________________
२४
कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
" द्वारा से पंचास अधिक नव संवत् जाना तीज शुकल वैशाख, ड़ाल पट् शुभ उपजानों ॥
1
कवि की द्वितीय बड़ी रचना है "बुधजन विलास" | इसमें विभिन्न रागरागिनियों से युक्त पदों एवं भजनों का समावेश है । इसमें सैद्धान्तिक विषयों की प्रधानता है और उसी कारण इस रचना का नाम बुधजन विलास रखा गया है । वि. सं. १८६० से १८७८ के मध्य लिखी हुई रचना इसमें है ।
कवि की तृतीय बड़ी रचना है "बुधजन सतसई" जिसका रचनाकाल वि. सं. १८७६ है । ग्रंथ की प्रशस्ति में कविवर स्वयं लिखते हैं
--
C
संवत् द्वारा से श्रमी एक बरतें घाट | ज्येष्ठ कृष्ण रवि अष्टमी, हूवो सतसई पाठ 112 afa की
$
:
पूर्ण क्रिया था । कविवर इस ग्रंथ की प्रशस्ति में लिखते हैं संवत् द्वारा से विषं अधिक गुण्यासी देश । कार्तिक सुदि पंचमी, पूरन ग्रंथ असेस ॥
बड़ी रचना है "तत्वार्थबोध" कवि ने इसे वि. सं. १८७६ में
कवि को पंचम बड़ी रचना है "पंचास्तिकाय" इस रचना की प्रशस्ति में fiकवि ने रचना काल का उल्लेख निम्न प्रकार किया है ।
४.
५.
रामसिंह नृप जयपुर से, सुदि प्रासीज गुरुदिन दसें । उगी से में घट हैं प्राठ, ता दिवस में रच्यो पाठ || कवि को छटी रचना "ब मान पुराक्षा सूचनिका है ।" यह कीति द्वारा रचित संस्कृत ग्रंथ के अनुकरण पर लिखी गई है। महावीर के अनेक भत्रों का भावपूर्ण वर्णन है। रचनाकाल वि० सं० १८६५ श्रगहन कृष्णा तृतीया गुरुवार है। ग्रंथ की प्रशस्ति में कविवर लिखते है : सकलकीति मुनिरच्यो, बचनिका ताकी बांची 1 तछन्द को रचन वृद्धि, बुत्रजन की रांची ॥ उगनीसी में घाटि पांच संवद वर अगहन कृष्ण तृतीया हुत्रो ग्रंथ पूरन सुरगुरु दिन 115
--
१. बुधजन छहढाला, पृ० ३९, सुवमा प्रेस, सतना प्रकाशन |
२.
बुधजन : बुधजन सतसई पद्य क्रमांक ६६६, १० १४५ प्र०सं०, सनावद । ३. सुधजन तत्वार्थबोध, पृ० सं० २७७ ए० सं० ११४, प्रकाशन कन्हैयालाल
गं चाल, लश्कर |
सुजन : पंचास्तिकाय भाषा, हस्तलिखित प्रति वि० जैन मन्दिर, जयपुर । बुधजन व मानपुरारण सुचनिकाः पच सं. ७७-७८ हस्तलिखित प्रति दि० अंन मन्दिर, जयपुर ।
भट्टारक सकल इसमें भगवान