Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 130
________________ थयु. ९१. योगीन्द्रनु आ वाक्य सांभळीने जीवंधर महाराज राज्यथी एवा डर्या के जेमके साप वीजळीना खरवाथी डरे छे अने पछी नमस्कार करीने पोताना नगरमां आव्या. ९२. त्यार पछी तेमना नन्दाव्य आदि नाना भाईओए अने तेमनी आठे स्त्रीओए पण सद्धर्मरुपी अमृतनुं पान क्युं अने तेथी ते सर्व विषयभोगोना सुखने विष तुल्य समझ्या. ९३. त्यारे त्यां विद्वान जीवंधर स्वामी गंधर्वदत्ताना पुत्र सत्यंधरनो राज्याभिषेक करीने अर्थात् तेने गादीपर बेसाडीने पोते पोतानी आठे स्त्रीओ साथे भगवान, समोसरण प्राप्त कर्यु. ९४. __समवसरण सभामां आवीने पूज्य राजाए श्रीमहावीर तीर्थकरनी पूजा करी अने वारंवार स्तुति करी ९५.-हे भगवान ! हुं संसारना जन्ममरणना रोगथी सदा पीडित अने भयभीत रहुं छ, तेथी आप जेवा अकारण वैद्यना उपस्थित होवा छतां पण शु ते तीव्र पडिा सहेवा योग्य छ ? अर्थात् आप एवो उपाय करो के, जेथी आ पीडा सहेवी पडे नहि.९६. आप बधाना हितकारी छो, सर्व कई जाणो छो, प्रारब्धना बधां कर्मोनो नाश करी शको छो, अने हुं एक भव्य छु. पछी मारो आ जन्ममरणरुप भवरोग केम दूर थतो नथी ? ९७. हे मोहरहित भगवान ! हुं आ देहरुपी पुराणा अने मोटा वनमा मोहरुपी दावानळथी बळी रह्यो छु. अने तेथी निरन्तर मोहित थई रह्यो छु, मारी रक्षा करो! रक्षा करो! ९८.हे वतिराग! बधी विपत्तिओनुं फळ आपनार संसाररुपी विषवृक्षना मारा रागरुपी अंकुरोने जडथी उखेडाने फेंकी दो ! ९९. हे रक्षा करनार

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