Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 90
________________ हवे एक दिवस घणाज गोवाळीआ गायोना रोकावाने लीधे राजाना आंगणामां आवीने रडवा लाग्या, कारण के अत्यन्त पीडा थवाथी प्राणी पोतानी रक्षा करनार पासे रक्षानी आशा करे छ. २७. क्षमावान् जीवंधर तेमनुं करुणाजनक रुदन सांभळीने रही शक्या नहि, कारण के जो कोईने नाश थवाथी अने दुःखथी न बचाववामां आवे, तो लोकनी मर्यादा केम रहे? २८. ससराए रोक्या, पण ते तेमना रोकेला न रह्या अने गायोने छोडाववाने गया, कारण के ज्यारे शक्ति वगरनो पुरुष पण अपमान सहन करी शकतो नथी, तो शक्तिवाळा अथवा प्रबळ पुरुषोनुं तो कहज शुं ? ते केवी रीते सहन करी शके ? २९. परंतु त्यां जतांज जे लोक गायोने चोरीने लइ गया हता, ते स्वामीना मित्र बनी गया, कारण के ज्यारे भाग्यनो उदय थाय छे, त्यारे लाडो शोधनारने पण रत्न मळी जाय छे. ३० एक बीजाने जोवाथी स्वामी अने स्वामीना ते मित्रोमां एक सरखी प्रीति थई गई. निश्चयथी एक कोटीगत स्नेह अर्थात् एकंगी प्रीति मूर्योनीज चेष्टा छे, बुद्धिमानोनी नथी. अभिप्राय ए के, बुद्धिमानोमा बन्ने तरफथी एक सरखोज प्रेम होय छे. ३१. , शत्रुओने मित्र थएला जोईने पोताना जमाईना विषयमां राजाने बहुज आश्चर्य थयु. सत्य छे, के पुण्यात्मा पुरुषोने सेना आदि समृद्ध सामग्रीथी रहित होवा छतां पण तेथी रहित नहीं

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