Book Title: Kasaypahudam Part 10
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Mantri Sahitya Vibhag Mathura
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गा०६२] पालमपडिउटीमधाचप्रमिलाला म्हाराज ११
१८. एदाणि वे वि अहियारवत्थूणि एगेगपयडिपडिनद्धाणि पादेक्कं चउवीसमणियोगद्दारेहि अणुमग्गिऊण तदो पच्छा 'कदि आवलियं पवेसेदि' ति एदस्स सुत्साययवस्स अस्थविहासा कायब्वा, तेसु अविहासिदेसु तस्सावसराभावादो त्ति एसो एदस्त सुत्तस्स भावस्थो । काणि ताणि चवीसमणियोगद्दाराणि त्ति वुत्ते समुकित्तणादीणि अप्पाबहुअपजंताणि ।
१९. संपहि जहासंभवमेदेहि अणियोगद्दारेहि मुलपयडिउदीरथा एगेगुत्तरपयडिउदीरणा च परूषणदेण सुत्तेण समप्पिदमुच्चारणाबलेण वत्तइस्सामो । तं जहा-उदीरणा चउन्विहा—पयडिउदीरणा द्विदिउदीरणा अणुभागुदीरणा पदेसुदीरणा चेदि । पयडिउदीरणा दुविहा--मूलपयडिउदीरणा च उत्तरपयडिउदीरणा च । मूलपवडिउदीरणाए तत्थेमाणि सत्तारस अणियोगद्दाराणि-समुकित्तणा सादि० अणादि० धुव० अद्भुव० सामित्तं जाव अप्पाबहुगे त्ति ।
२०. समुकित्तणाणुगमेण दुविहो गिद्देसो-ओपेरण आदेसेण य । ओघेण मोह० अस्थि उदीरगा च अणुदीरगा च । एवं मणुमतिए । प्रादसेण णेरइय० मोह० अस्थि उदीरगा। एवं सब्दणेरइय-सव्यतिरिक्खमणुम्सअपज०-सव्वदेवा ति । एवं जाव० ।
२१. सादि०-अण्णादि०-धुव०-अद्भुवाणु० दुविहो णि-अोघे० श्रादेसे० !
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१८. एकैक प्रकृतिम सम्बन्ध रखनेवाले इन दोनों ही अधिकारवस्तुओंका पुश्चक् पृथक चौबीस अनुयोगद्वाराके आश्रयसे अनुमागंण करके इसके बाद 'कदि प्रावलियं पवेसेदि इस सूत्राश्ववक अर्थका व्याख्यान करना चाहिए, क्योंकि उक्त दोनों अनुयोगद्वारोंका व्याख्यान किये बिना उक्त सूत्रवचनके व्याख्यानका अवसर नहीं है। इस प्रकार यह इस सूत्रका भावार्थ है । वे चौवीस अनुयोगद्वार कौनसे हैं ऐसा पूछने पर समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पब हुत्व पर्यन्त ये चौबीस अनुयोगद्वार हैं ऐसा कहा है ।
१६. अब यथासम्भव इन अनुयोगद्वारोंका श्राश्रय लेकर मूलप्रकृतिउदीरणा और एकैकउत्तरप्रकृतिउदीरणाका कथन इस सूत्रसे प्राप्त हुए पुच्चारणाके बलसे बतलाते हैं । यथा-उदीरणा चार प्रकारकी है-प्रकृतिउदीरणा, स्थिति उदारणा अनुभागउदीरणा और प्रदेशउदीरणा। प्रकृति उदीरणा दो प्रकारको है-मूलप्रकृति उदीरणा भौर उत्तरप्रकृति उदीरणा ! मूलप्रति उदीरणाके ये सत्रह अनुयोगद्वार है-समुत्कीर्तना, सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, और स्वामित्वसे लेकर अल्पबहुत्व तक।
६२०. समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-मोघ और आदेश । भोप्रसे मोहनीयके उदीरक और अनुदीरक जीव हैं । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके उदीरक जीव हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यच, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवों में जानना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
६२१. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओष