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___ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
भारतीय नीति काव्य की अक्षय राशि हैं। जैन धर्म की प्राचार प्रधानता के कारण जैन साहित्य में भी नीति उक्तियो प्रधान लक्ष्य बनकर ग्राई है। मध्यकालीन हिन्दी काब्याकामा में तुलसी, बिहारी, रहीम व वृन्द के समान बनारसी दास, धानतराय', भूधरदास, बुधजन प्रादि जैन कवि भी उन नक्षत्रों में से हैं जो अपने विवेक-आलोक से अज्ञानान्धकार से भूल मटोहियों का पथ प्रशस्त करते रहे हैं तथा प्रागे भी करते रहेंगे।
कषि की नीति सम्बन्धी प्रसिद्ध रचना बुधजन सतसई एवं अन्य रचनात्रों का मध्ययन प्रस्तुत करने के पूर्व नीति शन्द की व्याख्या प्रस्तुत करना आवश्यक है। यह निम्न प्रकार होगी
नीति-शब्द प्रापणात धातु "नी" (णी) तथा भावार्थक प्रत्यय (क्तिन् ति के संयोग स निष्पन्न होता है । इसका अर्थ है नयन (ले जाना) प्रथवा प्रापण (पहुंचाना। परन्तु आज कल यह प्रायः उक्ति अर्थ में प्रयुक्त होता है ।
हिन्दी के कवियों ने नीति शब्द का प्रयोग सर्वत्र उमित अर्थ में ही किया है । हाल कवि ने प्राकृत भाषा में 'माथा सप्तगती' की रचना ईसा की प्रथम द्वितीय शताब्दी के लगभग की थी। उसी के अनुकरण पर मुक्तक काव्य में सतसई की रचना हिन्दी में होने लगी । सर्वाधिक श्रेय "बिहारी सतसई' को प्राप्त हुआ । शृगार की रचना होते हुए भी यह इतनी लोक-प्रिय हुई कि इसके प्रमुकरण पर, विक्रम सतसई, मतिराम सससई, बुन्दसतसई, वीर सवसई प्रादि अनेफ सतसई ग्रन्थ लिखे गए हैं।
प्रस्तुत रचना भी इन्हीं सतसई ग्रन्थों की पद्धति पर ७०२ दोहों में लिखी गई है । इस सरस नीति पूर्ण रचना में देवानुराग शतक, सुभाषित नीति: उपदेशधिकार और विराग भावना ये चार प्रकरण हैं।
प्रथम-देवानुराग-शतक मक्ति प्रधान है। इस खंड में कवि ने १०० दोहे लिखे हैं । दास्म-माव की भक्ति अपने प्राराध्य के प्रति प्रगट की गई है । अपनी मालोचना करना और जिनेन्द्र की महानता को व्यक्त करना ही कवि का लक्ष्य है
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मल्प बुद्धि बुधजन ररुयो, हितमित शिवपुर पंथ ॥ अषन्नन : , इष्ट छत्तीसी, पाना १४ हस्तलिखित प्रति से । १- पी प्रापणे, पाणिनिः सिद्धान्त कौमुधो, पृ. सं. ४७० ई. सन् १९३८
निर्णय-सागर प्रेस, बम्बई। २- 'स्त्रियां क्तिन' पाणिनी, अष्टाध्यायी, ३-३-६४ निर्णय सागर प्रेस, अंबई ३- शर्मा,राजनारायण एम. ए. मध्यकालीन कवि और उनका काव्य,
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