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जीवन परिचय
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देश लिखा है। ढूंढाड़ी भाषा में अच्छे साहित्य की रचना हुई। पं० टोडरमल जी की कृतियों में उसके निखरे हुए रूप के दर्शन होते हैं । "2
३. कवि का सामाजिक जीवन
महाकवि बुधजन भारत के अग्रगण्य गायकों में से थे। उनके प्रशान्त हृदयसागर से शांन्ति का अपर सन्देश लेकर जो धारा बह निकली, विश्व उसे देखकर हो गया। वे सांसारिक मोह माया के वातावरण में रहकर भी उससे अछूते
रहे 1
जयपुर में अनेक साहित्यज्ञ हुए हैं और इसके लिए वह अपना एक विशेष स्थान रखता है । उस समय देश का शासन-सूत्र "मोहम्मद शाह" के हाथों में था । बुधजन भी जयपुर के साहित्यज्ञ । साहित्य प्रेम उन्हें बचपन से ही था, उन्होंने अपने इस साहित्य प्रेम को अपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक निभाया। ये साहित्य चितन में सदालीन रहने वाले लब्ध प्रतिष्ठ कवि थे। उन्होंने जितना हो हमसे दूर रहने का प्रयत्न किया है, उनके अमर-काव्य ने उनको उतना ही अधिक हमारे संपर्क में ला दिया है।
"बुधजन " शान्ति के सच्चे उपासक थे और इसीलिए उन्होंने कविता भी की। उनकी कविता में न तो कोई प्रदर्शन है और न बाह्याडम्बर ही। वे चिरशांति स्थापना के परिपोषक थे, उन्होंने शांति की रूपरेखा बड़ी विलक्षणता से अंकित की । प्राणिमात्र इरासे सुरक्षित रह सकेगा । एक दूसरे के अधिकार को नष्ट नहीं कर सकेगा 1 चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति अध्यात्म-रस का रसिक बने । वे स्वयं एक चिंतनशील व्यक्ति थे। सदा ही मनन और चिंतन करते रहते थे ।
कविवर बुधजन के समय में हिन्दी साहित्य के पूर्ण वैभव का विकास हो रहा था । उनके जीवन का बहुभाग जयपुर में व्यतीत हुआ था । पं. सदासुखजी, पं. बख्तावरमलजी, पं. तनसुखलालजी, पं. वृन्दावनजी, काशी पं. भागचन्दजी हंसागढ़, पं. बस्तावरमलजी, पं. दौलतरामजी द्वितीय श्रादि कवि के समकालीन विद्वान थे । निःसंदेह कवि का साहित्यिक व्यक्तिगत व सामाजिक अनुभूति का क्षेत्र विपुल था। सरलता, सादगी व धार्मिक रुचि बुधजन की रचनाओं में प्रस्फुटित हुई । वे हस्थ में गृहस्थी में रहते हुए भी उनकी वृत्ति निरीह एवं सात्विकता की प्रतीक थी । कवि का संपूर्ण जीवन श्राध्यात्मिक था । पांडित्य प्रदर्शन से वे सर्वथा दूर थे। उन्होंने साहित्य-साधना में ही अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर
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प्रान्त वर्ष ११, किरा ६, पृ० २४३, वीर सेवा मन्दिर, दरियागंज, दिल्ली |