट्टानी पहाड़ियों की एक श्रेणी जो करीब-करीब सम्पूर्ण पोखावाटी (जयपुर प्रदेश) को दो भागों में विभाजित करती है । उत्तर पूर्षी दिशा में और उसी के पास पूर्षी दिशा में पहाड़ियों के पूर्व की और का भाग ददारी कहलाता है। यह एक ऐसा नाम है जो पहले-पहल राजपूताने के एक विशाल भाग के लिये प्रयुक्त था, जबकि पश्चिम की ओर बाजार नामधारी प्रदेश, जिसमें सम्पूर्ण शेखावाटी सम्मिलित है और सम्पूर्ण रेतीले प्रदेश को सम्मिलित कर लिया जाता है, जहां कि पानी बड़ी गहराई से प्राप्त होता है। जोधपुर रियासत के सुदूर उत्तर पूर्व में जहां वह प्रदेश, जयपुर का सीमा प्रदेश बनता है। वहां की बोली मारवाड़ी और जयपुरी का मिश्रण है अथवा बाद वाली भाषा को भी स्थानीय रूप से तू दारी कहते हैं। इस पर जयपुरी का विशेष प्रभाव है। यहां वास्तव में भाषा मिश्रित है और जयपुर सीमा के पास है और सम्भवत: यह भाषा मारवाड़ी की अपेक्षा जयपुरी के अधिक निकट है।
Thus the Marwari spoken in Marwar close to the Jaipur frantier is called in Marwar Dboordhari on of the names of Jaipuri, Because the Jaipuri influens, is very strong. Here indeed the language is mixed one and near the Jaipur border is probably ncarer Jaipury then Marwari.
A Range of rocky hills inter sects nearly the whole shekhawati in the Jaipur state. In a nocth estert direction and close upon its castern frentier, the country on the east side of the hills is called Dhoondhari ( A name which was fojmarly applied to a large part of Rajputana which that to the west is called १. पं० फूलसम्ब सिवान्तशास्त्री : वर्णो स्मृति प्रन्य, खण 2, पृष्ठ ६८,
प्र० भा० वि० जैन विद्वत् परिषद, सागर म०प्र० प्रकाशन ।