________________
७४
त्यार पछी स्वामी त्यांथी चालीने कोई बागमां गया, कारण के मन घणुं करीने एवी वस्तु जोवानी उत्कंठा करे छे के जेने तेणे पहेलां दीठी होय नहि. ६२. ते बगीचाना आंबाना फळने कोई पण मनुष्य धनुष्यथी पाडी शकतो नहोतो. ठीकज छे के जे मनुष्योमां शक्ति होती नथी, तेमने सहज काम करवुं पण कठण लागे छे. ६३. परंतु स्वामी ते फळने पोताना बाणथी छेदीने बाणनी साथेज लाव्या; अर्थात् ते केरी तेमना बाणमांज छेदाईने चाली आवी, कारण के प्रत्येक कार्यमा एवो उत्साह करनार पुरुषज ईच्छित फळने पामे छे. ६४. आ काम जोईने जेनुं बाण निशान पर लाग्युं नहोतुं तेने बहु आश्चर्य लाग्युं, कारण के उत्तम काम अशक्त पुरुषोने आश्चर्यकारकज लागे छे. ६५. तेथी तेणे स्वामीथी डरतां डरतां नम्र थईने पोतानुं आ वृतान्त कर्छु;--कारण के समर्थ पुरुषोनी आगळ असमर्थ मनुष्य तुच्छ छे. ६६.--" हे धनुर्विद्यामां चतुर ! हुं जे कई कहुं छं, ते आप करो के न करो, अने मारुं वचन कडवुं पण लागे, परंतु आप तेने कृपा करीने अवश्य सांभळो. ६७. आ मध्यदेशमां एक हेमाभा नामनी नगरी छे. त्यां एक दृढमित्र नामनो क्षत्रिय (राजा) तथा नलिना नामनी तेनी स्त्री छे. ६८. अने तेने सुमित्र आदि केटलाक पुत्र छे, जेमां एक हुं पण छं. अमे बधा भाई यद्यपि उमरमां मोटा थया छीए, परंतु विद्यामां मोटा थया नथी; अर्थात् अमने विद्या आवडती नथी. ६९. तेथी अमारा पूज्य पिता एवा पुरुषनी