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बुधजन द्वारा निमद्ध कृतियां एवं उनका परिचय
बिलावल (२५) प्रासापरी (२६) राग-सारंग (२७) राग सुहरी सारंग (९८) पूरवी साल (२६) राग धनाक्षी (३०) राग गौरीताल (३१) राम ईमन (३२) राग दीपचादी (३३) काफी कनड़ी (३४) पनड़ी जलद (३५) मोटी (३६) राग अंगला (३७) राग अहिंग (३८) राग खंभाषत (३९) राग परज (४०) राग कांहरो (४१) राग प्रभारणो (४२) राग केदारो (४३) सोरठा इक्तालो (४४) सोरठ जलद (४५) राग विहागड़ो (४६) राग विहंग (४७) राग जे जैवंती (४८) मालकोष (४६) राग कालिंगड़ो (५०) गजल रखता (५१) राग मल्हार (५२) मल्हार रूपक ।
भाषा-दुधजन क्लिास की भाषा बम मिश्रित राजस्थानी है। कवि, राजस्थान के प्रमुख नगर जयपुर के निवासी थे। जयपुर उस समय हिन्दी म साहित्य का प्रमुख केन्द्र था । कारक रचना में ब्रज की विशेषता पाई जाती है। कवि की इस रचना में संयुक्त बगौ को स्वर विभक्ति के द्वारा पुथक करने की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है । प्रथा-सरव (सर्व) जनम (जन्म) खेवर (क्षेत्र) सुभाव (स्वभाव) सबर (शब्द) परतीसि (प्रतीति) प्रातमा (प्रास्मा) पदारथ (पदार्थ) . दरस (दर्य) सत्वारथ (तत्वार्थ) सरधान (श्रद्धान)। इसी प्रकार--
संयुक्त दों को सरल बनाने की पद्धति भी मिलती है। यथा स्तुति का (युति) स्वरूप का (सुरूप) मुति का (दुति) जन्ममरण का (जामन-मरण) स्थान का पान इत्यादि ।
मुहावरों व लोकोक्तियों के प्रयोग में प्रन्यान्य हिन्दी कवियों की भांति बुधजन में भी भाषा के सौंदर्य का ध्यान रखते हुए उनके सफल प्रयोग किये हैं। यथा
निंदक सहले दुःख लई। वन्दक लई काल्यारण। डूबत जलधि जहाज । कहा कमाई करत है गुड़ी उड़ावन हार । समता नीर बुझाय। बैठेशान जहाज में त उतरे भवपार ।
बुधमन विलास उर्दू एवं फारसी के सन्द जैसे इलाज, स्पाल, सलाह, अरज, पीर, सिरताज, मतलब, दलगीर, दुनियां, जाहर, नहान,मणा इत्यादि मिलसे हैं।
झाद विधाम-वुधजन विलास में कषि ने मात्रिक व परिणम दोनों प्रकार के छन्दों के प्रयोग किये है। माधिक धन्दों में दोहा, सोरठा, चौपाई, सवैया आदि छन्द प्रमुख हैं। वणिक छन्दों में कवि ने अनेक छन्दों के सफल प्रयोग किये है, जो उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है। उपयुक्त तालिका कवि के चन्द शाम का स्पष्ट परिचय देती है।