Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
राजाए कह्यु-" हे देवी! अशोक वृक्ष पण कंइ कहे छे; अर्थात् तेने जोवाथी पण कंइ सूचित थाय छे. (एवं कहीने राजाए वात उडावी दीधी एटले स्पष्ट उत्तर आप्यो नहि.) २६. परंतु स्वामी- ए वचन सांभळीने अने तेना मुखनी मलीनता जोइनेज राणी जमीनपर पडी गइ अने मूर्छित थइ गइ, कारणके हृदयनो भाव मुखनी चेष्टाथी प्रगट थाय छे. २७. त्यारे राजाए मोहथी मोहित थईने राणीने जागृत करी अने का-कारणके पिशाचपीडा अने महा कष्ट थवा छतां पण पुरुषत्व जागृत रहे छे. २८. "हे राणी ! स्वप्न देखवाथीज तुं केम मने तत्काळ मरेलो समझे छे ? जे लोक फळवाळा बृक्षनी रक्षा करवा इच्छे चे, ते तेने बाळता नथी; तेथी तुं मने अत्यारथीज केम मारे छे ? २९. विपत्ति दूर करवाने माटे मनुष्योने शोक करवाथी शो लाभ थाय छ ? तप के उष्णता, दुःख निवारण करवाने माटे कोई आगमां पडतुं नथी. ३०. तेथी एम निश्चयथी जाणी ले के, आपत्तिनो उपाय धर्मन छे. कारणके जे देशमां दीवो बळतो रहे छे, त्यां अंधकार होतो नथी; अर्थात् धर्मरुपी दीपकज विपत्तिरुपी अंधकारनो नाश करनार छे. " ३१. स्वामीनां आ प्रकारनां वचन सांभळीने तेने धीरज आवी अने ते पहेलांनी माफक पति साथे फरी रमण करवा लागी, कारण के दुःखनी पीडा थोडाज वखतने माटे थाय छे ३२.

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132