Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 112
________________ १०३ मारनारनेज मारीने राज्य लई लीधुं ! कारण के जे कंई थनार होय छे, ते अवश्य थई रहे छे. भावी कोईथी टळी शकतुं नथी. ४९. पोताने जीववानी ईच्छाना विस्तारथी जेणे राजाने ठग्यो हतो - मार्यो हतो, ते काष्ठांगार पण मार्यो गयो ! सत्य छे के, बीजानो नाश करनार पोतानोज नाश करनार थाय छे. ५०. जुओ ! ते यक्ष तो फक्त क्षणवारना उपकारथी प्राणानी रक्षा करनार थई गयो, अर्थात् तेणे जीवंधरनो जीव बचावी दीघो अने काष्ठांगार जेने सत्यंधरे बधुं राज्य सोंपी दधुं हतुं, ते कृतघ्न थई गयो - तेणे पोताना उपकारकनोज जीव लई लीधो ! तेथी कहे छे के, स्वभाव बदलातो नथी. ५१. अपकार अने उपकार करवाथी सज्जन अने दुर्जनमां कोई प्रकार अंतर पडतुं नथी; अर्थात् सज्जनो साथे अपकार करवामां अवे, तोपण ते सज्जन रहे छे अने दुर्जनो साथे उपकार करवामां आवे, तोपण ते दुर्जन रहे छे. जेम सोनुं बाळवाथी पण चळके छे, परंतु कोयला कोई पण प्रकारथी (धोवाथी पण ) शुद्ध, थता नथी. ५२. खाली अने भरी दशामां अर्थात् धनवान अने निर्धननी अवस्थामां पण सज्जन अने दुर्जनमां भेद पडतो नथी. जुओ, सुकाई गएली नदी पण खोदवाथी मी पाणी नीकळे छे, परंतु भरेला समुद्री मीटुं पाणी मळतुं नथी. " ५३. जीवंधरना सुराज्यमां ते देशमां ए प्यारी कवत प्रसिद्ध थई गई के, ""सुंदर राजावाळी उत्तम पृथ्वी सुखनो अनुभव

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