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बुधजन द्वारा निबद्ध कृतियां एवं उनका परिचय
और उपयोगिता की दृष्टि से संस्कृत के नीति-काध से कम नहीं, तथापि यह मानना ही पड़ता है कि विशेष प्रतिभाशाली कवियों की कमी के कारण वह संस्कृत के नीति काव्यों के समान सरस, चमत्कारी और प्रमूविष्णु नहीं बन सका, फिर भी पालि, प्राकृत और अपनश के नीति काब्यों से तो बह प्रत्येक रष्टि से थष्ठ ही है । बुधजन सतसई का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन...
बुधजन सतसई की भाषा ग्रम मिश्रित राजस्थानी है. किन्तु उसका रूप साहित्यिक है । अतः इसमें पाये हुए किया पदों पर अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है । क्रिया
(१) सतसई में प्रयुक्त अधिकांश कियाएं कर्तरि प्रयोग में हैं । (२) कुछ क्रियाएं कर्मणि प्रयोग में भी पाई जाती हैं, जिनके द्वारा
क्रिया का कम स्पष्ट है, उनके कर्ता का उल्लेख नहीं मिलता। उदाहरण
(क) बंदत श्री महाराज । पद्य संस्था २० (ख) एक और राजत प्रबल: । पद्य संख्या २३ (ग) भली बुरी निरखत रही । पद्म संख्या २४ (घ) प्ररज गरज की करत हूँ । पद्य संख्या ३७
काल रचना-बुधजन सतसई में प्रयुक्त क्रियाओं में तीन अर्थ पाये जाते हैं, निश्चयार्थ, प्राज्ञार्य तथा सम्भावनार्थ । निश्चयार्थं से भूत, वर्तमान तथा भविष्य तीनों में कार्य होने की सूचना मिलती है। माशार्थ वर्तमान तथा भविष्य-इन दो कालों में मध्यम पुरुष में प्राज्ञा तथा अन्य पुरुषों में स्वीकार-सम्मति सूचित कर्ता है । सम्भावनार्थ उस क्रिया का घोतन करता है, जहां कार्य सम्पन्न नहीं हुप्रा रहता। इस प्रकार से प्रयुक्त से छह काल सामान्य काल कहे जा सकते हैं । ये निम्न प्रकार है :
(१) वर्तमान निश्चयार्थक (२) भूत निश्चयार्थक (३) भविष्य निश्चयार्थक
डा० राम स्वरूप ऋषिदेश: हिन्दी में नीतिकाव्य का विकास, पृ.सं ६४१ बिल्ली प्रकाशन, दिल्ली १९६२। बुधमनः बुधजन सतसई, पद्य सं० २० पृ० सं० ५३० संस्करण प्रकाशन बुधजन: शुषजम सतसई, पच सं. २३ पृ० स ५ प्र० सस्करण, सनावद प्रकाशन मुषजनः वधजन सतसई, पच स० ६ प्र० संस्करण सनावर प्रकाशन सुधजनः सुषजन सतसई पद्य स, ३७ पृ० स प्र. संस्करण प्रकाशन ।