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बुधजन द्वारा निबद्ध कृतियां एवं उनका परिचय
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सतर्कता से दृष्टि रखनी है। एक क्षण का प्रसाद उसे अनन्त घाटे का सौदा करा सकता है । कवि स्वयं को सम्बोधित करते हुए कहता है। हे भ्रात्मन् 1 लुइस संसार रूपी बाजार में परमार्थ के लिये, आत्म-कल्याण के लिये सुकृत का सौदा करले सम्यक् आचार का पालन कर तूने सौभाग्य से सर्वश्रेष्ठ सद्गृहस्थ के कुल में जन्म लिया है और इस पर भी तुझे वीतराग मार्ग पर चलने का सुअवसर मिला है। फिर भी रे मूढ़ श्रात्मन् ! तू इस सुयोग को क्यों क्षणिक एवं विनश्चर भोग-विलास में बिताये है रहा हैं? हे आत्मन्! मोहनिद्रा में पड़े-पड़े तुम्हें चिरकाल व्यतीत हो गया । तुम्हें पता नहीं है कि कर्मचक्र किस प्रकार तुम्हारे आत्म-गुण रत्नों की लूट कर रहा है। जागो, अब भी नहीं जाग रहे हो ! जीवन व्यापार में लाभ उठाने के इच्छुक प्रत्येक मानवात्मा के लिये कविवर की यह पवित्र प्रेरणा न मालूम कब तक स्फूर्ति प्रदान करती रहेगी। 1
कविवर बुधजन के पूर्ववर्ती व परवर्ती अनेक हिन्दी के कवियों ने विलास नाम से रचनाएं की हैं। सच तो यह है कि १६वीं शताब्दी से १६वीं शताब्दी तक के कवियों में इस प्रकार की रचना करने की एक परम्परा ही चल पड़ी थी । विलास नामक रचनाओं की परम्परा सम्बन्धी संक्षिप्त तालिका कालक्रमानुसार निम्न प्रकार है :
१.
करले हो जीव, सुकृत का सौदा करले । परमारथ कारज करले हो ||
उत्तम कुल को पायक, जिनमत रतन लहाय । भोग भोग ये कारने, क्यों शठ देत गमाय ॥ व्यापारी वन ग्राइयो, नर-भव हाट-भंभार । फलदायक व्यापार कर, नातर विपत्ति तयार || भव अनन्त बरती फिरयो चौरासी बन मांहि । अब नरदेहीं पायक, अध खोवे क्यों नाहि || जिनमुनि भागम परखकें, पूजो करि सरभान । कुगुरु, कुदेव के मानवे, फिर्यो चतुर्गति धान | मोहनी-मां सोवता, डूबी काल अटूट | " बुवजन" क्यों जागो नहीं, धर्म करत है लूट || सौदा करले, करते हो जीव सुकृत का सौदा करले हो ।1
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afa बुधजन, बुधजन विलास, पद संख्या २३५ जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, १६१/१ ह्ररीक्षन रोड, कलकत्ता