Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
"दिगंबर जैन" पत्रनो वधारो.
श्री वीतरागाय नमः।
| Reeccceboosaceasog
श्री जीवंधर चरित्र lio.com.0000000000
क्षत्रचूडामणि
गुजरा ती अनुवाद 0000000000000
मुंबाईनिवासी स्वर्गवासी शेठ
भगवानदास कोदरजीना स्मरणार्थे प्रकाशक
तेमना पुत्र ठाकोरभाई झवरी मुलचंद कसनदास कापडीआ| तरफथी "दिगंबर जैन" पत्र
ऑ. संपादक, ना ग्राहकोने छठा वर्षमा "दिगंबर जैन"-सुरत. (पांचमी) भेट.
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
रुवर्ग. शेठ भगवानदास कोदरजी स्मारक ग्रंथमाळा नं. १
दिगंबर जैन ग्रंथभाळा नं. १७
श्री वीतरागाय नमः ॥ श्रीमद् वादीभसिंह सूरिविरचित श्री जीवंधर चरित्र.
(क्षत्रचूडामणि ग्रंथ) मूळ संस्कृतना हिंदी अनुवाद, गुजराती भाषांतर कता डॉ. भाइलाल कपूरचंद शाह-नार (खेडा.)
संशोधक अने प्रकटकर्ता, मूळचंद कसनदास कापडीया. ऑनररी संपादक, "दिगंबर जैन"-सुरत.
2059.2
मुंबाइ निवासी स्वर्ग. शेठ भगवानदास कोदरजीना स्मरणार्थ तेपना पुत्र ठाकोरभाइ झवेरी तरफथी "दिगंबर जैन"
पत्रना ग्राहकोने छठा वर्षमा (पांचमी) भेट. प्रथमावृत्ति
प्रत १६०० वीर संवत २४३९ ................ विक्र. सं. १९६९
मल्ल
सनामसार.
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Published by Moolchand Kisondas Kapadia Honourary Editor, “Digamber Jain ”-SURAT.
Printed by Matoobhai Bhaidas at the "Surat Jain Printing Press”,
Khapatia Chakla-SURAT.
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रस्तावना
विक्रम संवतना लगभग ११ मा सैकामां थइ गयेला . दिगंबर जैन आचार्य श्री वादीभसिंहसूरिए आ "क्षत्रचुडामणी" याने “जीवंधर चरित्र" ग्रंथ संस्कृत काव्यमां रचेलो छे, जेनो हिंदी अनुवाद लाहोरनिवासी वृद्ध, विद्याविलासी अने धर्मप्रेमी लाला मुंशीलालजी जैनी एम. ए. (गवर्नमेंट पेशनर) द्वारा तैयार करावीने मुंबाईना 'जैनग्रंथ रत्नाकर कार्यालय' द्वारा " जैनहितैषी" पत्रना संपादक श्रीयुत नाथुराम प्रेमीजीए प्रकट कर्यो छे, जेनुं गुजराती भाषांतर अमदावादनी शेठ प्रेमचंद मोतीचंद दिगंबर जैन बोर्डिगना एक आगला विद्यार्थी अने हाल नार(खेडा)मां डॉकटरी धंधो करता डॉ. भाइलाल कपुरचंद शाहे फुरसदनी वखतमां तैयार करी मोकली आपलं, ते संशोधन करीने आ ग्रंथ प्रकट करवामां आवे छे.
आ ग्रंथना नायक श्री जीवंधर स्वामी क्षत्रियोना चुड़ामणी अर्थात् वीरशिरोमणी हता, तेथी आ काव्यग्रंथy नाम क्षत्रचुडामणी रखायलं छे. संस्कृत साहित्यमां आ एक अपूर्व ग्रंथज छे. आ ग्रंथनी कथा एटली तो रुचिकर, सुंदर, चित्तने आर्कषण करनार तथा अनेक कहेवतोअने दृष्टांतोथीभरपुर छेके, जेथी वांचकोने गम्मत साथे अपूर्व ज्ञान प्राप्त करवानुं एक
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
उत्तम साधन छे, तथा एमांनी दरेक कहेवत कंठस्थ करवा लायक छे. आपणे चोतरफ द्रष्टी दोडावीरों, तो मालुम पडशे के, आपणा श्वेतांबरी बंधुओमां गुजराती भाषामां पुष्कळ ग्रंथो बहार पडी गया छे अने नवीन नवीन बहार पडताज जाय छे, पण आपणामां गुजराती भाषाना ग्रंथो मात्र आंगलीना वेढा उपर गणाय तेटलाज हजु प्रकट थयेला छे, तेमज गुजरातना दिगंबर जैनोमां उपदेशना अभावने लीधे वांचननो शोख विशेष न होवाथी, जो कोइ पुस्तक किंमतथी प्रकट करवामां आवे छे, तो तेनी मुद्दल किंमत उपजवी पण मुश्केल थइ पडे छे, जेथी लगभग ४ वर्ष थयां अमोए एक एवो प्रयास आरंभेलो छे के गुजराती भाषामां नवीन नवीन पुस्तकोना भाषांतरो करी प्रकट करवा अने तेनो ज्यां सुधी बने त्यां सुधी मफत अथवा तो जुज किंमते फेलावो करवो. आ प्रयासमां अमोने धीमे धीमे सफळता प्राप्त थती जाय छे, जे दि. जैन कोमने एक आनंददायक बीना छे.
- आ मुजब धर्म परीक्षा, सुदर्शन शेठ, सुकुमाल चरित्र, मनोरमा, वगेरे ग्रंथो गुजराती भाषामां प्रकट करी जुदा जुदा ग्रहस्थो पासे मदद मेळवी, तेनो मफत फेलावो थइ चुक्यो छे अने आ ग्रंथ पण ते मुजब तदन भेट तरीकेज वेंचवा गादे प्रकट थाय छे. . .
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
- मुंबाई निवासी दानवीर जैनकुलभूषण शेठ माणेकचंद हीराचंद जे. पी. ना भाणेजना भाणेज भाइ ठाकोरदास भगवानदास झवेरी के जेओ मुंबाई दिगंबर जैन प्रांतिक कोन्फरन्सना उपदेशक विभागना सेक्रेटरी तथा ही. गु. जैन बोर्डिगना आ. सेक्रेटरी छे, तेओए पोताना स्वर्गवासी पिताजी शेठ भगवानदास कोदरजीना स्मरणार्थे आ ग्रंथ अने ए पछी एवा अनेक ग्रंथो प्रकट करवानी जे स्थायी गोठवण करी छे, ते अत्यंत धन्यवादरुप अने बीजा भाइआए अनुकरण करवा योग्य छे. जो आ मुजब मृत्युना स्मरणार्थे शास्त्रदान माटे स्थायी रकम काढबामां आवती रहे, तो भाविष्यमां ढगलाबंध पुस्तको गुजराती भाषामां मफत प्रकट थइ शके. आवी रीते शास्त्रदान करवाथी पुण्य, कीर्ति, अमरनाम अने चारे प्रकारना दाननी प्राप्ति थाय छे, माटे श्रीमंत बंधुओर्नु आ बाबत उपर लक्ष खेंची आ टुंक उपोद्घातथी विरमीए छाए. वीर संवत २४३९ ।
जैन जाति सेवक.
मुलचंद कसनदास कापडीया चैत्र सुदी ४ ता. १०-४-१३ ) ओ. संपादक “ दिगंबर जैन ''-सुरत. .
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
00000000000310000
स्वर्ग. शेठं भगवानदास कोदरजी स्मारकग्रंथमाळानो उपोद्घात.
सुरतना वत्नी परंतु व्यापारार्थे मुंबाई निवासी वसा हुमड दि. जैन ग्रहस्थ शेठ भगवानदास कोदरजी विक्रम संवत १९६७ मां मुबाइमां स्वर्गवासी थया, ते वखते पोताने हाथे पोतानी सावधानीमांज रु. ३५००) नी रकम विद्यादान अने शास्त्रदान माटे एवी रीते स्थायी तरीके काढी गया छे के, आ रकम शेठ हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिग (मुंबाई ) ना ट्रस्ट फंडने स्वाधीन राखवी अने तेमांथी रु. २०००) ना व्याजमांथी जैन विद्यार्थीओने स्कोलरशीप आपवी अने तेमां प्रथम हक दिगंबरी विद्यार्थीनो राखवो. तथा रु. १५०० ) ना व्याजमांथी दर वर्षे एकेक धार्मिक पुस्तक प्रकट करावी सुरतमां वैशाख सुद १५ने दीने विद्यानंद स्वामीना मंदिरनी वर्षगांठ निमित्ते विद्यानंद स्वामी उपर सर्वे जैनोने वहेंचवं तथा सुरतथी प्रकट थता " दिगंबर जैन " पत्रना ग्राहकोने पण भेट तरीके वहेंच. आ मुजब आ ग्रंथमालानी शरुआत थाय छे अने तेना प्रथम पुस्तक तरीके 0 आ " श्री जीवंधर चरित्र " याने "क्षत्र चुडामणी" ग्रंथ आ विद्याविलासी गृहस्थना स्मारक तरीके तेमना फोटा सहित प्रसिद्ध करवामां आवे छे.
प्रकटकर्ता.
!000000000
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वर्गवासी शेठ भगवानदास कोदरजी-मुंबाई. जन्म. विक्र.सं.१९११. मृत्यु. विक्र.सं. १९६७.
"Jain' Printing Press -Surat.
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥
श्री वादीभसिंहसूरि विरचित,
श्री जीवंधर चरित्र.
Dett
( क्षत्र चूडामणी)
प्रकरण १ लुं.
नी भक्ति मुक्तिरुपी कन्याने वरवामां द्रव्यनुं काम करे छे, अर्थात् वर कन्याने पहेरामणी पल्लं आपीनेज विवाह थाय छे तेम, जेनी भक्तिथीज मुक्ति प्राप्त थाय छे, एवा अंतरंग अने
बहिरंग लक्ष्मीना स्वामी श्री जीनेंद्र भगवान ! आप संपूर्ण भक्तोनी ईच्छा पूर्ण करो. १.
जे
15
हुं जीवंधर स्वामीनुं चरित्र संक्षिप्त रीतथी वर्णन करूं छु; कारण के बधुं अमृत पीवाथीज कंई सुख प्राप्त थतुं नथी. थोडुं पीवाथीज थाय छे. सारांश ए छे. के, जेवी रीते थोड़े अमृत पण सुखकारक छे, तेवीज रीते संक्षेपथी कहेलं पण ओ चरित्र आनंदने उत्पन्न करनार थशे. २.
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
२
सुधर्म नामना गणधरे श्रेणिक राजाना प्रश्न करवाथी जेवी रीते वर्णन कर्तुं हतुं, तेवीज रीते हुं पण आ चरित्रनुं मोक्ष पामवानी इच्छाथी वर्णन करूं छु. ३.
आ लोकमां जंबुद्वीपने सुशोभीत करनार भरतखंडनी अंतर्गत हेमकोशोनी अर्थात् सोनानी खाणोथी शोभाने धारण करनार एक हेमांगद नामनो प्रदेश छे. ४. अने ते प्रदेशमां राजपुरी नामनी राजधानी सुशोभित छे, जे विधात्राए बनावेली राजराजपुरी अर्थात् अलकापुरीनी रचनामां मातानी समान आचरण करे छे; अभिप्राय ए हे के, यद्यपि अलकापुरीनी रचना सर्वथी उत्तम छे, परंतु आ नगरी ते अलकाथी पण श्रेष्ठ छे. ५. आ नगरीमां सत्यंधर नामनो राजा राज्य करतो हतो; ए राजा सत्य बोलनार (वक्ता), वृद्धोनी सेवा करनार, बहुज बुद्धिमान, सदा उद्योग करनार अने आग्रह के हठ वगरनो हतो. ६. आ राजानी विजया नामनी मुख्य अने प्रसिद्ध पट्टराणी हती; जेणे पोताना पातित्रत्यादि गुणोथी संसारनी संपूर्ण स्त्रीओ - पर विजय प्राप्त कर्यो हतो, अर्थात् सर्वने जीती हती; अने तेथीज तेनुं नाम विजया राखवामां आव्युं हतुं. ७. तःपुरनी बधी स्त्रीओमांथी आनापर अधिक प्यार राखतो हतो, अने कोइपर एटलो स्नेह राखतो नहोतो; कारणके सौभाग्य बहु दुर्लभ छे, अर्थात बधी स्त्रीओ सौभाग्यवती होती नथी, कोइ कोइ होय छे. ८.
राजा अं
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
जो के निष्कंटक राज्य करनार आ राजा बुद्धिमानोनो शिरोमणि हतो, तोपण पोतानी राणी विजयामां रातदिवस आशक्त रहतो हतो अने कई जाणतो नहोतो. ९. जे पुरुषोनुं चित्त विषयोमा लागेलुं रहे छे, तेना बधा गुण नाश पामे छ. तेनामां पाण्डित्य रहेतुं नथी, मनुष्यभाव रहेतो नथी, कुलीनता रहेती नथी अने सच्चाइ रहेती नथी. १०. कामी माणस कोइ वातथी डरतो नथी; पारकी सेवा संबंधी दीनताथी, चाडी खावा थी, निन्दाथी, अने पोतानो पराभव थवाथी पण-तिरस्कार थवाथी पण डरतो नथी. ११. कामथी पीडीत माणस भोजन, दान, विवेक, वैभव अने मानादिक सर्वने छोडी दे छे; बाजूं तो शुं, परंतु पोताना प्राणनो पण त्याग करी दे छे. १२.
पछी ते राजाए एवं धार्यु के, बधुं राज्य काष्ठांगारने सोंपी दउं; कारणके जे लोक राग के अनुरागथी आंधळा होय छे तेने विचार के अविचार होतो नथी; अर्थात् ते ज्यां सुधी सारी रीते ओळखवामां आवे नहि, त्यां सुधी सुंदर मालुम पडे छे. १३. ते वखते तेना मुख्य मुख्य मंत्रिओए आवीने कयु के, हे देव ! आपने विदित छे अने आप जाणो छो, तोपण अमारी आ प्रार्थना सांभळो; १४. ज्यारे राजाओए पोताना हृदयपर पण विश्वास करवो जोईए नहिं, तो पछी बीजा मनुष्य उपर भरोसो राखवा सर्वथा अनुचित छे; राजा नटोनी माफक आचरण करे छे, अर्थात् फक्त बहारथी विश्वासपात्र देखवामां आवे छे. लोक समजे छे के, अमारा पर
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
विश्वास करे छे, परंतु अंदरथी एवं होतुं नथी. कोईनो पण विश्वास करतो नथी. १५. ज्यारे धर्म अर्थ अने कामनुं एक बीजानो विरोध कर्या विना यथोचित सेवन कराय छ; अर्थात् केवळ धर्मज सेवन करातो नथी, तेम अर्थ ( धन ) अने काम पण नहि, परंतु त्रणे जीतवा जोईए. तेटला परिमाणमां सेवन कराय छे, त्यारेज निर्विघ्ने सुख प्राप्त थाय छे, अने पछी अनुक्रमे मोक्ष अर्थात् चोथा पुरुषार्थनी प्राप्ति थाय छे. १६. तेथी तथा राजाओए सुख प्राप्त करवानी इच्छाथी धर्म अने अर्थ छोडवा नहि; अने जो आप केवळ कामद्वारा सुखनी इच्छा करता हो, तो ते थइ शकती नथी, कारणके निर्मूळने सुख क्या ? अर्थात् कामना मूळभूत धर्म अने अर्थ (धन) छे. ज्यारे ए बन्नेज नहि होय, त्यारे कामसेवन केवी रीते होय ? १७. जे वस्तु नाश पामनार छे अने आगळ आववावाळी छे, तेने पहेलां प्राप्त करवी जोइए. अने ज्यारे ते प्राप्त थइ गइ, त्यारे तेना फळोनो विचार करीनेज आगळ कोइ उपाय करवो जोइए, नहि तो पश्चात्ताप करवो पडे छे. १८.
जो के मंत्रिओए राजाने ए रीते सर्व उंचुनाचु जणाव्यु, तोपण तेणे मूर्खताथी काष्टांगारने राज्यभार सोंपी दीधो; सत्य छे के, बुद्धि कर्मने अनुसार काम करे छे, अर्थात् जेजु थनार होय छे तेवीज बुद्धि मुझे छे. १९. विरक्त पुरुषोनो समय विषय भोगादिकनो आंधळो विचार करवामां अर्थात् तेने मूर्खतानुं काम समजवामां व्यतीत थाय छे, परंतु राजा प्रबळ भोगादिकथी
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
आकृष्ट थईने अने गाढ रागमां लिप्त थईने पोतानो समय गाळवा लाग्यो. २०.
एक दिवस उंघमां सूतेली विजया राणीए प्रभातने वखते अर्थात् पाछली रात्रे स्वप्न दीयुं; कारणके ज्यां सुधी स्वप्न आवतुं नथी, त्यां सुधी शुभ के अशुभनो (इष्ट के अनिष्टनो) प्रादुर्भाव (उत्पत्ति) कदापि थतो नथी. २१. पछी शौचादिकथी निवृत्त थईने राणी पोताना स्वामी राजा पासे आवी अने अर्धा आसन उपर बेसीने पृथ्वीना उपभोग करनारा राजाने कधुं - " ( मने स्वममां पहेलुं ए देखायुं के एक अशोक वृक्ष छे, जेने कोईए काप्युं छे, पछी तेनी जग्याए एक सोनानुं अशोक देखायुं, त्यार पछी आठ माळाओ दीठामां आवी. ) " २२. राजा आ त्रणे स्वप्नो सांभळीने कंईक उद्विग्नचित्त अर्थात् उदास थई गयो, अने तेनुं फळ क्रम रहित कहेवा लाग्यो; अर्थात् पहलं प्रथम स्वप्न छोडीने पाछलां बे स्वप्ननुं फळ कहेवा लाग्यो. २३. कारणके धन, दौलत, पुत्र, मित्र, स्त्री आदि सर्व कई होवा छतां पण मनुष्योनां हृदयोने पोतानो प्राण नाश थवानो डर शंकु अथवा त्रिशूलनी माफक पीडा आपे छे. २४. हे देवी! तें स्वप्नमां जे तरुण अशोक मोर सहित दीढुं छे तेथी, ए विदित थाय छे के, तारे एक मोटो प्रतापी पुत्र उत्पन्न थशे अने आठ माळाओ तेनी आठ बहुओने बतावे छे, अर्थात् तेनी आठ स्त्रीओ थशे. २५. राणीए कयुं - " हे आर्यपुत्र ! तेना पहेला जे वृक्ष दी हतुं अने फरी तेनो नाश थतो हतो, तेनुं शुं फळ छे ?
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
राजाए कह्यु-" हे देवी! अशोक वृक्ष पण कंइ कहे छे; अर्थात् तेने जोवाथी पण कंइ सूचित थाय छे. (एवं कहीने राजाए वात उडावी दीधी एटले स्पष्ट उत्तर आप्यो नहि.) २६. परंतु स्वामी- ए वचन सांभळीने अने तेना मुखनी मलीनता जोइनेज राणी जमीनपर पडी गइ अने मूर्छित थइ गइ, कारणके हृदयनो भाव मुखनी चेष्टाथी प्रगट थाय छे. २७. त्यारे राजाए मोहथी मोहित थईने राणीने जागृत करी अने का-कारणके पिशाचपीडा अने महा कष्ट थवा छतां पण पुरुषत्व जागृत रहे छे. २८. "हे राणी ! स्वप्न देखवाथीज तुं केम मने तत्काळ मरेलो समझे छे ? जे लोक फळवाळा बृक्षनी रक्षा करवा इच्छे चे, ते तेने बाळता नथी; तेथी तुं मने अत्यारथीज केम मारे छे ? २९. विपत्ति दूर करवाने माटे मनुष्योने शोक करवाथी शो लाभ थाय छ ? तप के उष्णता, दुःख निवारण करवाने माटे कोई आगमां पडतुं नथी. ३०. तेथी एम निश्चयथी जाणी ले के, आपत्तिनो उपाय धर्मन छे. कारणके जे देशमां दीवो बळतो रहे छे, त्यां अंधकार होतो नथी; अर्थात् धर्मरुपी दीपकज विपत्तिरुपी अंधकारनो नाश करनार छे. " ३१. स्वामीनां आ प्रकारनां वचन सांभळीने तेने धीरज आवी अने ते पहेलांनी माफक पति साथे फरी रमण करवा लागी, कारण के दुःखनी पीडा थोडाज वखतने माटे थाय छे ३२.
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
स्वप्नद्वारा राजाने जागृत करवानुं इच्छ्युं हतुं, परंतु ते जागृत थयो नहि; अर्थात् तेणे विषय भोगने छोडीने पोताना राज्यने संभाव्यु नहि. हवे राणीए गर्भ धारण कयों; तेथी मानो के तेणे राजाने फरी संबोधित कर्यो के सचेत थई जाओ. ३३. हवे राजा, राणीने गर्भवती जोईने अने स्वप्मनुं फळ निश्चय करीने पोतानी रक्षाने माटे तत्पर थईने पश्चाताप करवा लाग्यो. ३४. “ हु बहु अभागी छु, के में मंत्रिओनां वाक्योर्नु वृथा उलंघन कयु. “सत्य छे के अविवेकी अर्थात् मूर्ख पुरुष अन्तकाळेज सज्जनोना बचनपर विश्वास करे छे, पहेलां नहि. ३५. विना समये करेली इच्छा मनोरथने पूर्ण करती नथी. जुओ, ज्यारे फळ लागवानो वखत आवे छे त्यारे शुं फूल एकठां करवामां आवे छे ? कदापि नहि." ३६.
राजाए ए रीते मनमां दुःखी थईने पोताना वंशनी रक्षाने माटे एक मयुराकृति यंत्र बनाव्यु; कारणके सज्जनोनी आस्था
आ नाशवान शरीरमां होती नथी, जेटली के यशरुपी शरीरमां होय छे. ३७. अने पछी ते पोतानी गर्भवंती राणीनी दोहद क्रीडाओनो अनुभव करवाने माटे क्रीडा करवा लाग्यो अने तेने ते केकीयंत्रमा (मयुर यंत्रमां) बेसाडीने आकाशमां विहार करवा लाग्यो. ३८.
____एवा वखतमां राजानो वध करवानी कृतघ्नता करनार अने पृथ्वीने पोताना ताबामां लावनार काष्ठांगार विचारवा लाग्यो के-३९. “जीवोने पराधीन जीवन व्यतीत करवाथी
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
तो तेमनुं मरवू सारं छे (पराधीन स्वप्नमां सुख नथी) अथवा वनमां मृगेंद्र के सिंहने प्रभुताई कोणे आपी छे ? अर्थात् प्रत्येक मनुष्य पोतानाज पुरुषार्थ अने बाहुबळथी स्वतंत्र थई शके छे" ४०, पछी तेणे मंत्रिओने कयु के-" राज्यद्रोह करनार दैवत नित्य एम कहे छे के, तमे राजद्रोह करो अर्थात् राजानी साथे वेर करो-तेने मारी नांखो. ४१. परंतु तेनो अंत सारो छ के खोटो अने तेनुं परिणाम शुं थशे, ते वातोने तमे विचारो. आ वार्ता हजु सुधी तर्क वितर्क करीने विचारवामां
आवी नथी अने ज्यारे ते तर्कपर चढशे अर्थात् सारी रीते विचारवामां आवशे त्यारे स्थिर के पाकी थई जशे. ४२. हुं देवना डरथी आ वचन कहेतां पण लजाउं छु अर्थात् मने आ वात कहेतां लाज आवे छे." सत्य छे के, पापीओना मनमां कंई होय छे, वाणीमां कंई अने कार्यमां कई होय छे; अर्थात् पापी अने दुष्ट लोक विचारे छे कई, कहे छे कई अने करे छे कंई. ४३. काष्टांगारनी आ वात सांभळीने कुलीन पुरुष तो निन्दाथी डर्या, संयमी प्राणी हिंसाथी डर्या अने क्षुद्र के हलका पुरुष दुर्भिक्ष के अकाळथी डा. ए रीते बधा सज्जन पुरुषो भयभीत थई गया. ४४. ते वखते धर्मदत्त नामे मंत्रि पोतानोज नाश करवावाळां वचन बोल्यो. कारण के स्वामाना विषयमा जे भक्ति होय छे, ते बहु भारे होय छे अने ते भक्तिथी पोताना प्राणनी पण कई परवा करतो नथी. ४५. धर्मदत्ते कह्यु-"राजाज प्राणीओना प्राण होय छे तेना जीववाथीज प्राणी मात्रनुं जीवन निर्भर छे,
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
९
तेथी राजाओना विषयमां जे कई इष्ट के अनिष्ट कर्म करवामां आवे, ते मानो के बधा लोकनी साथे इष्ट के अनिष्ट करवा जेवुं छे. ४६. ए रीते जे राजद्रोहना करनार छे, ते बधा द्रोहना उत्पादक छे; शुं राजद्रोही पंच महा पापोना करनार नथी ? अवश्य छे; अर्थात् ते हिंसा, जुठ, चोरी, कुशील अने परिग्रह ए पांच महापापोनी करनार छे. ४७. आ लोकमां राजा लोक देव अने जीवधारी बन्नेनी रक्षा करे छे; परंतु देवता पोते पोतानी पण रक्षा करता नथी तेथी सिद्ध छे के, राजाज सर्वोत्कृष्ट देवता छे. ४८. अने वळी सांभळो, - देवता तो फक्त एक देवद्रोही मनुप्यनेज मारे छे; परंतु राजा तो राजद्रोहीना वंशने बल्के वंशथी उल्टा बीजा संबंधी लोकोनो पण तत्काळज नाश करे छे. ४९. धनवान पुरुषोना जीवननो उपाय करनार अने शत्रुओनो नाश करनार राजाओनी अद्मिनी समान सेवा करवी जोईए. जेम अमिनी जो अनुकूल थईने सेवा करवामां आवे छे तो तेथी जीवननो उपाय भोजनादि थाय छे अने जो तेनाथी विरोध करवामां आवे छे तो नाशनुं साधन थाय छे; तेवीज रीते राजाओ साथे अनुकूळता प्रतिकूळता करवाथी हानि थाय छे." ५०
धर्मदत्त मंत्रिनुं एवं धर्मयुक्त वचन पण ते दुष्ट कर्मवाळा काष्टांगारने मर्मभेदी के हृदयविदारक लाभ्युं अर्थात् तेने बहुज खोढुं लाग्युं, सत्य छे के पित्तज्वरवाळाने दूध पण तीखं लागे छे. ५१. तेणे कृतघ्नतादि दोष अने गुरुद्रोह, अने वधा
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
रामा पोतानी निन्दानो पण कई विचार को नहि; कारणके स्वार्थी लोक दोपने किंचित मात्र पण देखता नथी. ५२. .. काष्ठांगारनो एक मथन नामनो साळो हतो. तेने तेनी .(काष्ठांगारनी) वात बहु सारी लागी, अर्थात् राजद्रोह करवानी वातनी तेणे बहु प्रशंसा करी; अने तेनुं आ सारु मानकुंज शत्रुता करनारना हाथमां हथीयार आववा समान थयु. ५३, खेद छे के ए पछी ते दुष्ट बुद्धिवाळाए राजाने मारवाने माटे सेना मोकली. कारण के मोमां गएला दूधने क्यां तो पी शके छे के ओकी शके छ; अर्थात् काष्ठांगारे ज्यारे राजद्रोहनी वात बहार काढी, त्यारे क्यां तो ते तेने दबावी देतो, पेटमा राखतो, के बहार काढीने घात करवाने माटे तैयार थतो. त्रीजो कोई मार्ग नहोतो. ५४
राजा, दरवानना मुखथी आ वात सांभळीने क्रोधनो मार्यो युद्ध माटे उठीने उभो थयो. कारण के युद्धमां राजसीभाव स्थीर रहेतो नथी अर्थात् प्रगट थया वगर रहेतो नथी. ५५. परंतु ते वखते राजा पोतानी गर्भवती प्यारी स्त्रीने अर्धासनथी पडेली अने मरणतुल्य जोईने पाछो उल्टो विचार करवा लाग्यो; कारणके स्त्रीओ माटे निरादर के अपमान सहन थतुं नथी.५६.पृथ्वीपति राजा पोते जागृत थईने पोतानी स्त्रीने जागृत करवा लाग्यो; कारण के पीडा थतां अर्थात् विपत्ति काळमां पंडितोनुं साचं झान जागृत थाय छे. ५७. बस, हवे शोक करवो जोईए
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
नहि; पुण्यरहित पापीओने पापy | फळ नथी मळतुं ? अर्थात् आ सर्व अमारा पापमुंज फळ छे. जो दीवानो प्रकाश जतो रहे छे तो पछी अंधकार संततिने बोलाववानीज शुं अपेक्षा छ ? अर्थात् दीपकना होलवातांज अंधकार पोते पोतानी जातेज आवे छे. ए रीते पुण्य के धर्मनो नाश थवाथी पापनो उदय थाय छे अने पाप, खराब फळ अवश्य मळे छे. ५८. जोबन, शरीर अने धन ए सर्वनो नाश थाय छे, एमां कांइ नवाइनी वात नथी. पाणीनो परपोटो बहु वखत सुधी टकवामां आश्चर्य छे. तेनो नाश थवामां कंइ अचरज नथी. ५९. जेनो संयोग थयो छे तेनो वियोग अवश्य थाय छे. बाजूं तो शुं, पण आ अंगनो अंगनी साथे पण योग रहेतो नथी; अर्थात् देही (जीव) देह छोडीने आ संसारथी एकलो चाल्यो जाय छे. ६०. जो के आ संसार अनादि छे, तो कोइने कोइनी साथे मित्रता नथी अने कोईने कोईनी साथे शत्रुता नथी; अर्थात् कोई पूर्व जन्ममां एक बीजाना मित्र अने शत्रु थई चुक्या छे, तेथी कोईने सर्वथा शत्रु अने मित्र मानवो कल्पना मात्र छे. आ सर्व जुठी कल्पना छे. ६१. राजानां आ प्रकारनां धर्मयुक्त वचनोए राणीना हृदयमां घर कर्यु नहि; कारण के जो बळेली जमीनमा बी वाव्युं होय, तो तेमां अंकुर कदापि फूटता नथी.६२.
त्यार पछी राजाए पोतानी गर्भवती राणीने केकियंत्रमा बेसाडीने पोतेज ते यंत्रने उडाडयुं ! अहो ! दैव केवो कठोर
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
छे ? ६३. ए यंत्रने आकाश मार्गे उपर जवा पछी राजाए मोहवश थईने लडवानुं शरु कर्यु, परंतु सहाय विनानी आंगळी पोते जातेज शब्द करी शकती नथी; अर्थात् ज्यारे राजानी पासे सेना विगैरेनी सहायता रही नहीं अने स्त्री पुत्र पण न रह्यो, त्यारे ते एकलो शुं करी शके एम हतो ? ६४. पछी बहु वखत सुधी युद्ध करीने राजाए विचार्यु के, फोकटमां पाणीओनी हिंसा करवाथी शो लाभ थशे ? अने ते विचारथी तेने वैराग्य थई गयो; कारण के मन गतिने आधिन होय छे, अर्थात् जेवी गति थनार छे तेवाज सारा के नठारा विचार सूजे छे.६५.हे आत्मन् ! ते पोते पोताने आ विषयाशक्तिना दोषमा प्रवृत कर्यो हतो, तेथी हवे तुंज आ विषरुपी अथवा हळाहळ झेर समान विषय भोगादिकमां इच्छा करवी छोडी दे. ६६. हे आत्मन् ! तें आ सर्व (राजपाट वगेरे) ने पहेलां भोगव्यां छे अने हवे तुं एने फरी भोगवाने इच्छे छे. तथा आ तारुं पहेला भोगवेलुं राज्य उच्छिष्ट छे अने तेथी तुं आ उच्छिष्ट (एंटुं) राज्यने छोडी दे; कारणके देहधारी प्राणीओना अनन्त जन्म थाय छे. ६७. जो विषयभोगादिक चिरस्थायी होवा छतां पण अवश्य नाश पामे छ, तो तुं पोतेज तेने छोडी दे; कारणके मुक्ति एमांज छे, नहि तो अनेक जन्ममां पडीने दुःख भोगवq पडशे. ६८. जे पुरुष राज्यमा रक्तचित्त रहे छे तेने ते राज्य छोडी दे छे अने जे राज्यने छोडी दे छे ते राज्य तेनी स्वयं सेवा करवा इच्छे छे,
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेथी विवेकी पुरु षोए राज्यनो त्याग करवो जोइए. ६९. ए रीतनी भावनाथी राजाने उत्कृष्ट राज्य थ्यो. पछी ते तेज लडाईमां संपूर्ण परिग्रहने अने शरीरने छोडीने दिव्य सम्पत्तिने अर्थात् स्वर्गलोकने प्राप्त थई गयो. ७०.
सर्वे नगर वासी अने देशवासी लोको उदास अने विरक्त थई गया; कारण के नवी अने तरतनी पीडाथीज मनुप्योने घj करीने वैराग्य थई जाय छे. ७१. स्त्रीओना विषयमा प्रीति के अनुराग बहु क्रुर अथवा कठोर छे. अने जे लोक रागान्ध थईने तेनाथी ठगाय छे, ते प्राज्य राज्य अर्थात् बहु भारे ऐश्वर्य अने प्राण नो पण त्याग करे छे. सत्य छे, के रागी पुरुष शुं छोडतो नथी ? अर्थात् सर्व कंई छोडी दे छे. ७२. बहु खेदनी वात छे के, मूर्ख माणस स्त्रीओनी जांघना छिद्रमां स्थीत अने मळमूत्रथी भरेला चामडाथी विष्टा खानार सुअरनी माफक सुख माने छ; अर्थात् मूढ माणस महा निकृष्ट विषयभोगादिकमांज आनन्द समझे छे. ७३. स्त्रीओना संगथी जे सुख प्राप्त थाय छे, ते वगर विचारेज रमणीय जणाय होय छे. परंतु ज्यारे ए विचारे के, आ सुख शुं छे, केवु छे, केटलुं छे, क्यां छे, तो पछी ते सुख, दुःखज थइ जाय छे. ७४. निष्फळ अने दुष्फळ बुद्धि अर्थात् फळरहित (व्यर्थ) अने खोटा फळवाळी बुद्धि निवारण करवा छतां पण खोटा काममा प्रवृत्ति थाय छे अने यत्न करवाथी पण सारा काममा प्रवृत्ति थती नथी, तेनुं
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
शुं कारण छे ? ते बतावो. ७५. हे आत्मन् ! जो तुं पापनो हेतु जाणीने पण खोटी वातोनुं निवारण करवामां असमर्थ छे, तो ए समजवु के, ए तारां खोटां कामनी प्रभुताइ छे के जे तने खोटी वाताथी हठावीने सारां काममा प्रवृत थवा देती नथी. ७६. जे बुद्धि पोते जातेज अधम काममां होय छे अने यत्न करवाथी पण शुभ कार्यमा प्रवृत थती नथी तेनो हेतु पूर्व जन्मनां दुष्कर्म छे. अने ए हेतुथी आत्मा पण तेवांज काम करवा लागे छे. ७७. जो दररोज ए रीते विचार करवामां न आवे के हुं कोण छु ? मारामां केवा गुण छे ? हुं क्याथी आव्यो र्छ ? हुं हुं कई प्राप्त करी शकुं छु ? अने हुं कया निमित्तथी छु ? तो मनुष्यनी बुद्धि बे ठेकाणे थई जाय छे, अर्थात् अनुचित कार्योमां प्रवृत्त रहे छे. ७८. मोहनीय कर्म संपूर्ण कर्मोनो बनावनार अने धर्मनो शत्रु छ. ए कर्मथी मोह उत्पन्न थाय छे, जेथी के देहधारी मोहित थाय छे. ७९. हे आत्मा ! तुं शुं करवा लाग्यो हतो अने हवे तुं शुं करे छे ? बहु खेदनी वात छे के तुं पोतानां प्रारंभ करेलां कार्योंने छोडीने बाह्य शरीरादिकथी मोहने वश थाय छे. ८०. हे आत्मा ! आ इष्ट छे, के अनिष्ट छे, ए रीते वृथा संकल्प करीने तुं बाह्य पदार्थोमां केम मुग्ध थाय छ ? तारे पोताना अंतरंगने अर्थात् मनने पोताना वशमा राखवू जोइए. ८१. बहु खेदनी वात छे के, तारुं मन जे बन्ने लाकोनुं अनिष्ट करनार छे अने जेमां शान्त भाव नथी तेने तुं खराब
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५
कहेतो नथी, अने मूर्खताश्री कोइ बीजाने शत्रु मानीने तेथी द्वेष करे छे. तूं जेम, पुरुष बीजाना दोष देखे छे, तेमज जो ते पोताना पण दोष देखे, तो ते समान बीजो कोइ पुरुष नथी. एवो पुरुष शरीरधारी भइने पण निश्चयश्री मूक्त छे, अर्थात् बीजाना दोषनी माफक निजदोषदर्शी पुरुष जीवनमुक्त थाय छे. ८३.
जे वखत त्यांना लोक आ रीते विचारमां निमग्न थह रह्या हता, ते वखत ते मयूरयंत्र जेमां राणी बेठी हती, ते आकाशमां चाल्युं गयुं अने पछी तेणे ते नगरनी बहार स्मशान भूमिमां विज्या राणीने जइने नांखी. अभिप्राय ए छे के, ते यंत्र उडतां उडतां प्रेतभूमिमां जइने पड्युं. ८४.
पूर्वकाळमां श्रुति अथवा शास्त्रोद्वारा जे मनुष्योना पापोनी विचित्रतानां वृतान्त सांभळता हता ते हवे पोतानी आंखोथी प्रत्यक्ष जोइ लो." मानो के जे राणी पहेलां लक्ष्मींनी समान हती ते हवे कई पण रही नहि ! ८५. महाराणीनी आ दुर्दशा जोइने लोकोए आ वातनो सर्व प्रकारथी निर्णय करी लीधो के, अश्वर्य अर्थात् धनसंपति क्षण मात्रमां नाश पामे छे. सत्य छे के, दृष्टान्तथी बुद्धि फरे छे; अर्थात् उदाहरणने जोइनेज खरेखर बात समजमां आवे छे. ८६. जे राणी बे पहोर पहेलां राजानी मोटी मानवंती हती, तेज हवे स्मशानभूमिनी शरणमां जइ पडी छे, तेथी हे पंडितो ! पापथी डरो. ८७.
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
राणीए मू ने वश थइने प्रसूतिनी पडिा जाणी नहि अने तेज दिवसे प्रसव मासमां अर्थात् नवमे महिने पुत्र प्रसव्यो. ८८. ए वखते तेज स्थानमां पुत्रना पुण्यथी कोइ देवी धावना रुपमां तेनी पासे आवीने बेठी; कारणके ज्यारे पुण्यनो उदय होय छे त्यारे कोइ पण वात दुष्प्राप्य थती नथी अर्थात् पुण्यनो उदय थवाथी सर्व कंइ प्राप्त थाय छे. ८९. ते धावने जोइने राणीना हृदयनो शोकसागर उभराइ गयो; कारणके पोताना बंधुओना पासे आववाथी दुःख उभराइ आवे छे अर्थात् तेथी पण वधारे प्रगट थाय छे. ९०. देवीए बाळकना भवाना मध्यमां भमरी इत्यादि अनेक प्रकारनां चिन्ह बतावीने तेनुं माहात्म्य वर्णन कर्यु अने राणीने धीरज आपीने कधु;-९० " हे देवी ! तुं पुत्रना पालण पोषणमां जरा पण चिन्ता करीश नहि. आ क्षत्रिपुत्रने योग्य तारा पुत्रनुं कोईने कोई पालण पोषण अवश्य करशेज.” ९२. आQ कहेतांज कोई पुरुष एवो दीठामां आव्यो, जे पोताना मरेला पुत्रने स्मशान भूमिमां राखीने आव्यो हतो अने सत्यवक्ता योगीन्द्रना वचनानुसार त्यां पुत्रने शोधतो हतो. ९३. तेने जोईने राणीए तेनुं (घाव) वचन खरुं मान्यु; कारण के स्थिर, विसंवाद रहित अविरोधी अने सत्य वाक्यथीज पदार्थनो निश्चय थाय छे. ९४. त्यार पछी राणी बीजो कोई उपाय नहि जडवाथी ते देवीनी प्रेरणाथी पोताना पितानी मुद्रा (वींटी) पहेरेला पुत्रने आशीर्वाद आपीने अन्तर्ध्यान थई गई. ९५.
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
वैश्योनो आगेवान गन्धोत्कट जो के त्यां पुत्रने शोधतो दीठामां आव्यो हतो, ते राजपुत्रने जोइने तृप्त थयो नहि. शुं लाकडं के हलकी वस्तु शोधनार पुरुषना ह्रदयमां मणि जेवी उत्तम वस्तु जोइने प्रीति के आनन्द थतो नथी ? अवश्य थाय छे. ९६. गंधोत्कट ते पुत्रने खोळामां लइने हर्षथी रोमांचित थइ गयो. अने 'जीव' अर्थात् : जवितो रहे ' ए रीते आशीदि सांभळीने तेणे तेनुं नाम 'जीवक' के 'जीवंधर' राख्युः " जीव'' एवो आ आर्शीवाद राणीए पोताना पुत्रने त्यांथी अंतर्ध्यान थती वखते आप्यो हतो. ९७. त्यार पछी तेणे घेर जइने पोतानी स्त्री साथे क्रोधित थइने कां के, तें वगर मरेला पुत्रने अज्ञानथी मरेलो केम कह्यो ? अने पछी आनंन्दित थईने पुत्रने तेने सोंपी दीधो. ९८. वैश्यनी स्त्री सुनन्दाने पण पुत्रने जोईने आनन्द थयो अने तेने हर्षसहित अंगिकार कर्यो; पुत्र प्राणनी माफक प्रीतिदायक होय छे, अने जे पुत्र मरीने फरी जन्म धारण करे छे तेनुं तो कहेज शुं ? ९९.
ए पुत्रनी माता अर्थात् विजयाराणी पोताना भाईने घेर ( पीयेर ) जवानुं इच्छती नहोती. तेथी ते देवी तेने दंडकारण्यनी वचमां आवेला तपस्विओना आश्रममां लई गई. १००. पछी ते तप करती राणीने संतुष्ट अने प्रसन्न करीने देवी पोते कोई बहानाथी चाली गई. मनोकामना सिद्ध थवाथी
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
कोर्नु मन संतुष्ट थतुं नथी? १०१. बिचारी तपस्विनी राणी पोताना मनरुपी घरमा पोताना पुत्रने राखती हती अने जिन भगवानना चरणकमळनुं पण ध्यान करती हती. १०२. घणुंज रु अथवा कोमळ वस्तुओवाळी कोमळ शय्याथी, प्रसव बंधन सहित फुलथी पण जने अत्यंत खेद के दुःख थतुं हतुं, तेज राणीने दर्भनी सेज ( पथारी ) पण सारी लागी ! १०३. पोताने हाथे कापेलां जंगली. घान्यज तेनो आहार अथवा भोजन हतुं अने बीजा अन्नथी तेने कई प्रयोजन नहोतुं; कारण के जे शुभ अने अशुभ कर्म कर्यां होय छे तेनुं फळ अवस्य भागवयं पडे छ. १०४. ___त्यार पछी मूर्ख काष्टांगारे गंधोत्कटे करेला उत्सवने (जे के तेणे पोताना पुत्रने माटे को हतो, ) पोताने माटे समझीने अर्थात् एवं जाणीने के मने राज्य मळवानी खुशीमां एणे आ आनंद मान्यो छे, प्रसन्नताथी गंधोत्कटने बहु धन आप्यु. १०५. तेज वखते ते नगरमा जे पुत्रो उत्पन्न थया हता, तेमने पण गंधोत्कटे काष्टांगारनी आज्ञा लइने पोताना पुत्रनुं ते मित्र बाळकोनी साथे पालणपोषण कयु. १०६. _ पछी गंधोत्कटनी स्त्री सुनन्दाना गर्भथी नन्दाढय नामनो एक बाळक बीजो उत्पन्न थयो. ए बाळकथी जीवंधर बहुज शोभीत थयो; कारण के सारो भाइ मुशीबतेज मळे छे. १०७. ए रीते आ सज्जन बंधुओनो मित्र राजपुत्र दररोज
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
वधतो वधतो निष्कलंक अथवा निर्दोष शरीरवान कान्ति अने। तेजमां शितळ किरणोवाळा चंद्रमाथी पण वधी गयो. १०८.
त्यारपछी बाल्यावस्थाए पहोंचवानी इच्छा करतो अने बधां व्यसन अथवा बुराइओथी दूर रहेतो जीवंधर पांच वर्षनो थइ गयो. सत्य छ, के भाग्य उदय थवाथी पीडा, शुं काम ? १०९. पछी अर्थरहित अस्पष्ट अने तोतडी पण अति मनोहर अने प्यारी वाणीने छोडीने ते अतिशय स्पष्ट वाणीवाळो थइ गयो; कारण के स्त्रीओ पोते जातेज सारा पुरुषने वरे छे. अभिप्राय ए छे के, वाणीरुपी स्त्री पोते जातेज जीवंधरना हृदयमां स्फुरायमान थइ गइ. ११०.
त्यारपछी शुभ पुण्यना उदयथी कोइ आर्यनन्दी नामना प्रसिद्ध आचार्य जीवंधर कुमारना गुरु थया. निश्चयथी गुरुज देव थाय छे. १११. पछी आ राजपुत्रे निर्विघ्न सिद्धि प्राप्त करवा माटे पहेलां सिद्धोनी पूजा करी अने नित्य (अनादिनिधन) वर्णमाळाद्वारा पूर्ण विद्या शीख्यो. ११२.
श्रीमान् वादीभसिंह कविए रचेल क्षत्रचूडामाण ग्रंथमां " सरस्वतीलम्ब" नामे प्रथम प्रकरण समाप्त थयु.
23 E -
ne
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकरण बीजुं.
on
मालालCHIRAINERAL
SunHATTISGARY
methurmen -
HimHE
र पछी मित्रगणथी भूषित राजपुत्र कोई पाठशाळा अथवा विद्यालयमां दाखल थयो, अने त्यां पंडिते तेने बधी विद्याओ भणावी; ए रीते ते बहु मोटो पंडित अथवा विद्वान
थई गयो. १. तेणे गुरुप्रत्ये जे प्रीति, सेवा, उपासना अने चतुराई प्रगट करी, तेथी तेने बधी विद्याओ याद थई गई; अर्थात् जे रीते भूलेली विद्या याद थाय छे, ते रीते तेने सहेलाईथी बधी विद्या आवडी; कारण के गुरुनी शिष्यनी तरफ प्रीतिन बधी इच्छाओ पूरी करनार होय छ, अर्थात् राजपूत्रे विनयपूर्वक गुरुनी सेवा करी अने तेनी आज्ञानुसार बघां काम करूं, तेथी गुरुए प्रसन्न थईने प्रीतिपूर्वक तेने भणाव्यो अने बधी विद्याओमां प्रवीण करी दीधो. २. आ संसारमा जेटला पंडित छे, ते सर्व जीवंधरथी हेठ छे, अर्थात जीवंधर अद्वितीय विद्वान छे, एवो निश्चय करीने आचार्य महाराज तेनापर पोतेज बहु प्रीति करवा लाग्या. ३. जो के मनुष्योने पोतार्नु काम गमे तेवू खोटुं होय पण सफळ थवाथी सारुं लागे छे, तो पछी सारं काम केम सारु लागे नहि ? अने विद्यादानथी वधीने उत्तम कामज क्युं छे ? ते तो सारुं लागवुज जोईए. ४.
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक दिवस गुरुए प्रसन्न चित्तथी पोतानी पासे बेठेला शिष्यने एकांतमां कडं;-५. " शास्त्र विद्याथी सुशोभित हे महाभाग ! ( उत्तम भाग्यवान पुत्र ! ) आ कोईनुं वृतान्त सांभळ के जे विचार करवाथी मनमां अति दया उप्तन्न करनार छे. ६ विद्याधरोना लोकमां लोकपाल नामनो कोई राजा लोकनुं पालन करतो करतो पोतानो समय व्यतीत करतो हतो.७. एक दिवस ते महाराजाए जोतजोतामांज शीघ्र नाश पामतो मेघ जोयो; तेथी मानो ए प्रतीती थई के, उन्मत्तोनुं ऐश्वर्य क्षण मात्रमा नाश पामे छे. ८. तेने जोईने राजाने वैराग्य उप्तन्न थयो; कारण के मोक्षनी ईच्छा करनार भव्यजीवोने समयना पा थवाथी संसारीक पातोमा उदासीनता थई जाय छे. ( जेमके पक्वस्तुमां फळ पाकीने आपो आपज खरी पडे छे). ९. तेथी आ पृथ्वीपति राजाए राज्यकारभार पोताना पुत्रने सोंपाने गुरुपासे जैनमतनी दीक्षा ग्रहण करी, जेमां शरीरने पण हेय एटले त्यागवा योग्य समज्या छे. १०. ज्यारे आ राजा तप करवा लाग्यो, त्यारे केटलाक दिवसे तेने भस्मिक नामनो महारोग थयो, जेथी खाधेलं पधिलं सर्व क्षणमात्रमा भस्म थइ जतुं हतुं.क्षुधा बराबर लाग्या करती हती अने कदापि उदर तृप्ति थती नहोती. ११. ठीकज छे के थोडीज तपस्याथी दुष्कर्मनुं निवारण थतुं नथी. शुं लील लाकडं जराक चीणगारीथी बळी शके छे ? अर्थात बळतुं नथी. १२.
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
शक्तिहीण थइने राजाए राज्यनी माफक तप करवानुं पण छोडी दीg; खरुं छे के-"शुभ कार्यमा घणां बिन आवी पडे छे." ए पुराणी कहेवत छ, आजकालनी नथी. १३. पातकी अर्थात् पापी पुरुष तपनी अंदर बेठो बेठो जे धारे ते पोतानी इच्छानुसार करे छे; जेमके झाडीमां संताएलु नाफल नामर्नु पक्षी मरघां अथवा नानी नानी चकलीओने पकडया करे छे. १४.
पछी ते राजा पाखंडिओनी माफक तप करीने पोतानी इच्छानुसार आचरण करवा लाग्यो; ए बहु आश्चर्यनी वात छे, कारणके जैन मतनी तपस्या तो स्वेच्छाचारथी विरुद्ध छे. १५.
हवे एक दिवस ए भीखारी तपस्वी जो के पोते रोगथी पीडातो हतो, तथापि धर्म करनार पुरुषोने माटे एक मोटो सारो वैद्य हतो ते भूख्यो थईने गंधोत्कटने घेर गयो. १६. कारण के धार्मिक पुरुषज धार्मिकोने त्यां जईने शरण ले छे, अने बीजे नहि. बीजा मनुष्य तो साप नोळीआनी माफक पोतानी प्रकृतिथीज शत्रु होय छे..
त्यार पछी हे पुत्र ! भिक्षुके ते घरमां तारा जेवो श्रेष्ठ पुत्र जोयो अने तें तेने जोईने जाणी लीधुं के आ भूख्यो छे. १८. ते वखते तुं भोजन करतो हतो. तें पाकशाळा (रसोडा) ना अध्यक्षने कयुं के आ भिक्षुकने भोजन आपी दो; त्यारे तेणे (रसोईआए) तेने भोजन आप्यु. १९. परंतु ते पाकशाळामां जेटलं अन्न हतुं तेथी तेनुं उदर पूर्ण थयुं नहि. अहो ! पापी
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३
घोराकृति आशासमुद्रनी कोण पूर्ति करी शके छ ? २०. तेथी तें भोजन करवान छोडी दीधं अने पछी विस्मयपूर्वक बेठेला तें करुणार्थी अथवा तेना पुण्यथी प्रसन्नतापूर्वक पोताना हाथमांनो कोळीओ तेने आपी दीधो. २१. ते कोळीओ खावाथी तेज वखते ते ब्रह्मचारीनी जठराग्नि तृप्त थई गई; जमके आशानो समुद्र निराशाथी पूर्ण थई जाय छे. अहो ! पूण्यनो महिमा मोटो छे. २२. त्यारे ए तपस्वी पण तेज वखते तृप्त थइने लांबा वखत सुधी ए विचारतो रह्यो के हुं आ महान उपकारीनो शो प्रत्युपकार करूं ? २३. पछी एवो निश्चय कर्यो के, एनो प्रत्युपकार परमोत्कृष्ट फळवाळी विद्याज छे, तेथी तेणे श्री. मान् चिरंजीवीने अर्थात् तमने विद्वान बनाव्या. २४. विद्या मळी होय अने जो ते बीजाने आपवामां आवे, तो पण वध्या करे. चोर वगेरे तेने चोरी शकता नथी, अने मननी ईच्छाओने ते पूर्ण करे छे. २५. पंडित्व अथवा विद्याथीज कुलीनता, प्रभुता, सज्जनो द्वारा सत्कार अने सभ्यता मळे छे, अने वधारामां विद्वाननो सर्व जग्याए आदरसत्कार थाय छे. २६. मनुष्यो, पंडित्व जीवन पर्यंत आनिन्दनीय अर्थात् स्तुत्य छे, अने भोक्षनो पण मार्ग छे; जेमके दूध क्षुधानी शान्ति पण करे छे, अने औषधि जेवो गुण पण करे छे. २७.
शिष्ये गुरु पासे आ वात सांभळीने पोतानी वाणीथी तो कई उत्तर दीधो नहि, परंतु गुरुना मोंढानी चेष्टाथीज तेना
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४
अभिप्रायने समजी गयो. ठीकज छे, के शिष्यपणुं अने गुरुपणुं एवुज छे, अर्थात् गुरु शिष्यनी वर्तणुक एवीज होय छे. २८. ते गुरुनी शुद्धि अर्थात् विशुद्धताने जाणीने तेपर तेथी पण अधिक प्रीति करवा लाग्या, कारण के प्राप्त करेल मणिनी शुद्धि जोईने अधिक हर्ष थाय छे. २९. ___ गुरु एवा होवा जोईए के जे त्रणे रत्न अर्थात् सम्यग् ज्ञान, सम्यग्दर्शन अने सम्यक्चारित्रथी युक्त होय, पात्र अने योग्य पुरुषोमां स्नेह राखनार होय, परोपकारी होय, धर्मनुं पालण करनार होय अने भवसागरथी पार उतारनार अर्थात् जन्म मरणना दुःखथी मोक्ष प्राप्त करावनार होय. ३०. शिष्य एवा होवा जोईए के जे गुरुनी सेवा करनार, संसारना आवागमनथी तरनार, नम्र, धार्मिक, सारी बुद्धिवाळा, शान्त स्वभावी, आळस विनाना अने शिष्ट अर्थात् शिक्षा ग्रहण करनार होय. ३१. ज्यारे गुरु प्रत्येनी भक्तिथी मुक्ति प्राप्त थाय छे, त्यारे ते द्वारा बीजी हलकी वस्तुओ शुं प्राप्त थई शकती नथी ? अवश्य थाय छे. शुं तुष अर्थात् भूसुं ( अनाजनां छोडां) त्रिलोकी मूल्यवाळा रत्नना बदलामां पण मळी शकतुं नथी ? अर्थात् जरुर मळी शके छे. गुरुभक्ति त्रिलोकीमूल्य रत्ननी समान छे. ३२. जे गुरुनो द्रोह करनार, कृतघ्न छ, अर्थात् उपकारना वदलामां अपकार करे छे, तेना बधा गुण नाश पामे छे, अने तेनी विद्या विजळीनी माफक क्षणभंगुर होय छे.
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
ठीकज छे के निर्मूळ वस्तु सहाय विना केवी रीते रही शके छ ? ३३ जे लोक गुरुद्रोही छे, ते समग्र जगतनो नाश करनार छे अने ते कदापि विश्वास करवा योग्य थई शकता नथी. जे माणस गुरुनी साथे द्रोह करवाथी डरतो नथी, तेने बीजानी साथे द्रोह करवामां जरा पण भय होतो नथी. ३४. त्यार पछी कृत्यने जाणनार आचार्य विधिपूर्वक कृत्य करनार शिष्यने गृहस्थीओना साचा धर्मनी शिक्षा आपी अर्थात् श्रावकाचारनी बधी वातो बतावी. ३५. पछी गुरुए तेने ए बताव्युं के तेनी उप्तत्ति राजाना वंशथी छे अर्थात् ते राजानो पुत्र छे. प्रसन्न थईने बधो वृतान्त तेने संभळाव्यो. ३६.
ज्यारे गुरुना वचनद्वारा सत्यंघरना पुत्रने ए विदित थयुं के, आ काष्ठांगार तेना बापने मारनार ले, त्यारे तो ते क्रोधमां आवीने काष्ठांगारने मारवा माटे कौवच पहेरीने तैयार थई गयो. ३७. पंडित महाशये तेने वारंवार निवारण पण कर्यु, पण ते शान्त न थयो. हाय ! ज्यारे क्रोधी माणस पोते पोतानोज नाश करी नांखे छे त्यारे तो बीजं शुं शुं करतो नथी? ३८.
गुरुए ज्यारे तेने ए कहीने निवारण कर्यु के- “हे पुत्र ! एक वर्षने माटे वधारे क्षमा कर. बस, एज मारी गुरु दक्षिणा छे ! " अर्थात् तारी पासे हुं गुरुदक्षिणामां फक्त एज इच्छं छं के एक वर्ष सुधी तुं काष्ठांगारने हजु पण छेडीश नहि, त्यारे तो ते शान्त थई गयो. कारणके कयो पुरुष एवो छे के जे गुरुना हुकमनुं उल्लंघन करे. ३९.
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
२६
गुरु क्रोधनी वखते तेनी पराधीनता जोईने पछी तेने आ रीते शिखामण आपी, कारण के गुरुनी वाणी कुमार्ग अथवा अधर्मनो नाश करनार अने सुमार्ग अथवा धर्ममां प्रवृत्त करनार होय छे. ४०. " हे श्रेष्ठ पुत्र ! तुं मोहने वश थइने आटलो क्रोधी केम थयो ? विकारनुं कारण होवा छतां पण विकार उत्पन्न थाय नहि, तेनुं नाम धीरता छे. ४१. जो तुं पोतानुं भुं करनार पर क्रोध करे छे, तो तुं क्रोध के कोपपरज क्रोध केम करतो नथी ? कारण के क्रोध, धर्म अर्थ काम मोक्ष अने जीवननों पण नाश करनार छे. तेना समान भुंडुं करनार बीजुं कोण छे ? ४२. क्रोधरुपी अग्नि पोते पोतानेज अर्थात् क्रोधीनेज भस्म करे छे, बीजी कोई वस्तुने भस्म करतो नथी. तेथी जे पुरुष कोई बीजाने भस्म करवानी इच्छाथी क्रोध करे छे, ते पोतानाज शरीरपर अग्नि नांखे छे. ४३. जो उत्कृष्ट अने निकृष्ट अथवा भलाई बुराईनुं ज्ञान न होय, तो शास्त्रमां परिश्रम करवो निष्फळ छे. जे डांगर (भात) ना दाणामां चोखा नथी, ते कापवाने परिश्रम करवाथी शो लाभ ? ४४. जे लोक तत्त्वज्ञान के शास्त्रविरुद्ध आचरण करे छे, तेने माटे तत्वार्थनुं जाणवुं व्यर्थ अने निष्फळ छे. जे मनुष्य दीवो हाथमां होवा छतां कुवामां पडे छे, तेने दीवाथी शो लाभ : ४५. तेथी तारे तत्वज्ञानने अनुकूल आ रीते आचरण कर जोईए के, मोहादिक चोरोथी बुद्धिरुपी धन चोराई जाय नहि, अर्थात् विचारीने
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
२७ कार्य करवं अने पोतानी बुद्धिने लोभ क्रोध मोहादिकनी वशमा राखवी नही. जेओ स्त्रीओ द्वारा संबंध जोडे छे, अने पोताना स्वार्थ मार्गे चालवाने उत्सुक रहे छे, ते साप समान दुष्ट दुर्जनोनी संगत छोडी देवी जोइए; सापनी अने दुर्जनोनी अहीं समानता बतावी छे. दुर्जननी समान साप पण स्त्रीमुखथी अर्थात् उल्टा मुखथी मार्ग करे छे, अने पोताना मार्गपर चालवाने तैयार रहे छे. सत्य छे, के दुष्ट पूरुष अने साप ए बन्नेज सर्वनो नाश करे छे. ४७. सापने छेडवाथी तो मनुष्योनो देहपातज थाय छे, परंतु दुष्टजनना संयोगथी कुलीनता, प्रभुताइ, पंडिताई, क्षान्ति, (क्षमा) अने यश आदि सर्व कंइ क्षणवारमा नाश पामे छे. ४८. दुष्ट पुरुष बधा लोकने दुष्ट बनावी दे छे, परंतु सज्जन तेमने सज्जन बनावी देता नथी; केमके पदार्थोनो नाश करवो तो सुगम छे, पण तेनुं उत्पादन करवू कठण छे. ४९. सारा पुरुषोए इच्छयूँ के, सर्वथी प्रथम यत्नपूर्वक सज्जनोनी वन्दना करवी. शुं अनायासथी प्राप्त करेलु रत्न आ संसारमा माटीनी माफक स्तुत्य होय छे ? अर्थात् रत्न जो परिश्रम वगर मळी जाय, तो पण ते स्तुत्य होय छे. ए रीते सज्जन पुरुष सदा पूज्य होय छे. ५०
विशेषमां सज्जनोनां वचन अजमायशथी उत्पन्न थएल अमृत छे; अर्थात् अमृत जळाशयथी (जडरुप समुद्रथी) उपजे छे, अने वचनामृत अजळाशय अर्थात् सचेतन ( अजडाशय )
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
२८
सज्जनोना मुखी उत्पन्न थाय छे. ए रीते सज्जनोनां वचनामृत साक्षात् अमृतथी पण उत्कृष्ट छे. अने अन्य गुणमां समान छे कारण के जे रीते अमृतथी जागृति ( चैतन्यता) अने सौंमनस्यत्व (अमरपणुं ) प्राप्त थाय छे, तेज रीते वचनामृतथी पण जागृति अने सौमनस्यत्व अर्थात् सज्जनता प्राप्त थाय छे. ५१. यौवन (जुवानी) अथवा युवाअवस्था, बळ अने ऐश्वर्य अथवा प्रभुता ए हरेक विकारना करनार छे. अने ज्यां एत्रणे एकठां होय, त्यां तो पछी कहेवानुंज शुं छे ? तेथी तेना होवा छतां पण चित्तमां विकार थवो जोइए नहि. ५२. कारण के ते मळवाथी पण सज्जनोना चित्तमां विकार थतो नथी. जे देड़का गायनी खरीना जेटला पाणीमां हाली चाली शके छे, ते शुं समुद्रना जळने रोकी शके छे ? कदापि नहि. सज्जननुं चित्त समुद्रनी समान गंभीर तथा स्थिर होय छे. थोडां कारणोना मळवाथी ते कंटाळता नथी. ५३. देश काळ अने दुर्जन जो के कारण छे, परंतु एकलां ते शुं करी शके छे ? यथार्थमां चलायमान बुद्धि विकार उत्पन्न करनार छे. तेथी पोताना स्वभावमां स्थिर रहेवुं जोइए; कारण के चित्तनी स्थिरताज मुक्तिनुं कारण छे. ५४. पुण्य क्षीण थवाथी हजारो शखामणथी पण धर्मबुद्धि उपजती नथी; परंतु पात्रमां अर्थात् जेनी सत्तामा पुण्य विद्यमान छे, तेमां वगर उपदेशेज बुद्धि पोते स्फुरायमान थाय छे. तेथी सिद्ध थाय छे के, पोतेज पोताना
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
गुरु छ अर्थात् बीजाना उपदेशादि बुद्धि स्फुरायमान थवामां मुख्य कारण नथी. ५५. ए विचारवं जोइए के जे पुरुष धनमां उन्मत्त छे, ते सन्मार्ग अथवा धर्मने सांभळतो नथी, जाणतो नथी, अते ते पर चालतो नथी; अने चाले पण छे, तो कार्यना अन्त सुधी चालतो नथी. ५६. गुरु आ रीते राजपुत्रने आशी दि आपीने अने तेने धीरज रखावीने पोते कोइने कोई रीते तप करवाने चाली गया; कारणके लोकमां प्राण नीकळती वखते कोई उपाय थई शकतो नथी. सारांश ए छे, के गुरुमहाराज कोई पण उपायथी रोकाया नहि अने तप करवाने चाल्या गया. ५७. त्यार पछी ते दिक्षा लईने तप करवा लाग्या अने तेना प्रभावथी नित्य आनन्द स्वरुप मोक्षने प्राप्त थई गया; कारणके विघ्न रहित कारणोथी कार्यनी सिद्धि थाय छेज. ५८.
गुरु देवना तपोवनमा चाल्या जवाथी जीवंधर कुमारने बहुज शोक थयो; मातापितामां अने गुरुमां फक्त गर्भाधान क्रियानीज न्यूनता होय छे. अन्य बधी वातोमां गुरु, माता पितानाज समान छे; तथा गुरुना चाल्या जवाथी जीवंधरने पोताना माता पिताना वियोग समानज शोक थयो. ५९. पछी तेणे तत्वज्ञानना जळथी शोकरुपी अग्नि बुझाव्यो; शुं ठंडीना जागृत थवाथी कदी आ ताप क्लेश के तडकानी पीडा थई शके छ ? कदापि नहि. सारांश ए के, तत्त्वनो विचार करवाथी तेनो शोक शान्त थई गयो. ६०. त्यार पछी जे समये ते पोतानी विद्याथी विद्वा
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
३० नोना हृदयमां, शरीरनी कान्तिथी स्त्रीओना हृदयमां, अने शस्त्रकळानी चतुराईथी रथमां शोभतो हतो, ते समयनी एक प्रासंगिक वात कहेवामां आवे छे; ६१.
एक दिवस घणाज गोवाळीआ राजाना आंगणामां आवीने उभा रह्या अने ए रीते उच्च स्वरथी बोल्या के–“वाघे गायोने रोकी लीधी छे" ६२. काष्ठांगार पण ए अवाजनो शब्द सांभळीने बहु गुस्से थयो; कारण के जो नीच पुरुष मोटानो अनादर करे, तो ते सहन थतो नथी. ६३. अने तेणे गायोने छोडाववाने एक सेना मोकली, परंतु ते पण हारी गई. कारण के पोताना स्थानमां ससखें हाथीथी पण विशेष बळवान होय छे. (कुतरो पण पोताना फळीआमां मीर थाय छे.) ६४.
.. त्यारपछी वाघनी सेना जीती गई, ए सांभळीने भरवाडनां गामोमां पण खळभळाट थयो; अर्थात् शत्रुओथी लडवाने भरवाड पण उत्तेजीत थइ गया. कारणके आजीविकानो नाश थवाथी लोक कोइथी पण डरतो नथी. ६५.
___ हवे ते वखते ते वाघने जीतवाने माटे एक नन्दगोप नामनो पुरुष विचार करवा लाग्यो; कारण के जे लोकोने कोइ प्रकारनी पीडा थाय छे, ते एज चिंता करे छे के, शं करवू जोइए, अने तेथी शुं फळ थशे? ६६. मनुष्योने धन कमावानी अपेक्षाए तेनी रक्षा करवामां, अने रक्षानी अपेक्षाए तेनो क्षय थइ जवामां उत्तरोत्तर अनन्तगणी पीडा थाय छे. ६७. तो
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
पण यथाशक्ति उपाय करवो जोइए अने जो उपाय व्यर्थ पडे, तो तेमां शोक करवाथी शो लाभ थशे ? कंइ पण नहि, कारण के शोक नज करवो ए तेनो उपाय छे. ६८. ए विचार करीने तेणे एवो ढंढेरो पटिाव्यो के, जे वीर पुरुष ए वनवासी वाघने जीतशे, तेने हुं मारी पुत्री अने सात बीजी पण कल्याण पुत्रीओ परणावीश. ६९. सत्यंधरना पुत्र जीवंधरे आ सांभळीने ते ढंढेरो बंध करी दीधो; अर्थात् तेणे ए कबुल कर्यु के हुं वाघने जीतीने तमारा दुःखनुं निवारण करीश, कारण के उदारचित्त पुरुष आ बधा लोकने पोताना कुटुंब समजे छे. ७०. हवे जीवकस्वामी अर्थात् जीवंधर वाघने जीतीने पशुओने लई आव्या; निश्चयथी आगीओ अंधकारनो नाश करी शकतो नथी, सूर्यज करी शके छे. अभिप्राय ए छे के, जे वाघने बीजा कोई जीती शकता नहोता, तेने जीवंधरे जीती लीधो. ७१. नन्दगोप पण गोधनने प्राप्त करीने बहु हर्कत थयो; कारण के प्राणीओने माटे धन प्राणथी पण अधिक श्रेष्ठ छे. ७२. ___त्यारपछी तेणे पोतानी पुत्री जीवंधर म्वामीने आपवाने जळ मूक्युं, कारण के जे मनुष्य अत्यंत स्नेहथी अंध बने छे, ते कृत्य अकृत्यनो विचार करतो नथी, अर्थात् ते ए विचारतो नथी, के आ काम करवू जोईए के आ न करवू जोईए. नन्दगोपे ए विचायु नहिं के, जीवंधर मारी पुत्रीने लेशे, के नहि ?
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
३२
ते कुलीन छे, मोटा छे अने हुं तेथी हलको लुं. ७३. जीवंधरे पण " पद्मास्य आ कन्याने योग्य छे, " एम कहींने तेनुं आपलं जळ ग्रहण करी लधुं; अर्थात् ए कन्यादानना जळनो पोते जाते स्वीकार कर्यो नहि, पोताना मित्रने माटे स्वीकार कर्यो. कारणके सज्जन पुरुषानी प्रीति अयोग्य कायामां थती नथी. ७४. पछी ए कं के, हे श्वसुर ! आप पद्मास्यने माराज जेवो समजो . कारण के खरी मित्रता तेज छे, के जेमां शरीर मात्रनी जुदाइ होय छे. अने कंइ पण भेद होतो नथी७५.
"
त्यार पछी पद्मास्य अग्निने शाक्षी करीने नन्दगापेद्वारा प्रसन्नता पूर्वक मळेली गोदावरीनी पुत्री गोविन्दाने परण्या. नन्दगोपनी स्त्रीनुं नाम गोदावरी हतुं. ७६.
आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभसिंहसूरिए रचेल क्षत्रचूडामणि प्रन्थमां " गोविन्दालम्भ " नामे बीजुं प्रकरण पूर्ण थयुं.
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकरण त्रीजुं.
वे पद्मास्य तो गोविन्दाने परणीने रमण करवा लाग्यो अने राजकुमार शूरवीरतारुपी लक्ष्मीने
प्राप्त करीने क्रीडा करवा लाग्यो. आ विषयमां Food अहिं एक प्रासंगिक वातनुं वर्णन करवामां
3 आवे छे:-१. ते नगरनो अर्थात् राजपुरीनो रहेनार श्रीदत्त नामे एक वैश्य हतो. तणे धन प्राप्त करवानी इच्छा करी, कारण के कयो एवो पुरुष छे के जेने धननी आशा न होय ? अर्थात् धननी आशा सर्वने होय छे. २. पछी तेणे धनोपार्जन- कारण अने तेनुं फळ विचार्यु, कारण के संसारना उपाय विचारवामां मनुष्योने कोई रोकतुं नथी. ३. “ बापदादानुं धन गमे तो विशेष होय, तो तेथी शुं ? कारण के उद्योगी पुरुषने बीजाना अन्नपर गुजरान चलायवू ठीक लागतुं नथी. ४. धन गमे तो बहुज होय, पण ज्यारे आवक होती नथी अने ते धनमांथी खर्चज थयो जाय छे, त्यारे ते बधुं धन खरचाई जाय छे. कारण के निरन्तर भोगमा लाववाथी तो पर्वत पण नाश पामे छे. ५. मनुष्योने दरिद्रताथी वधारे दुःखकारक अने पीडाजनक बीजी कोई वस्तु नथी, कारण के दरिद्रताथी प्राणी प्राण त्याग कर्या विनाज मरी जाय छे अर्थात् जीवताज मरेला छे.६.
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
३४ जेना हाथ खाली छे, अर्थात् जेनी पासे कई नथी, तेना बधा गुण जो प्रसिद्ध करवा योग्य होय, तोपण प्रकाश पामता नथी; अर्थात् दरिद्रना बधा सारा गुण पण नाश पामे छे. बाजूं तो शुं दरिद्रमा विद्या पण होय, तो ते शोभा आपती नथी. ७ दरिद्र निर्धनताथी ठगाइने कई पण करी शकता नथी; बीजूं तो शुं ? दरिद्री पुरुष सर्वथा धनवानना मुख तरफ कंई मळवानी आशाथी जोई रहे छे. ८. धननी प्राप्तिनुं फळ एज छे के, तेथी सज्जनोनुं पालणपोषण थाय. जुओ, जो के लींबडाना फळने ( लीबोळीओने ) कागडा खाय छे, तोपण लींबडा- फळ आम्रफळ ( केरी ) नी माफक स्तुत्य होतुं नथी. ९. असत् पुरुषो अर्थात् दुर्जनोनी वस्तु बन्ने लोकने हितकारी होवा छतां पण सुखदायक नथी. जेमके, खारा समुद्रमां गयेलं नदीनुं पाणी खारं थई जवाथी कशा कामर्नु रहेतुं नथी तेम. १०." ए रीते विचार करीने ते वणिक्पति अथवा वैश्य होडीमां बेसीने चाल्यो. कारण के धननो ईच्छनार फक्त समुद्रनोज आश्रय करतो नथी, परंतु पृथ्वीना अंतर्भागनुं पण अवगाहन करे छे.
ते जळयात्रा करनार वणिक केटलाक दिवस पछी देशान्तरथी बहुज धन एकटुं करीने पाछो फर्यो. निश्चयथी जीवोने धन कमावानुं कारण अतळ ( धार्या विनानुं ) छे. अर्थात् आ विषयमा तर्क चाली शकतो नथी. ए समजमां
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
आवी शकतुं नथी के, कोने कया कारणथी अथवा कया प्रय. नथी धन प्राप्त थशे. १२.
ज्यारे ते नाविक (नावमां बेठेलो वणिक) समुद्रनी आ पार आवी गयो त्यारे अहीं आवतां धारासंपातथी अर्थात् खूब जोरथी वरसाद वरसवाथी तेनी होडी अटकी, कारण के विपत्तिनो समय मनुष्योने विदित थतो नथी अर्थात् विपत्तिनी घडी क्यारे आवशे ते जणातुं नथी. १३. अने होडीवाळा ते होडीना समुद्रमां डूबतां पहेलांज शोकरुपी समुद्रमां डूबी गया. तेमना शोकनो कंई अंत रह्यो नहि. अने पछी नाव (होडी) नो नाश थवाथी तो तेमणे परम दुःखनुं दृष्टान्त दीलु. १४. परंतु वैश्ययात्री श्रीदत्त बुद्धिमान हतो, तेथी ते कोई रीते गभरायो नहि, कारण के जो मूर्ख अने ज्ञानी बन्ने गभराइ जाय, तो पछी मूर्ख अने ज्ञानीमां भेदज शो रह्यो ? १५ " हे पंडितो! आगळ आवनार विपत्तिओना विचारथी तमे केम दुःखी थाओ छो ? शुं सापना भयथी डरीने तमे सापने मोढे हाथ देशो? अभिप्राय ए छे के, जे दुःख आवनार छे, ते तो आवशेज. तेना विचारमा पहेलेथजि दुःखमां पडवू ए शुंबुद्धिमानोनुं काम छ ? १६ विपत्तिनो उपाय ए के शोक करवो नहि. 'ड नहि ' एज एनो उपाय छे. अने ते डर नहि अर्थात् निर्भयपणुं तत्वना जाणनारनेज होय छे. तेथी हे बुद्धिमानो ! तत्वोने जाणवाने प्रयत्न करो. १७" ते बुद्धिमान वणिक नाववाळाने
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६
पण आ रीते शिक्षा अने उपदेश आपवा लाग्यो. कारण के यथार्थ ज्ञान मनुष्याने माटे बन्ने लोकमां सुखकारी छे. १८. एटलामां तेणे नाश पामती नावमां दोरडी बांधवाना एक लाकडा टुकडाने दीठो. सत्य छे के ज्यारे आयुष्य बाकी होय छे, त्यारे प्राणीओना प्राण बची जाय छे. १९. त्यार पछी श्रीदत्त ते लाकडाना टुकड़ा पर चढीने एक द्वीप के देशमां पोंच्यो, अने त्यां पहोंचीने बहु प्रसन्न थयो. जो मनुष्यनुं राज्य जतुं रहे परंतु प्राण बची जाय, तो ते बहु संतुष्ट रहे छे. २०. जोके तेनुं एकटुं करेलुं बधुं धन जतुं रधुं हतुं, पण ते गरायो नहि. अने ए विचारवा लाग्यो के, हवे आगळ शुं करवुं ? जे पुरुषमां तत्वज्ञानरुपी धन होय छे, तेनुं दुःख पण सुखने माटे होय छे. अर्थात् यथार्थ ज्ञानी पुरुष दुःखमां पण सुख अनुभवे छे. २१. " हे मूर्ख आत्मा ! तृष्णानी अग्नि पीडित थइने तुं मोहने वश केम थाय छे ? कारण के बने लोकना हितना नाश करनार पुरुष अने तृष्णाथी पीडीत पुरुषमां कंई भेद नथी. अर्थात् जे पुरुष तृष्णार्थी व्याकुळ अने आशा निमग्न रहे छे, ते बन्ने लोकमां पोताना हितनो के कल्याणनो नाश करनार छे. २२. हे आत्मा ! जो तुं बन्ने लोकमां पोतानी भलाई ईच्छतो होय, तो आशा तृष्णा छोडी दे. आशाथी तारा धर्म अने सुखनो नाश थाय छे. आशा करवी ते फळ पामवानी इच्छाथी वृक्षनो नाश करवा बरोबर छे. धर्म अने सुखने कापनार आशा, फळ
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
पामनारने वृक्ष कापवा तुल्य छे, अर्थात् एवी आशा रहेवाथी धर्म अने सुखरुपी फळआश्रयनो नाश थवाथी ते क्यारे उप्तन्न थाय छे ? २३. अहो ! 'आ संसार असार छ,' हवे आ वात प्रत्यक्ष दीठी. कारण के कर्यु कंई अने थई गयु कई. २४. तेथीज मोटा मोटा योगी अने रुषि-मुनी घणीज धनसंपदावाळी इंद्रपदवीने पण छोडीने मुक्ति प्राप्त करवा माटे तप करे छे. एवा योगीने हुं नमस्कार करूं छु." २५. ए रीते विचार करतो पण ते वणिक जो कोई मनुष्य नजरे पडतो तो तेने पोतानी पीडानुं वर्णन कहेतो हतो. कारण के ज्यां सुधी मोहनीय कर्मनो नाश थतो नथी, त्यां सुधी योगिओने पण वच्चे वच्चे चपळता आवी जाय छे. २६.
एटलामा एक मनुष्ये आ रीते आवीने तेनी बधी व्यथा सांभळी, तेथी मालूम पडतुं हतुं के आ जाणी बूझीने आव्यो नथी. २७. आ बधी वात सांभळीने अने कोई बहानाथी राजाभूधर अर्थात् विजयागिरिपर लइ जइने तेणे वणिकपतिने पोताने आववानुं बधुं कारण आ रीते कह्यु. २८.
विजया पर्वतथी दक्षिण श्रेणीए मंडनरुप एक गान्धार नामे देश छे. ते देशमां नित्यालोका नामनी एक प्रसिद्ध नगरी छे. २९. ते नगरीनो राजा गरुडवेग तथा तेनी राणी धारिणी छे अने तेनी पुत्री गंधर्वदत्ता छ; जे यवीयसी अर्थात् पुर जुवान थई गई छे. ३०. ज्योतिषिओए गंधर्वदत्ताना जन्मलग्नमां कडं के आ पृथ्वीपर राजपुरी नगरीमां आ एक वणिावीजयी स्त्री थशे.' ३१. तेथी राजा के जे मारा
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
पर बहु प्रीति राखे छे, तेणे पोतानी स्त्री साथे एकान्तमा सलाह करीने मने ए आज्ञा आपी के,-३२. हमारे श्रादित्त साथे परंपरानी मित्रता छ अर्थात् तेना अने अमारा कुळमां बापदादाओथी मित्रता चाली आवी छे, तेथी जल्दी जइने श्रीदत्तने अहीं लइ आवो. ३३. माझं नाम घर छे. में पराधीन थईने नावना टूटी जवानो भ्रम आपने जणाव्यो अने पछी एक आवश्यक कार्य माटे आपने अहीं लाव्यो छु. ३४.” श्रीदत्त पण आ वात सांभळीने वहु प्रसन्न थयो, कारण के मनुष्योने दुःखनी पछी सुख बहुज सारुं लागे छे. ३५. पछी ते वैश्य विद्याधरोना राजा गरुडवेगने जोईने बहुज सुखी थयो. पोताना मित्रना, तेमां राजा मित्रना जोनारथी विशेष बीजो कोण सुखी होय छे? एक तो सामान्य मित्रना दर्शनथीज बहु सुख थाय छ, पछी जो ते राजा होय, तो कहेवानुज शुं छे ? ३६. पछी ते विद्याधरे पोतानी पुत्री तेने सोंपी दीधी कारणके मित्र एवाज होवा जोइए, के जे प्राणोमां पण प्रमाण होय; अर्थात् प्राण आपवामां पण कोइ प्रकारनो वांधो समजे नहि. ३७. अने तेने तरतज विदाय कर्यो, कारण के पुत्रिना युवान थवाथी वृथा वखत खोवो ठीक नथी. ३८. गृहस्थोने कन्याओनी सावधानीथी रक्षा करवानुं कष्ट बहुज पीडा आपे छे. ३९.
हवे श्रीदत्त ते कन्याने साथे लईने पोताना नगरमां आव्यो अने तेणे तेनी बधी वात पोतानी स्त्रीने कही दीधी. निश्चयथी स्त्रीओनी बुद्धि खोटीज होय छे. ४० पछी तेणे
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
राजानी आज्ञा लईने छावणीमां ए ढंढेरो पीटाव्यो के, आ मारी सर्वोपमा योग्य पुत्री, जे वीणा वगाडवामां सर्वथी अधिक प्रवीण हशे, तेने परणाववामां आवशे. ४१. कारण के राजाओनी आज्ञाथी माणसोने निर्भयता रहे छे. जो राजाओनी आज्ञा न होय तो बीजी वात तो एक बाजु रही, परंतु सदाचारी पुरुषोनो सदाचार पण स्थीर रहेतो नथी. ४२. एटलामां बधा राजा महाराजा वीणा मंडपमां आवी पहोंच्या. आ जगतमां एवा कोण छे के जे स्त्रीना अनुरागथी ठगाय नहि, अर्थात् स्त्रीनी प्रीति सर्वने खेची लावे छे. ४३. वीणा वगाडवामां बधा राजा कन्याथी हारी गया. नक्की जाणो के, अधुरी विद्याज कंइ कंइ निरादर अने अपमाननुंज कारण थाय छे. ४४. परंतु जीवंधरकुमारे ते कन्याने वीणामां जीती लीधी, कारणके पूर्ण विद्या बन्ने लोकनां फळ आपनारी छे.४५.
हवे ते कन्या पोतानी हारने जयथी पण वधारे अधिक जाणीने तेनी पासे आवी, कारण के लक्ष्मी पुण्यवानने शोधीने तेनी पासे पहोंची जाय छे. ४६. त्यार पछी ते केळनी समान जांघवाळी कन्याए जीवकना हृदयमां माळा घाली दीधी. 'तप करो', एज ते सर्वने कहेती हती. ४७.
काष्ठांगारे आ जोईने बीजा राजाओने भडकाव्या, कारणके दुर्जनोनुं एज लक्षण होय छे के ते बीजानो प्रताप अने भाग्योदय जोईने खेद करे छे. ४८. " वैश्यनो पुत्र जे सोना
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
चांदी सिवाय तांबा पीतळनी धातुओने खरीदे छे अने वेचे छे अर्थात् जे पैसा टकाना व्यवहार कर्या करे छे, ते राजाओने योग्य एवी सुंदर स्त्रीओने केवी रीते लइ ले ? आ बहु आश्चयनी वात छे. ४९.” ए रीते भडकाववाथी ते राजा युद्ध करवा लाग्या, कारणके बुद्धि स्वभावधीज अकार्य करवाने तत्पर थइ जाय छ, पछी खोटी शीखामण पामवाथी तो कहेवुज शुं ? अर्थात् एवी अवस्थामां तो खोटा कार्यमा प्रवृत्त थाय छेज. ५०. परंतु ते धनुर्धारियोना चक्रवर्तीथी ते बधा राजा हारी गया. हजारो कागडाना एकत्र थवाथी शुं प्रयोजन नीकळे छे ? ते बधाने माटे तो एक पत्थरज बहु छे. ५१.
बधा सज्जन पुरुषोए हर्षथी ए कह्यु के-आ कन्या मन योग्य पुरुषमां आशक्त थयुं छे. आ लोकमां चंद्रमाथीज अमृतनी उत्पत्ति थाय छे. शु आ आश्चर्य छ ? अर्थात् आमां कोई आश्चर्यनी वात नथी. तेने एवोज योग्य वर मळवो जोईतो हतो. ५२.
त्यार पछी अग्निने साक्षी आपीने श्रीदत्ते आपेली गंध. वदत्ताने जीवकस्वामी विधिपूर्वक परण्या. ५३.
आ प्रमाणे श्रीमान् वादीमसिंहसूरिए रचेल श्री क्षत्रचूडामणि ग्रंथमां 'गंधर्वदत्तालम्भ' नामे त्रीजुं प्रकरण पूर्ण थयु.
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकरण ४ थु.
HिACTREND
Fi+IGHFIC
TERHITमातभमतCHI
र पछी जीवंधरस्वामी पोतानी स्री गंधर्वदत्ता साथे रमण करवा लाग्या-सुख भोगववा लाग्या, कारण के संसारमा मनुष्य पोताने योग्य वस्तुओनेज भोगववाथी सुख अनुभवे छे.१
मरा-HELHTRATHIRTANTANEER
हवे वसन्तऋतुए नगरवासीओने जळक्रीडा करवा लगाड्या अर्थात वसन्तऋतु आववाथी नगरना बधा माणसो फाग खेलवा लाग्या. जे लोक अनुरागथी आंधळा छे, तेमने वसन्तज भाई छे. जेमके अग्निनो बंधु पवन. २. जीवंधर कुमार पण पोताना मित्रोनी साथे नदीना जळनी आ नवी क्रीडा जोवाने गया, कारण के संसारना मनुष्य हमेशां नवी नवी वस्तुओने ईच्छे छे. ३.
त्यां केटलाक ब्राह्मणोए एक कुतरो, के जेना बोटवाथी घी दूषित थई गयुं हतुं, तेने मारी नांख्यो. कठोर हृदयवाळा अने धर्मना विरोधी लोक शुं शुं कार्य करता नथी अर्थात् ते सर्व कंई नीच कर्म पण करी नांखे छे. ४. हाय ! अधर्मी पुरुष जीवोने विना कारणज मारी नांखे छ अने जो तेने मारवामां जरा पण कहेवा सांभळवानुं कारण मळी जाय तथा कोई निवारण करनार न होय, तो तो पछी कहेज शुं ? ५.
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
४२ कुमारे कुतरानी दुर्दशा अने पीडा जोईने बहु खेद कर्यो. करुणा अथवा दया तेनेज कहे छे के, जेमां बीजाना दुःखमां पोताना दुःखनी समान पीडा अनुभवाय छे. ६. तेणे बहु कई प्रयत्नं पण कर्यो, परंतु ते कुतराने बचावी शक्यो नहि, तेथी तेणे परलोकना हेतु अने कल्याणने माटे ते कुतराने ( मरती वखते) पंच नमोकार मंत्रनो उपदेश आप्यो. ७. कारण के जो वखत आववे प्रयत्न करवामां आवे नहि, तो ते बीलकुल सफळ थतो नथी. मोक्षमार्गमां जनार माटे आ मूळमंत्रज तेनी मार्ग सामग्री (भाधु) छे. तेने बीजा प्रकारनी सामग्री, शुं प्रयोजन ? ८. मंत्रनी शक्तिथी ते कुतरो मरीने यक्षेद्र अर्थात् यक्ष जातिना देवोनो इंद्र थयो. जेमके रसायणना योगथी काळ लोढुं पण सोनुं थइ जाय छे तेम. ९. जे मंत्रने अंत समये पामीने कुतरो पण देवता थई गयो, ते मूळमंत्रने कयो बुद्धिमान नहि जपे ? अर्थात् ते मूळमंत्र बधा बुद्धिमानोए जपवो जईए. १०.
ते देव जे पहेलां कुतरो हतो, ते कृतज्ञताथी जीवंधर कुमारनी पासे तेज वखते आवी गयो, कारणके देवोना शरीरनी उत्पत्ति अंतर्मुहूर्तमां थइ जाय छे. ११. शुद्ध वाणी बोलनार अने आनंदथी उभरायलो ते यझेंद्र देव, कुमारने जोईने बहु प्रसन्न थयो. कयो चेतन प्राणी एवो छे के, जे उपकारने याद न राखे ? १२. तेने जोईने जीवंधर स्वामि मंत्रनी उत्कृष्टता के उत्तमतानो विचार करीने विस्मित थया नहि, अर्थात् स्वामीने ए वात आश्चर्य लागी नहि, कारणके मुक्तिना
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
४३
आपनार मंत्रने लीधे देवतायोजिनुं मळवं कठण नथी. जे मंत्रथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे, तेथी देवगति मळवी ते तो बहुज सहेल छे. १३. त्यार पछी " हे भाग्यशाळी पुरुष ! मने याद करजो " एवं कहीने ते देव अन्तर्धान थयो. चेतनप्राणी पोतानो उपकार करनार माटे प्रत्युपकार करवानी इच्छा केम करे नहि ? अर्थात् कृतज्ञ प्राणी उपकारने बदले प्रत्युपकार अवश्य करेज छे. १४. ज्यारे ते देव जीवंधर कुमारनुं वारंवार आलंगन करीने अने कुशलक्षेम पुछीने चाल्यो गयो, त्यारे त्यां जे कई थयुं तेनुं वर्णन करवामां आवे छे. १५.
सुरमंजरी अने गुणमालाने चूर्णने माटे परस्पर इर्ष्या थई, अर्थात् पहेली बजीने कहेवा लागी के जो, कोनुं पटवस्त्र वधारे सुगंधित छे? सत्य छे, के आ संसारमा एकजं पदार्थनी इच्छा करवाथी कोनी कोनी इर्ष्या वधती नथी ? अर्थात् सर्व एज इच्छे छे के, हुंज आ पदार्थने लई लडं अथवा मारीज वस्तु बीजानी वस्तुओंथी अधिक स्तुत्य छे. १६. पछी ते वन्ने सखीओए मांहोमांहे शरत करी के, आपण बन्नेमां जे कोई हारे, ते आ नदना जळमां स्नान करे नहि. सत्य छे के द्वेषभावथी शुं नाश थतो नथी ? अर्थात् पोतानुं सारुं काम पण नाश पामे छे. १७. पछी तेमणे बे दासीकन्याओने सज्जनोनी पासे मोकली. सत्य छे, के मत्सर अने द्वेष करनारने गमे ते खोडं काम होय, पण ते सारुं लागे छे. १८. तेथी ते बन्ने दासीओ चतुर अने बुद्धिमान जीवकनी
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
पासे जई पहोंची, कारण के प्रशंसनीय अने निर्मळ विद्या लोकमां कई वातनो प्रकाश करती नथी ? अर्थात् उत्तम विद्याथी आ लोकमां बधी वातनो निर्णय थई जाय छे. १९. त्यारे जीवंधरे गुणमालाना सुगन्धित द्रव्यने सारी रीते जोईने तेने गुणवाडं कह्यु; अर्थात् गुणमालाना चूर्णनी प्रशंसा करी (अने मुरमंजरीना चूर्णने गंधरहित कह्यं). सत्य छे के पदार्थोना गुण अने दोषनो निर्णय करवो तेज पांडित्य छे. २०. सुरमंजरीनी दासी आ वात सांभळीने क्रोधमां आवी गई अने बोली,-"जे बीजाओए कह्यु हतुं, तेज आपे पण कही दीधुं. शुं तेमणे आपने पण भणाव्या डे-शीखव्यु छ ? ” २१. आ सांभळीने स्वामीए ते बन्ने चूर्णोना गुण अने दोषोनो निर्णय माखीओ द्वारा को. खरूंछे, के जो बुद्धिमानो पासे विवादरहित विधि न होय, तो पछी तेमनी चतुराइज शा कामनी ? २२. तेमणे बीजा चूर्णने अर्थात् सुरमंजरीना चूर्णने खराब कह्यु, कारणके ते अकाळमां (खोटेवखते) बनाववामां आव्युं हतुं, तेथी सुगंधीरहित थइ गयुं हतुं. ठीक छे के जे काम वखत वगर करवामां आवे छे, तेथी कार्यनी सिद्धि थती नथी. २३. त्यार पछी ते बन्ने दासीओ कुमारनी स्तुति अने वन्दना करीने चाली गइ. सत्य छे के जे पुरुष सत्यनो निर्णय विवाद रहित करी दे छे, तेनी कोण स्तुति करतुं नथी ? २४. परंतु आ वात सुरमंजरीने विरागर्नु कारण थइ गइ, कारण के जेना मनमा इर्ष्या भरेली होय छे, तेने न्यायनी वात सारी लागती नथी. २५. गुणमालाए सुरमंजरी- .
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
४५
ने प्रार्थना पण करी, परंतु तेणे स्नान कर्यु नहि. ते बहुज क्रोधमा आवीने तरतज पाछी चाली गइ, कारणके इर्ष्या स्त्रीओथीज उत्पन्न थइ छे. अर्थात् सर्वथी अधिक इर्ष्या स्त्रीओमांज होय छे. २५. फरथिी “ हुं जीवकना सिवाय बीजा कोइ पुरुषने नहि देखुं." एवी प्रतिज्ञा करीने ते पोताने घेर चाली गई. सत्य छ, के स्त्रीना मनने कोई पण. फेरवी शकतुं नथी. (त्रण हठ प्रसिद्ध छेस्त्रीहठ, बाळहठ अने राजहठ ) २७. सखीना आ रीते न्हाया विना जता रहेवाथी गुणमाला तेने माटे बहु दुःखी थई, कारण के जेम अनिष्टथी संयोग अने इष्टथी वियोग जेटलो पीडाजनक होय छे तेथी वधु कोई वात दुःखदायी होती नथी. २८.
एटलामां ते नगरना रहेनारने एक गन्धहस्तीनो डर लाग्यो, अर्थात् काष्ठांगारनो एक हाथी छूटी गयो अने तेथी नगरनिवासी भयभीत थया. विपत्तिओ तो पीडा देनार होय छेज, किन्तु मूल्ने तेलो डरज पडिा आपे छे. २९. ते वखते हाथीने देखतांज गुणमालाना नोकर चाकर तेने एकली मूकीने जता रह्या. सत्य छ, के विपत्ति पडवाथी मनुष्योना बंधु रहेता नथी, अर्थात् विपत्तिकाळमां बधा जुदा थई जाय छे. ३०. परंतु कोई दायण दयाथी तेने (गुणमालाने) पोतानी पीठ पा। छळ राखीने आगळ उभी रही अने बोली के, " पहेला हुँ मशि अने पछी आ कन्या मरशे. ३१. सत्य छे, के आ संसारमा बंधु लेज छे के जे सुख दुःखनी वखतें समानता
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
बतावे. विपत्काळमां तो यमना दूत पण दूर जता रहे छे; अर्थात् दुःखी प्राणीने काळ पण खातो नथी. ३२. एटलामां जीवंधर स्वामीए दांतोथी प्रहार करनार ते हाथीने जोईने हठाव्यो. सत्य छे के परार्थ साधनमा लागेला अर्थात् वीजार्नु हित करनार सज्जन पुरुष पोतानी विपत्तिने देखता नथी. ३३. बीजार्नु हित ईच्छनार सज्जन पुरुष कई कई स्थळे अवश्य विद्यमान छे. जो कई पण सुजनता के साधुभाव न होय तो, आ संसारज केम करीने चाले ? ३४.
त्यार पछी कुटुम्बना लोक पण पोतपोतानी मेळे एवं कहेता दोडता आव्या के, 'पहेलो हुं, पहेलो हुं.' सत्य छ, के सुखमा ते लोक पण बन्धु बने छे के जेमने पहेलां कदी दीठा होता नथी. ३५. तेज वखते एक बीजाने परस्पर जोईने कन्या अने कुमारमा प्रीति उत्पन्न थई गई. सत्य छे के, मनुष्योने दुःखनी पछी सुख अने सुखनी पछी दुःख होय छे. ३६. पछी ते कन्या जेनुं अंतःकरण कामपीडाथी अशान्त अने संतप्त थई गयुं हतुं, ते जेम तेम करीने पोताने घेर गइ. सत्य छे के जो विवेकरुपी जळनो प्रवाह न हाय, तो रागरुपी अग्नि केम करीने शन्ति थइ शके ? ३७. पछी घेर आवीने तेणे स्वामीनी पासे क्रीडाशुक अर्थात् पोतानो पाळेलो पोपट मोकल्यो. सत्य छे के जे माणस रागथी आंधळो थइ जाय छ, तेनामा योग्य अने अयोग्यनो
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
विचार क्यां रहे छे ? अर्थात् कामी माणस ए विचारतो नथी के, मारे आ वात करवी जोइए अने आ वात करवी जोइए नहि. ३८. पोपट पण तेने जोइने पोताना अभिप्रायनी सिद्धि माटे खुशामद करवा लाग्यो, कारणके एवी खुशामदीज बीजा लोक वश करवामां आवे छे. ३९. 'बधा विषयोमा पोतानी ईच्छाओने हमेशा सफळ करनार अने पोताना माननीय गुणोनी रक्षा करनार अथवा सर्व जगतमां स्तुत्य गुणमालाने जीवतदान आपनार तमो दीर्घायुष्य रहो.'' ४०. आ आशीर्वाद सांभळीने कुमार पण ते पोपटना संदेशाथी बहु प्रसन्न थया, कारण के इष्ट स्थानमां दृष्टि थवाथी अधिक प्रसन्नता अने हर्ष थाय छे. ४१. पछी जीवंभरे पण पोपटना संदेशानो प्रत्युत्तर कों, कारण के जे पुरुष बुद्धिमान होय छे, ते पोतानी अपेक्षा करनारनी उपेक्षा करता नथी; अर्थात् जे पोतानी पासेथी कंई इच्छे छे, तेनो तिरस्कार करता नथी, पण ते पर ध्यान दे छे. ४२. गुणमाला पण पक्षीने पत्र सहित जोईने बहु प्रसन्न थई, कारण के पोतानो करेलो यत्न सफळ थवाथी अधिक प्रीति थाय छे. ४३. पछी तेनां माबाप पण आ वात सांभळीने बहुज प्रसन्न थयां, कारण के आ संसारमा भाग्यवान अने योग्य वरनुं मळवू बहु कठण होय छे. ४४. ते पछी कोई वे अपरीचित प्रख्यात पुरुष गन्धोत्कटनी पासे आव्या. ( अने तेमणे जीवंधर-गुणमालाना संबंधना विषयमा चाडी खाधी). सत्य छे, के नीचनी मनोवृत्ति
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
४८
निश्चल रहेती नथी, अर्थात् कईने कई खोटुं करवामां तत्पर रहे छे. ४५. परंतु गन्धोत्कटे ते बन्नेनां वचन सांभळीने उलटी तेमनी (जीवंधर- गुणमालानी) प्रशंसा करी. सत्य छे, के दोष रहित अभिप्राय बीजाना कहेवाथी दूषित थतो नथी. ४६. त्यार पछी जीवंधर कुमार कुबेरमित्रे आपेली विनयमालानी पुत्री गुणमालाने विधिपूर्वक परण्या ४७.
आ प्रमाणे श्रीमद् वादिभसिंहे रचेल श्रीक्षेत्र चूडामणि ग्रंथमां 'गुणमालालम्भ' नामे चोथुं प्रकरण पूर्ण थयुं.
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
he
ह
४९
प्रकरण ५ मुं.
वे जीवंधर कुमार गुणमालाने परणीने तेने अतिशय दुर्लभ्य समझ्या. तेओ तेथी बहु स्नेह करवा लाग्या. सत्य छे के जे वस्तु यत्नथी मळे छे, ते बहु व्हाली लागे छे. १.
स्वामी पहेलां गुणमालाने बचावी त्यारे ते गंधहस्तीने कडुं मा हतुं, तेथी ते हाथीए पीडाइने खावानुं खाधुं नहि. सत्य छे, के पशुओथी पण तिरस्कार सहन थतो नथी, अर्थात् पशु पण पोतानो तिरस्कार सहन करतां नथी. २. काष्ठांगार आ सांभळीने स्वामीपर बहु क्रोधायमान थयो, कारण के अग्निमांघी होमनाथी तेनी झाळ वधारे वधे छे. ३. अनंगमाला वारांगना के जेना उपर काष्ठांगार आशक्त हतो, तेनो संग करवाथी, गायोरुपी धनना ओरनार वाघने जीतवाथी अने वीणाविजयी होवाथी काष्ठांगारना हृदयमां क्रोधनी अभि स्थपाइ हती. ४. कोइनामां गुणोनी उत्कर्षतान जोइने नीच माणसोना मनमा पीडाज उत्पन्न थाय छे। अने जो गुणोने जोइने प्रीतिज उत्पन्न थाय, तो पछी नीचपणुंज क्यां रहे ? ५. नीच मनुष्योनी साथे उपकार करवो, ते अपकारनुं कारण पण थाय छे. जेमके सापने दूध पावाथी विषनीज वृद्धि थाय छे तेम. ६. पछी काष्ठांगारे सेना मोकली के, कुमारनो हाथ
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
पकडीने तेने लइ आवो. बहु खेदनी वात छे के, मूल्नो क्रोधरुपी अग्नि अनुचित स्थानमां पण वधे छ अर्थात् ज्यां क्रोध न करवो जोइए, त्यां पण मूर्ख माणस क्रोध करे छे. ७. ते सेनाए कुमारना घरने चारे तरफथी घेरी लीधु, परंतु जो हरणो सिंहनी चारे तरफ तेने घेरीने खडां थइ जाय, तो ते तेने शुं करी शके छ ? ८. ए जोइने कुमार पण क्रोधवश थइने सेनाने मारवानो प्रारंभ करवा लाग्यो. सत्य छे के जो तत्वज्ञानरुपी जळ न होय, तो क्रोधना अग्निने कोण बुझावी शके छ ? ९. त्यारे गंधोत्कटे धीरथी समझावीने तेने कवच पहरीने सेनाने मारवा जता रोक्यो अने जीवंधरने रोका, पडयुं, कारण के हित अथवा कल्याणना इच्छनार पुत्र पिताना वचन- कदी उल्लंघन करता नथी. १०. पछी गंधोत्कटे जीवंधर कुमारने पाछळ बाजुएथी हाथ बांधीने सेनाने सोंपी दीधा. सत्य छे, के पुरुषार्थथा पण पाछला जन्मनां दुष्कर्म निवारण थइ शकतां नथी. ११. तेने एवी दशामां जोइने पण दुष्ट बुद्धि काष्ठांगारे तेने मारी नांखवाने आज्ञा आपी. संत्य छे के, सज्जन मनुष्य तो शान्ति प्रकट करवाने नम्र थइ जाय छे, परंतु तेनी ए नम्रताथी दुष्ट मनुष्य वधारे उद्धत अने अभिमानी थाय छे. १२. ते वखते कुमारे गुरुनी आज्ञानुसार काष्ठांगारने मार्यो नहि ( जो ते इच्छे, तो मारी शके.) कारण के प्राण जतो रहे, परंतु बुद्धिमान पुरूष गुरुना वचन- उल्लंघन करता नथी. १३. स्वामी जाणता
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
हता के, 'मारे हवे शुं करवू जोइए' तेथी तेमणे यक्षने याद कर्यो, जेथी करीने यक्ष तत्काळज आवीने तेमने उठावी गयो. सत्य छे के, चेतन पुरुष उपकारने बदले प्रत्युपकार केम करे नहि ? अर्थात् अवश्यज करे छे. १४.
पछी लोकोए अत्यंत शोकित थईने ए विचार को;'लोक गुणना ओळखनार होय छे' एवी जे प्रसिद्ध कहेवत छे ते बिलकुल खरी छे. १५. "दुष्ट बुद्धिवाळा काष्ठांगारनी आ बहु भारे धूर्तता छे, परंतु पोताना खामी राजानी साथे पण द्रोह करवाथी जे डरता नथी, तेमने तो आटली धूर्तता कई पण नथी; अर्थात् ते तो एथी पण वधारे धूर्तता करी शके छे. १६. हाय ! यम अथवा धर्मराज पण जे सर्वनी साथे एक सरखो वर्ताव करे छे, ते पण नीच राजानी माफक दुराचारी थई गया. बहु खेदनी वात छे के, ते पण निःसार समझीने दुर्जनोने लेता नथी. १७. जेवी रीते हंस पक्षी पाणीमाथी साररुप दूधने ग्रहण करी ले छे, तेज रीते सज्जन पुरुष जे कांई सांभळे छे, तेमांथी सार ग्रहण करी ले छे अने दुष्ट पुरुष पोतानी रुचि अनुसार काम करे छे. १८ सुजनतानु लक्षण एज छे के, बीजा कोई हेतु उपर ध्यान न देतां गुण अने दोष होवा छतां फक्त गुणोने ग्रहण करे छे अने दोषने त्यागी दे छे. जेम हंस दूधने पी ले अने पाणीने जुएं करी नांखे छे तेम. १९. बहु भारे बुद्धिमान पंडित अने प्रतापी राजा थईने पण जो योग्य अने अयोग्यनो विचार करीने युक्तिसिद्ध अने उचित कार्यथी विमुख थई
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
५२
जाय-अर्थात् ते न करे, तो एवा पांडित्य अने ऐश्वर्य होवार्नु शुं फळ ? अर्थात् कई पण नहि." २०. ज्यारे आवो विचार करीने बधा लोक मनमा पीडावा लाग्या, त्यारे कुमारना बधा मित्र तेना भाई नन्दाढय सहित पश्चाताप करवा लाग्या अने युद्ध करवाने तैयार थया. २१. तथा तेनां माता पिता मुनिनां वाक्यने याद करतां जीवतां रह्यां जो मुनिनां वाक्य पण जुठां थयां, तो पछी कोई वचन- पण प्रमाण न रह्यु. २२. ते वखते स्वामीने हर्ष के खेद कई पण थयुं नहि, परंतु पूर्व जन्ममा करेलां कर्मोनुं फळ अवश्य भोगवq पडशे, एवो विचार तेमना मनमा उत्पन्न थयो. २३.
___ त्यार पछी ते यक्षेन्द्र जीवंधरस्वामीने चंद्रोदय पर्वत पर पोताने घेर लई गयो अने त्यां तेणे तेमने जळथी स्नान कराव्यु. २४. अहीं एवं समजवू जोईए के, पुण्य कर्मना उदयथी विपत्ति सम्पत्तिनुं कारण थई. जेमके सूर्य संसारने तो तापथी तपावे छे, परंतु कमळने खीलावीने शोभायमान बनावे छे. २५. यक्षेन्द्रे स्वामीनो क्षीरसागरना जळनी धाराथी अभिषेक करीने का के-तमे मने कुतरानी अवस्थामा पवित्र कर्यो हतो, तेथी आप पवित्र छो. २६. पछी तेणे स्वामीने त्रण मंत्रनो उपदेश कर्यो, जेथी ते पोतानी ईच्छानुसार जेवी आकृति ईच्छे तेवी ग्रहण करी शके, गायन विद्यामां प्रवीण थई गया, अने सापर्नु विष दूर करवामां समर्थ थया. २७. अने तेणे ए पण कह्यु के, " हे पवित्र स्वामी ! तमे एक वर्षमा राजा थई जशो अने
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
पछी मोक्षे जशो." २८. ए रीते यक्षेन्द्रे स्वामीनो बहु वखत सुधी आदरसत्कार कर्यो. पछी स्वामीने बीजा देशो जोवानी ईच्छा थई. सत्य छे के जे वात थनार होय छे, तेनो मनमां विचार थाय छे; अर्थात् भावी अटल छे ते सर्व कंई करावे छे. २९. अने विद्वान कुमारनी ईच्छाने जाणीने तेमना हितेच्छु देवे पण तेमने सम्मति आपी, कारण के देवता त्रणे काळनी वात जाणे छे. ३०. ए रीते आगळना मार्गनुं बधुं वृतान्त बतावीने यक्षेन्द्र सुदर्शने तेमने जवानी संमति आपी अने ते पछी रजा लईने स्वामि चाल्या गया, कारणके मित्रता हितने माटेज होय छे. ३१.
त्यार पछी स्वामी नीडर (बीक वगरना) थईने अहिं तहिं एकला विहार करवा लाग्या, कारण के पोताना पराक्रमथी पोतानी रक्षा करनार पुरुषने सिंहनी माफक कंइ पण डर नथी. ३२. एकला होवा छतां पण ते जीतेंद्रिय स्वामीने जरा पण उद्वेग थयो नहि, कारण के सम्पति अने आपत्ति मात्रथी अर्थात् ऐश्वर्य अने दरिद्रता प्राप्त थवाथी मूर्खनाज चित्तमां विकार उत्पन्न थाय छे, बुद्धिमानोना चित्तमां नहि. ३३.
आगळ कोई वनमां दावामिथी घेराएला अने अग्निमां बळता हाथीओने जोईने स्वामीए तेमने बचाववानी ईच्छा करी. ३४. दया धर्मर्नु मूळ छे अने जीवापर कृपा करवाने अथवा अनुकम्पा थवाने दया कहे छे, तेथी धर्मात्मानुं लक्षण ए छे के, जेने कोई आश्रय के सहाय नथी, तेने शरण राखे अथवा तेनी
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
५४
सहायता करे. ३५. ते वखते मेघ गरज्यो अने वरस्यो. अहो ! निश्चयथी पुण्यवानोनी ईच्छा अने मनोकामना सफळज थाय छे. ते हाथीओने बचेला जोईने जीवंधर बहुज संतुष्ट थया; परंतु पोते पोताना बंधन अने विमोक्षमां उदासीन रह्या; अर्थात् दावाग्निमां पोताना फसाई जवाना अने पछी तेथी बची जवाना ख्यालथी तेमणे शोक कर्यो नहि, तेमज हर्ष पण कर्यो नहि. ३७. सज्जन पुरुषोनो ए स्वभावज छे के, ते पोताना सम्पत्ति अने आपत्तिकाळमां तो मध्यस्थ रहे छे, परंतु बीजानी सम्पत्तिमां सुखी अने तेनी विपत्तिमां दुःखी थाय छे. ३८ .
पछी जीवंधर स्वामी त्यांथी नीकळीने तीर्थोमां पूजा करवा गया, कारण के वस्तुओनुं खरं के खोटापणुं अने खराब के सारापणं तेना संसर्गथी के पासे जवाथीज जणाय छे. ३९. त्यां धर्मनी रक्षा करनार एक यक्षिणीए आवीने ते धर्ममूर्ति कुमारने सारी रीते अन्न वस्त्र आपीने आदर सत्कार कर्यो . ४०. अने लोक तो शुं, परंतु देवता पण धर्मात्मा पुरुषोनी पूजा करे छे, तेथी सुख इच्छनारे धर्ममां प्रीति राखवी जोइए. ४१.
पछी ते स्वामी चालता चालता पल्लवदेशनी चन्द्राभा नामनी नगरीमा शुभ निमित्तथी गया, कारणके आगळ थनार वातनुं कंइने कंइ निमित्त के कारण अवश्यज होय छे. ४२. त्यां तेमणे राजा धनपतिनी पुत्री, के जेने सापे करडी हती, तेने जीवतदान आप्युं. सत्य छे के सज्जनोनो स्वभाविक गुण
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
५५ एज छ के, हेतु विना बीजानी रक्षा करवी. ४३. ते पुत्रीना मोटा भाइ लोकपाले ते जाइने स्वामीनो बहु आदर सत्कार कर्यो, कारणके जीवतदान देवावाळानो बीजो कोइ प्रत्युपकार नथी. ४४. सज्जन पुरुष पाते पूजनीक होय छे अने बीजा सज्जनोना पूजक पण होय छे, कारणके पूज्यनी पूजानुं उल्लंघन करवाथी पूजा शुं ? अर्थात् जे पूज्यनी पूजा करता नथी, ते पण पूजवाने योग्य नथी. ४५. बुद्धिमानोनी आगळ नम्रता अवश्य राखवी जोइए, कारणके नम्रताथीज आत्मा वशीभूत थाय छे. धनुषना नमवाथीज धनुर्धारियोना मनोरथ सिद्ध थाय छे. ४६. ते लोकपाले जीवंधर स्वामीना शररिने जोतांज तेमना ऐश्वर्यनो निर्णय करी दीधो. सत्य छे के चेष्टाना जाणनार लोकोनुं शरीरज तेमनुं दौरात्म्य (दुर्जनता) अने महात्म्य कही दे छे. ४७, त्यार पछी राजाए पोतानुं अर्धं राज्य अने कन्या जीवंधर स्वामीने आपी दाधां. सत्य छे के लक्ष्मी योग्य पुरुषनी पासे पोते जातेज चाली आवे छे.. ४८. अने पवित्र जीवंधर स्वामएि लोकपालनी मारफत आपेली तिलोत्तमानी पुत्री पद्मा के जे युवान हती, तेनी साथे लग्न कयु. ४९.
आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभसिंहसूरिए रचेल श्री क्षत्रचूडामणि ग्रंथमा “पद्मालम्भ" नामे पांच, प्रकरण पूर्ण थयुं, .
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकरण ६ ढुं.
AMARHI
ONAL
TOTHAKHE
र पछी पद्मा साथे विवाह करीने अने तेनी साथे केटलोक समय सुख भोगवीने जीवंधर स्वामी त्यांथी चाल्या गया. सत्य छे के धर्मात्मा
पुरूष कृतार्थ होवा छतां पण सुखने विरक्त थइने भोगवे छे. १ पद्मा पोताना पतिना वियोगथी दुःखसागरमां डूबी गइ, कारणके जेने सम्यग् ज्ञान होतुं नथी, ते सदा दुःख भोगवे छे. २. लोकपालना नोकर चाकर कुमारने शोधवा पण गया, परंतु ते तेमने रोकी शकया नहि, कारण के बुद्धिमानलोक जे कामनो प्रारंभ करे छे, तेमने बीजा लोक रोकी शकता नथी; अथवा ते कार्यमां कंइ विघ्न करी शकता नथी. ३
त्यार पछी जलदीथी चालनार स्वामओ तीर्थानी पूजा करी, कारणके स्थान पण महापुरुषोना संबंधी पवित्र थइ थाय छे. ४. जे पृथ्वीपर सज्जन अने महात्मा पुरुष रही चुक्या छे, ते पृथ्वी पूजवा योग्य छे; ए कांइ आश्चर्यनी वात नथी, कारण के काळ लोढुं पण रसायणना योगथी सोनुं बनी जाय छे. ५. सजनो अने दुर्जनोनी संगतिथीज मनुष्य सज्जन अने दुर्जन थाय छे, ए माटे सज्जन पुरुष हमेशां सज्जनोनी
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
साथेज मळेला रहे छे अने दुर्जनोथी दूर रहे छे. ६. __पछी जीवंधर स्वामी तीर्थस्थानोमां फरता फरता अने तेनी पूजा करता करता अनुक्रमे अरण्यना मध्य भागमां एक तपस्वीना आश्रममां पहोंच्या. ७. त्या अनुचित अने असत् तप जोईने ते तपस्वीओ उपर दया करवा लाग्या, कारण के जे लोक बधाने हितकारी होय छे, ते बधा प्राणीओ पर साची दया करे छे. ८. जेने यथार्थ ज्ञान नथी, तेना पर पण तत्त्वार्थना जाणनार दया करे छे. सत्य छे के, जे बाळक कुवामां पडवा इच्छे छे, तेनो उद्धार करवा कोण इच्छतुं नथी ? अर्थात् तेने बधाज कुवामां पडवाथी बचावे छे. ९. तत्त्वना जाणनार स्वामीए आदरपूर्वक तेमने पण यथार्थ तत्त्वनो बोध कराव्यो. सांभळनार भव्य होय के न होय, अर्थात् अभव्य होय, परंतु सज्जन पुरुषोनुं चित्त बीजानो उपकार करवा तरफज रहे छे. १०. “ तमारा वेदनुं वाक्य छे के, " मा हिंस्यात् सर्वभूतानि " अर्थात् “ कोई प्राणीनी हिंसा करशो नहि." तो पछी हे बुद्धिमानो! तमे एवं तप केम करो छो के जेनुं फळ केवळ हिंसाज छे. ११. पाणीमां नहाती वखते जे जीव वाळमां वळगे छे अने लाकडामां पडेला जीव पण जे फरी अग्निमां गरी पडे छे, तेने तमे तमारी आंखनी सामे मरता देखो छो? १२. तेथी पंचाग्नि तप कर, सर्वथा निकृष्ट अने अनुचित छे. ए तपमां जन्तुओनो वध
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
५८
अर्थात् जीवहत्या थाय छे, तथा ए तप जन्ममरणरूप संसारनुं कारण छे. मोक्षनो हेतु नथी. १३. तप एज छे, के जेमां जीवाने कदापि संताप के पीडा थाय नहि, अने ते तप खेती व्यापारादि आरंभोनो त्याग करवाथीज थाय छे, कारण के आरंभथी हिंसा थाय छे. १४. अने आरंभनी निवृत्ति अर्थात् त्याग निर्ग्रन्थ मुनिओमांज होय छे, कारण के पृथ्वीमां जे लोक कार्यथी विमुख होय छे ते कारणनी शोध करता नथी; अर्थात् जेने कोइ संसारीक कार्य करवानुंज होतुं नथी, ते तेने माटे आरंभादि पण करता नथी. १५. यतिधर्म के आरंभत्यागज वास्तविक तप छे. तेथी उल्टुं जे कंइ छे, ते संसार अर्थात् जन्ममरणनां साधक छे. जे लोक मोक्ष ईच्छे छे, ते बीजुं तो शुं, परंतु पोताना शरीरने पण तुच्छ समझे छे. १६. संसार तो रागद्वेषादि दोषोमां फसावनार छे, तेथी तेनाथी परिक्षय अर्थात् मोक्षनी प्राप्ति थती नथी. जे वस्त्र रुधिरथी दूषित छे, ते शुं रुधिरथीज शुद्ध थई शके छे ? कदापि नहि. १७. जे लोकोने यथार्थ तत्त्वज्ञान नथी, तेमनुं यति थवं पण निष्फळ छे. जेम के पाणी, अमि, थाळी वगेरे सामग्रीना होवा छतां पण जो चोखा न होय तो अन्न पकावी शकातुं नथी तेम १८. जीवादि तत्त्वोनो (जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा अने मोक्ष ए सात तोनो) यथार्थ निश्चय थवो अर्थात् तेमनुं जे स्वरुप छे, तेने तेज रुपे जाणवुं ते सम्यग्ज्ञान छे. अने लोकमां तेथी जे उलटुं ज्ञान छे तेने मिथ्याज्ञान के मिथ्यात्व कहे छे.
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९. साचा जिनेश्वरदेव, तेमणे उपदेश करेल शास्त्र अने जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य अने पाप ए नव पदार्थ ए त्रणना यथार्थ ज्ञानने सम्यग्ज्ञान कहे छे. तेमां रुचि अथवा श्रद्धा होवाने सम्यग्दर्शन कहे छे अने ए बन्नेने अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञानने पोताना आत्मामां अस्खलित वृत्तिथी धारण करवाने अथवा आचरण करवाने सम्यक्चारित्र कहे छे. २०. आज त्रण अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्रनी एकता मुक्ति प्राप्त करवानो मार्ग छे. तेथी भिन्न बीजा कोई मार्ग नथी. तेथी उल्टा जे बधा बाह्य तप छे, ते ए त्रणना साधक छे. (बाह्य तप छ प्रकारना छे,-१. अनशन अर्थात् उपवास करवो, २. उनोदर अर्थात् थोडं खावू, ३. वृत्तिपरिसंख्या अर्थात् कोई एक अन्नने ग्रहण करवू अथवा भोजनमां कोई प्रकारनी आखडी लेवी, ४. रसपरित्याग अर्थात् घी, दूध वगेरे रसोमांथी कोई एक अथवा बे त्रण के बधा रसो खावानो त्याग करवो, ५. विविक्तशय्यासन अर्थात् कोई एकाद स्थानमां नियत आसनथी रहेवू, ६. कायक्लेश अर्थात् टाढ तडको वगेरे शारीरिक कष्ट सहन करवा.) २१. बाह्य तप विना अभ्यन्तर तप थइ शकतुं नथी, जेमके आमि वगेरे सिवाय भात चढतो नथी तेम. ( अभ्यन्तर तप पण छ प्रकारना छे,-१. प्रायश्चित्त अर्थात् कार्य करवामां जे दोष लाग्या होय, तेनो गुरुनी आगळ साचा मनथी प्रकाश करवो अने आपेला दंडने संतोषथी सहेवो. २. विनय अथवा नम्रता.
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
३. वैयावृत्ति अर्थात् बरदास्त, सेवा. ४. स्वाध्याय अर्थात् भणq भणावq विचार, वगेरे. ५. व्युत्सर्ग अर्थात् इंद्रिय अने क्रोधादिकने वशमां राखवां अने ६. ध्यान अर्थात् आत्मामां चित्तनी एकाग्रता.) २२. अने जुठा देव शास्त्रादिगोचर जे मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान अने मिथ्याचारित्र छे, ते मोक्षनां साधन नथी, कारणके आ गरुड छे, एवं मानीने ध्यान घरेलु बगलं झेरने दूर करी शकतुं नथी; अर्थात् जेम झेर गरुडनुं ध्यान धरवाथीज दूर थाय छे, तेम गरुडना समान देखानार बगलाथी थइ शक्तुं नथी, तेज रीते मोक्षनी प्राप्ति साचा देव, साचा शास्त्रादिथी थइ शके छे. आप्तना समान देखानार जुठा देव अने जुठा शास्त्रादिथी नहि. २३. तमे तरतज ए रीतनुं तप करो, के जे सर्व प्रकारना दोषोथी रहित छे अने जे वीतराग अर्हत् परमेश्वरे जिनवाणीमां बताव्युं छे. फोकटमां चोखा विनानां छोडां खांडवाथी शो लाभ थशे ? २४. जे देवमां रागादिदोष विद्यमान छे, ते प्राणीओने भवसागरथी पार करी शकता नथी, कारण के जे पोतेज डूबनार छे, ते बीजानो हाथ पकडी शकता नथी. २५. ए जिनेश्वर प्रभु क्रीडा नथी, कारणके क्रीडा तो छोकरामांज देखाय छे. ते तो तृप्त अने ईच्छा रहित छे तेने क्रीडाथी शो लाभ ? जे तृप्त नथी, तेज क्रीडाथी पोताने तृप्त करवा ईच्छे छे. २६. ईश्वर स्वेच्छाचारी पण नथी, कारणके तेथी तेना ईशत्वमा हानि आवे छे अने अमे मनुष्यादिको साथे द्वेष कर
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
वानुं पण ते सर्वोत्कर्षवान् परमश्वरने केवी रीते बने ? अर्थात् ते कोईथी रागद्वेष पण करता नथी. २७. जो ईश्वर दोषरहित छे, अने तेने कोई कार्य पण करवानुं बाकी रह्यं नथी, तो पछी ते कृतीने करनारने] कृत्यथी शुं ? अर्थात् ते कार्यज शंकरशे ? जो कहेशो के, स्वेच्छाचारथी करे छे, तो ते पण ठीक नथी, कारणके स्वेच्छाचार तो उन्मत्तमांज देखाय छे, उत्तम पुरुषमां नहि; अर्थात् उन्मतज स्वेच्छाचारी होय छे. २८. आ रीते उपदेश आप्यो, तेथी केटलाक तपस्वी धर्मात्मा बन्या, कारणके पाणी सींचवाथी सारी माटी तो ओगळी जाय छे, परंतु पत्थर ओगळता नथी. २९. त्यारे ते पंडित, स्वामी धर्ममां लागेला तपस्वीओने जोईने बहु प्रसन्न थया. सत्य छे के आ संसारमा सज्जन पुरुषोने पोताना उदय के कल्याणनी अपेक्षाए बीजार्नु कल्याणज अधिक प्रीतिदायक होय छे. ३०. पुरुषोनुं त्रणे लोकमां सम्यग्दर्शन, ज्ञान अने चारित्रनी प्राप्तिथी अधिक बीजूं ऐश्वर्य कयुं हशे ? बीजां इंद्रायणना फळ समान ऐश्वर्यना धोकामां नांखनार संसारीक ऐश्वर्यथी शुं ? अर्थात् जेम इंद्रायण- फळ जोवाथी सारुं होय छे, परंतु ते अंदरथी बहुज खराब होय छे, ए रीते संसारीक ऐश्वर्य जोवामां सारूं लागे छे, परंतु यथार्थमां ते अंदरथी बहुज खराब होय छे. खरं ऐश्वर्य सम्यग्दर्शन-ज्ञान चारित्ररुप रत्नत्रय प्राप्त कर तेज छे. ३१.
त्यांथी चालीने जीवंधर स्वामी दक्षिण देशमां सहस्रकूट चैत्यालय पहोंच्या, अने त्यां तेमणे जिनालयनी आ रीते स्तुति
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
६२ करी;-३२. “ हे भगवान् ! मारा दुर्नयरुपी अंधकारथी व्याप्त मार्गमां आप मोनो प्रकाश करनार दीपक होजो; अर्थात् मने परम ज्ञान आपो, जेथी मारुं अज्ञान दूर थाय. ३३. हे भगवान्! हुं आजन्म जरा मरणरुप संसार वनमां जन्मांधनी माफक फरी रह्यो छु. अहीं आपनी भक्तिज मने मुक्ति आपनार अने सन्मार्गमां प्रवृत्त करावनार छे. ३४. विवादरहित अने अखंडित स्याद्वादमतना मुख्य प्रवर्तक अने उपदेष्टा श्री शान्तिनाथ जिनदेव भवसागरनां दुःख निवारण करवाने मारा मनमां दृढ शान्ति उत्पन्न करो. " ३५. एते स्तुति करवाथी ते जिनालयनां कमाड आपोआप उघडी गयां, कारण जे मुक्तिरुपी द्वारनां कमाडने पण तोडीने उघाडे छे, ते कइ चीजने तोडी शकता नथी? अर्थात् मोक्षदाता स्तोत्र सर्व कंह करी शके छे. ३६. एमां कांइ आश्चर्य नथी के, ते पूजनी ते वातकरी बतावी के जेने बाजुं कोइ करी शकतुं नहोतुं. सूर्य बधा लोकमां प्रकाश करी दे छे, परंतु तेथी aist पण आश्चर्य तं नथी. ३७.
एटलामा कोइ पुरुषे तेनी पासे आवीने प्रीतिपूर्वक नमस्कार कर्या. सत्य छे के प्राणी पोतानी मनोकामना प्राप्त करीने शुं संतुष्ट थता नथी ? अर्थात् जेना मनोरथ सफळ थाय छे, ते संतुष्ठ थाय छेज, ३८. स्वामीए तेने जोइने पूछयुं के,
((
' हे आर्य ! आप कोण छो ? " सत्य छे के नम्र पुरुषोमां एकरुपता राखवी अर्थात् नीच पुरुषोने पोताना समान समजवा तेज प्रभुओनी प्रभुता अने मोटानुं मोटपण छे. ३९. ए बात पूछतांज ते पण तरतज
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
६३
((
उत्तर देवा लाग्यो; कारण के इच्छित सहायताना होवाथी पण प्रयत्न फळदायक नीवडे छे. ४०. आ स्थानमा क्षेमपुरी नामनी एक राजधानी शोभे छे, अने आ नगरीनो स्वामी नरपति देव राजा छे. ४१. ते राजाना श्रेष्ठी पद पर [ नगरशेठनी पदवीपर ] प्रतिष्ठित एक सुभद्र नामनो शेठ छे, जेनी स्त्रीनुं नाम निरृत्ति छे अने क्षेत्री ए बन्नेनी पुत्री छे. ४२. ज्योतिषिओए ए कन्यानां जन्मलग्रम ए हिसाब बताव्यो हतो के, जे पुरुषना निमित्तथी आ जिन मंदिरनां द्वार आपोआप उघडशे ते पुरुष आ कन्यानो पति थशे. ४३. मारुं नाम गुणभद्र छे. हुं शेठनो नोकर छं, अने तेमनो मोकलेलो ते पुरुषनी परीक्षा माटेज अहीं रह्यो छं. आज में आपने दीठा छे; अर्थात् जे पुरुषनी तपासमां हुं हतो, ते आपज छो. " ४४. एवं कहीने तेणे फरी नमस्कार कर्या अने पछी तरतज पोताना मालीक पासे जईने अने बहु प्रसन्न थईने स्वामीनुं वृतान्त कही बतान्युं. ४५. सुभद्र पण ए वात सांभळीने ते वखते तेनी साधे आव्या अने तेणे जीवंधर स्वामीने जिनदेवनी पूजामां तत्पर दीठा. ४६. ते वखते वैश्यपति अथवा शेठे तेनुं फक्त शरीरज दीढुं नहि, परंतु ऐश्वर्य पण दी. शुं सुगन्धित पदार्थनी सुगन्धि सोगन खावाथी नक्की थाय छे ? नहि तेतो जाते मालुमज पडे छे. अभिप्राय ए छे के, कोईना कला विना तेणे जीवंधरना वैभवने जाणी लीधो. ४७ पूजाना अंतमां ते बन्नेनो परस्पर यथायोग्य सुश्रूषानो व्यवहार थयो. जेम धान्यनी नम्रता तेनी
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
६४
पक्वताने प्रगट करे छे तेमज सज्जनोनी नम्रता तेमनी पक्वता
"
'
अर्थात् योग्यता के मोटपण प्रगट करें छे. ४८. हवे ते बंधुओना प्यारा जीवंधर स्वामी शेठना आग्रहथी तेमने घेर गया, कारण के लोकमां सज्जन पुरुषोनी मित्रता अरसपरस बे चार वातो करवाज थई जाय हे साप्तपदीनं सख्यम् ' ए कहेवत प्रसिद्ध छे, अर्थात् एक बीजा साथे सात पद उच्चारण करवाथी मित्रता थई जाय छे. ४९. कोण एवं छे के, जे आ संसारमां आवती लक्ष्मीने लात मारे ? तेथी तेमणे शेठनी दीनता अथवा नम्रताथी कन्या साथे लग्न करवानो स्वीकार कर्यो. ५०. त्यार पछी पवित्र जीवंधर स्वामीए शुभ लग्नमां शुभद्र शेठ द्वारा समर्पण करेली क्षेमश्रीनी साथे विधिपूर्वक लग्न कर्यु. ५१.
आ प्रमाणे श्रीमान् वादी सिंहसूरिए रचेल क्षत्रचूडामाण ग्रन्थमां 'क्षेमश्री लम्भ' नामे छटुं प्रकरण पूर्ण थयुं.
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रकरण ७ मुं.
thmetHAR
Hiruhun riHINHD
-मममममममHEP
छी सुयोग्य स्वामीए ए स्त्री साथे केटलुक सुख अनुभवीने त्यांथी बीजा स्थानमां जवानी चेष्टा करी. १. अने बहुज रात्रीओ व्यतीत थवा पछी
स्वामी कह्या विनाज चाल्या गया, कारण के भोळा लोक सज्जनोना वचनमां कदी विश्वास करता नथी; अर्थात् पतिना विश्वासमां आवीने स्त्रीओ तेने कदी जवा देती नथी. २. ते स्त्री तेना वियोगमां बळेली रसीना समान दुबळी अने कान्ति वगरनी थई गई. कारण के परणेली स्त्रीओना, प्राण तेना पतिज होय छे, बीजा कोई नहि. ३. सुभद्र पण ते पवित्र स्वामीने शोधीने ते न मळवाथी मनमां बहु दुःखी थया, कारण के जे वस्तु बहु यत्नथी मळे अने जो ते हाथथी चाली जाय, तो मनमां बहु खेद थाय छे. ए रीते जीवंधरनो विरह सहन थयो नहि. ४. प्रशस्त बुद्धिवाळा स्वामीए जती वखते ए विचार्यु के, हुं मारां आभूषणो आपी दउं, कारण के बुद्धिमानोने बुद्धिज भूषण छे, बीजां आभरणादि दोषने माटेज होय छे. ५. ते वखते तेमणे पोतानां आभूषणोने कोइ: धार्मिक पुरुषने आपी देवानो संकल्प कर्यो, कारणके जे वस्तु पात्रने आपवामां आवे छे ते एक वस्तु पण बीजनी माफक हजारघणी
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
फळे छे. ६. एटलामांज सज्जनोना सहायक जीवंधर स्वामी पासे कोइ पुरुष आव्यो, कारण के प्राणीओनी बधी प्रवृत्तिओ तेमना भाग्यानुसार थाय छे. ७. त्यारे स्वामीए पोतानी पासे आवेला ते नीच पुरुषने पूछयु,-" तुं क्याथी आव्यो, क्यां जइश अने तुं सुखी छे के नहि ? " ८. तेणे पण प्रसन्न थइने नम्रतापूर्वक उत्तर दीघोः–कारण के मोटा पुरुषनी सन्मुख बोलवू, एज नीच मनुष्यने माटे राज्याभिषेक थवा अर्थात् राजगादी मळवा समान हर्षदायक होय छे, ९. " हे पूज्य ! हुं कार्यनी इच्छाथी अहीं तहीं फर्या करूं छु. हुं सुखी छु, अने आपना दर्शनथी मारा काममां बीजं पण विशेष सुख थशे अर्थात् मारुं कार्य सफळ थशे.” १०. ए सांभळीने कुमारे फरी ते शुद्र पुरुषने कह्यु,-" हे शुद्र ! खेती वगेरे कर्मथी साचुं सुख उत्पन्न थतुं नथी. ११. असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प अने विद्या ए छ प्रकारना कामथी जे सुख उत्पन्न थाय छे, ते तृष्णानुं मूळ छे, थोडो वखत रहे छे अने ते तरतज नाश पामे छे, पाप- कारण छे, बीजानी अपेक्षा करे छे अर्थात् पराधीन छे, तेनो अंत पण खोटो छे, अने दुखथी भरेल छे. १२. वस्तुतः पोताना आत्मामांज उत्पन्न थएल स्वास्थ्य के सुखज आनन्ददायक छे. ए सुख आत्माथीज मळी शके छे, अडचण अथवा पीडा रहित छे, सर्वोत्कृष्ट, अनन्त, तृष्णारहित अने मुक्तिदायक छे. १३. ए आत्मसंबंधी परम सुख पोताना अने पारकाना भेदज्ञान, यथार्थ रुचिरुप श्रद्धान अने चारित्र
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिपूर्ण थवाथीज पूर्ण थाय छे. १४. आत्मानेज अनन्त ज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्त आनन्द अने अनन्तवीर्यादि गुणवाळो जाणीने, पुत्र, स्त्री वगेरेने तो शुं, परंतु पोताना शरीरने पण आत्माथी भिन्न समज. १५. ए रीते आ भिन्न स्वभावनो धारण करनार जीव अज्ञानताने लीधे शरीरने निजत्व बुद्धिथी जाणे छे; अर्थात् शरीरने पोतानाथी पृथक् समझता नथी. अने तेथी देहथी बंधाय छे अर्थात् वारंवार शरीर धारण करे छे. १६. संसारमा आत्मा अज्ञानताथी शरीर धारण करवाना कारणभूत कर्म बांधे छे अने पछी शरीरथी अज्ञानता थाय छे. आ प्रबन्ध अनादि काळथी चाल्यो आवे छे; अर्थात् अज्ञानताथी शरीर धारण थाय छे, शरीरथी अज्ञानता थाय छे, अने तेज कर्म बंधननो प्रबंध संसार छे. १७. आत्माने आत्मत्वथी अने देहने देहत्वथी जोइने तुं आत्माथी भिन्न जे देह छे, तेने त्यागवानी बुद्धि कर, कारण के अन्य प्रकारनां नाश थनार कार्याथी शो लाभ ? १८. पर पदार्थोनो त्याग करनार अथवा त्यागी बे प्रकारना जाणवा जोइए, एक अनगार के यति अने बीमा सागार के गृहस्थी. एमांथी पहेला जे यति छे, तेमन शरीर मात्र धन छे, अर्थात् शरीर सिवाय तेमने बीजा कोइ प्रकारनो परिग्रह होतो नथी, अने ते बधां पापोथी रहित होय छे. १९. परंतु तुं ते यतिओना मूळोत्तरादि गुणने धारण करी शकीश नहि, जेमके वनायु देशना घोडा हाथीनां पलाण अथवा झूलना भारने उठावी शकता नथी. २०. तेथी तुं
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
हवे गृहस्थना धर्मनो स्वीकार कर, कारण के एकज वखते उच्च श्रेणी पर चढवू कठण होय छे--अनुक्रमे चढाय छे. २१. त्रण प्रकारना गुणवत, चार प्रकारना शिक्षात्रत, अने पांच प्रकारना अणुव्रतयुक्त, सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्दर्शन सम्पन्न अने दोष सहित पुरुष गृहस्थ होय छे. २२. ए गृहस्थोना आठ मूळगुण आ छे-पांच अणुव्रत अने त्रण मकारनो त्याग. १. अहिंसा ( हिंसा करवी नहि.) २. सत्य ( साचुं बोलq.) ३. अस्तेय (चोरी करवी नहि.) ४. ब्रह्मचर्य ( पोतानी स्त्री साथे पण नियमित भोग करवो. ) ५. मितवसुग्रहण ( निर्वाह मात्रने माटे धनादिनो संग्रह करवो ). ६-७-८. मदिरा, मांस अने मधनो त्याग. २३. मूळ गुणने वघारनार त्रण गुणव्रत छे. पहेलु दिग्वत, बीजं अनर्थ दंडवत अने त्रीजुं भोगोपभोग परिमाण व्रत. २४. प्रोषधोपवास, सामायिक, देशावकाशिक अने वैयावृत्य ए चार शिक्षाव्रत छे. २५. दशे दिशाओमा नियमित मर्यादा सुधी नवु, प्रयोजन विनाना पापोनो त्याग करवो, अने परिमित अन्न स्त्री वगेरे भोग उपभोगना पदार्थो- सेवन करवू, ए त्रण गुणवतोनां त्रण कार्य छे. २६. आठम चौदश वगेरे पर्वना दिवसोमां उपवास अर्थात् १६ पहोर सुधी चारे प्रकारना आहारनो त्याग करवो, आत्माना भावने सर्व जीवोमां समता वगरे. चिन्हथी निर्मळ राखवो, अने गमन करवानी निरंतर अवधि बांधवी अर्थात् दिग्वतमा ग्रहण करेली मर्यादानी अंतर्गत वर्ष, छ महिना, दिवस, पहोर वगेरे वखतना नियमथी गमन करवानी
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रतिज्ञा करवी, अने दान वगेरेथी संयमी पुरुषोनी सुश्रूषा करवी, ए चार शिक्षाव्रतोनां अनुक्रमे चार कार्य छे. २७. अणुव्रती श्रावक ए सात शीलथी अर्थात् गुणवतो अने शिक्षाव्रतोथी कोइ कोइ देशनी अपेक्षाए (जेनो त्याग करी चूक्या छे ) अने कोइ कोइ वखत (सामायिक आदि धारण करवाथी) महाव्रतीनी समान गणाय छे, तेथी गृहस्थ धर्म धारण करवो जोइए.” २८. आ सांमळीने ते शुद्रे गृहस्थधर्मनो स्वीकार कर्यो. सत्य छे, के भाग्यनो उदय थवाथी कयो पुरुष क्यारे अने केवो थतो नथी अर्थात् शुभ कर्मनो उदय थवाथी सर्वने सर्व समय बधी वातनो लाभ थाय छे. २९. पछी ते दानना जाणनार दानी कुमारे तेने पोतानां भूषणवस्त्र उतारीने बहु आदरथी आपी दीघां. सत्य छे के सज्जनोनुं चित्त आपवामांज प्रसन्न रहे छे, लेवामां नहि. ३०. आ अमूल्य अने अकल्पित अर्थात् धार्या विनाना धनना लाभथी ते बहुज प्रसन्न थयो, कारण के संसारमा तात्कालीक विषयसुखनी प्रीतिज विशेषताथी थाय छ; अर्थात् जीवने ज्यारे विषय सुख मळे छे, त्यारे ते बहुज आनन्दित थाय छे. ३१. त्यार पछी स्वामी तेने छोडीने तेनुं स्मरण करतांज त्यांथी चाल्या गया. सत्य छे के सज्जन पुरुष सन्मुख अने पीठ पाछळ बन्ने अवस्थामा एक सरखाज रहे छे. ३२.
आगळ चालतां जीवंधर कुमार थाकीने कोई जंगलमा उपद्रव रहित थईने बेठा. पुण्यज सर्व जीवोने शरण आपनार छे, बीजं कोई नहि. ३३. त्यां तेमणे एक एकली स्त्रीने जोईने
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
७० म्हों फेरव्यु, कारण के साधु पुरुषोना मनमा जे दया उत्पन्ना थाय छे ते सर्वथा दोष रहित होय छे. ३४. परंतु ए स्त्री ते श्रेष्ठ खभावाळा पराक्रमी पुरुषने जोईने तेनी साथे विषयभोगनी इच्छा करवा लागी-कामवती थई गई, कारण के स्त्रीओनी रुचि अप्राप्त पुरुषमांज थाय छे, प्राप्तमां कदी नहि; अर्थात् स्त्रीओ घरना पतिने छोडीने नवा पुरुषनेज इच्छे छे. ३५. ते वखते मनना अभिप्रायने मारनार कुमारे तेने पुरुषाभिलाषीणी समझीने विरक्तभाव प्रगट कर्यो, कारण के जे वस्तु मुल्ने अनुराग के प्रीति करावनार होय छे, ते वशी अर्थात् जीतेंद्रिय पुरुषोने वैराग्यनुं कारण होय छे. ३६. “ जो शरीर आत्माथी जुदु बनावबामां आवे तो, तेमां फक्त चामडी, मांस मळ, हाडकां वगेरेज रही जाय, तोपण अज्ञानी जीव आ घृणित ( चीतरी चढे तेवू ) मांसमळादिना ढगला पर मोहित थई जाय छे, ए बहु खेदनी वात छे. ३७. विवेचन करवाथी अर्थात् सारी रीते विचारपूर्वक निरीक्षण करवाथी तो आ शरीरमां दुर्गंध, मळ, मांसादिक सिवाय बर्जुि कंइ देखातुं नथी, पछी तेमां जीव कोण जाणे केम मोह करे छे, तेनुं शुं कारण छे ? ३८ तेने अज्ञान स्वरुप, तर्क शून्य अने अपवित्रता- बीज अर्थात् मळमूत्रथी भरेलुं समझीने पण जे आत्मा तेमा स्पृहा करे छे-तेने इच्छे छे, ते मानो पोते कहे छे के, हुं कर्मोने आधीन छु; अर्थात् जीव कर्मोना वशमां रहीनेज अपवित्र शरीरमां राग करे छे. कर्मनी परवशता होत नहि, तो
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
कदापि करत नहि. ३९. आ विचारशून्य स्त्री मारा बळवान शरीरने जोइने परवश तथा कामान्ध थइ गइ छे, तेथी अथवा मारा कल्याण माटे मारे अहींथी चाल्या जq जोइए. ४०. स्त्री अंगारा जेवी अने पुरुष माखण समान होय छे. तथा स्त्रीओना सहवास मात्रीज पुरुषोनां मन पीगळी जाय छे. ४१. तेटला माटेज पापथी डरनार पुरुष जुवान बाळकी साथे, वृद्ध स्त्री साथे, माता साथे, पुत्री साथे के आर्जिका साथे बोलवू, हांसी करवी अने पासे निवास करवो वगेरे छोडी देवू जोइए. ४२. ए रीते वैराग्यनी वातो चीतवीने कुमार त्यांथी जवा लाग्या, कारण के पंडितोए मूर्ख पुरुषोना कार्योथी डरबुज जोईए ४३. त्यारे ते अनुरागिणी स्त्रीए निश्चय करी लीधो के, पंडित जीवंधर कुमार विरक्त छे, कारण के स्त्रीओमां शरीरादिनी चेष्टा परथी अंदरनो अभिप्राय जाणी लेवानुं ज्ञान स्वभावथीज होय छे. ४४. तोपण तेणे तेना मनने वश करवाने पोतानुं आ वृतान्त का कारण के स्त्रीओनी दुर्बुद्धि ठगाईनी रीतमां अनेक द्वारवाळी होय छे; अर्थात् बीजाने ठगवाने ते नाना प्रकारनी वातो करे छे. ४५. “हे भाग्यशाळी पुरुष ! आप मने एक विद्याधरनी अनाथ कन्या समजो. मारा भाइनो साळो मने अहीं बलात्कारे लाव्यो छे अने पोतानी स्त्रीथी डरीने मने अहीं मूकी गयो छे. ४६. मारु नाम अनंगतिलका छे. हे पुरुषोना शिरोमणि ! मारी रक्षा करो, एटला माटे के आप श्रेष्ठ पुरुष छो अने जेने कोई शरण के
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
आश्रय होतो नथी, तेनो आश्रय श्रेष्ठ पुरुष होय छे. ४७." एटलामां ते विद्वान कुमारे कोई पुरुषने दुस्सह आर्तस्वरथी एवं कहेतां सांभळ्यो के, "हे प्यारी !तुं क्या चाली गई ? मारा तो तारा विरहमां प्राण नोकळी जाय छे." ४८. त्यारे ते तरुणी कोइ बहानुं काढीने कुमारनी पासेथी एटली जल्दी चाली गइ के जेटली वारमा एक क्षण चाली जाय, कारण के स्त्रीओनी चित्तवृत्ति स्वभावथीज मायामयी अर्थात् छळकपटवाळी होय छे. ४९. पछी ते माननीय कुमारने जोइने ते दुःखी पुरुष दीनतापूर्वक कहेवा लाग्यो; कारण के जे रागान्ध पुरुष अपवादथी के निन्दाथी डरतो नथी, तेनी दशा बहुज शोचनीय थाय छे. ५०-" मान्यवर ! मारी पतिव्रता स्त्री तरसथी व्याकुळ हती, तेथी हुं तेने अहीं बेसाडीने पाणी लेवाने गयो हतो, परंतु हवे हुं पाछो आव्यो, तो तेने अहीं देखतो नथी. ५१. हुं विद्याधर छु अने विद्याधरमां जे विद्या होवी जोईए ते मारामां विद्यमान छे, परंतु आ वखते ते अविद्यमान जेवी थई गई छे; अर्थात् ते स्त्री न मळवाथी हुं सर्व कई भूलीने कर्तव्यमूढ जेवो थई गयो छु तथा हे पुरुषोत्तम, हवे कहो के, आ बाबतमां मारुं कर्तव्य शुं छे. हुं शुं करूं ? ५२. आ सांभळीने ते अभयंकर अर्थात् बीजाने पण भयरहित करनार जीवंधर कुमार स्त्रीओमां अतिशय लवलीन थवाथी डर्या, कारण के खाटी वातथी डरवामांज मोटार्नु मोटपण छे. ५३. त्यार पछी पंडित जीवंधर विद्याधरने आ
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
रीते समजाव्यो;-कारण के बीजार्नु हित ईच्छनार पुरुष नक्कीज उत्तम फळ आपनारी वात कहे छे. ५४. “हे भवदत्त ! तुं विद्यारुपी धन पामीने पण केम व्यर्थ दुःखी थाय छे ? कारण के विद्या होवाथी सुंदर वस्तुओमांथी एवी कोईपण वस्तु नथी, के जे मळी शके नहि. ५५.हे विद्याधर ! विद्वान तो अहीं तहींनी विपत्तिओ आववाथी निश्चल रहे छे, अने मूर्ख शोक करवा मांडे छे, ते सिवाय विद्वान अने मूर्खमां कई पण भेद नथी. ५६. हजारो प्रकारनी बुद्धिवाळी स्त्रीओमां पातिव्रत्य धर्म कयो ? तेमनुं पातिव्रत्य तो जवा आववाना अभावमा रहे छे अने ते पण कई कई भाग्येज--अर्थात् जो ते अहीं तहीं कई जाय नहि, तो पतिव्रता रही शके छे. ५७. स्त्रीओनां आभूषण मद, मात्सर्य, माया (छळ), इर्ष्या (विरोध), राग (प्रीति), अने क्रोध वगेरे छे अने तेनां धन जूठ, अपवित्रता, कुटिलता, शठता (लुच्चाई ) अने मूर्खता छे. ५८. आ स्त्री कृपा रहित, दयाहीन, क्रूर, अव्यवस्थित चित्तवाळी, अंकुश रहित (स्वतंत्र), पापरुप अने पाप, कारण छ, पछी एवी स्त्रीमां तारी इच्छा केम थई ? अर्थात् तुं एटलो रागी केम थइ रह्यो छे ? ५९. " परंतु आ बधो उपदेश ते विद्याधरना हृदयमा रह्यो नहि, जेमके कुतराना पेटमां घी रहेतुं नथी तेम. ६०. तेथी वामीने तेनी मूर्खाईपर बहु दया आवी, कारण के कुमार्गगामीओ पर बुद्धिमानोए दया राखवी अथवा अनुकम्पा थवीज योग्य छे. ६१.
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
७४
त्यार पछी स्वामी त्यांथी चालीने कोई बागमां गया, कारण के मन घणुं करीने एवी वस्तु जोवानी उत्कंठा करे छे के जेने तेणे पहेलां दीठी होय नहि. ६२. ते बगीचाना आंबाना फळने कोई पण मनुष्य धनुष्यथी पाडी शकतो नहोतो. ठीकज छे के जे मनुष्योमां शक्ति होती नथी, तेमने सहज काम करवुं पण कठण लागे छे. ६३. परंतु स्वामी ते फळने पोताना बाणथी छेदीने बाणनी साथेज लाव्या; अर्थात् ते केरी तेमना बाणमांज छेदाईने चाली आवी, कारण के प्रत्येक कार्यमा एवो उत्साह करनार पुरुषज ईच्छित फळने पामे छे. ६४. आ काम जोईने जेनुं बाण निशान पर लाग्युं नहोतुं तेने बहु आश्चर्य लाग्युं, कारण के उत्तम काम अशक्त पुरुषोने आश्चर्यकारकज लागे छे. ६५. तेथी तेणे स्वामीथी डरतां डरतां नम्र थईने पोतानुं आ वृतान्त कर्छु;--कारण के समर्थ पुरुषोनी आगळ असमर्थ मनुष्य तुच्छ छे. ६६.--" हे धनुर्विद्यामां चतुर ! हुं जे कई कहुं छं, ते आप करो के न करो, अने मारुं वचन कडवुं पण लागे, परंतु आप तेने कृपा करीने अवश्य सांभळो. ६७. आ मध्यदेशमां एक हेमाभा नामनी नगरी छे. त्यां एक दृढमित्र नामनो क्षत्रिय (राजा) तथा नलिना नामनी तेनी स्त्री छे. ६८. अने तेने सुमित्र आदि केटलाक पुत्र छे, जेमां एक हुं पण छं. अमे बधा भाई यद्यपि उमरमां मोटा थया छीए, परंतु विद्यामां मोटा थया नथी; अर्थात् अमने विद्या आवडती नथी. ६९. तेथी अमारा पूज्य पिता एवा पुरुषनी
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
___ ७६
शोधमां छे के जे धनुर्विद्यामां प्रवीण होय. जो आप तेमां कई दोष न समजो. तो ते पण जुओ अर्थात् मारा पिताने मळो. ७०." ते पुरुषनां उपरनां वचन सांभळीने विद्वान स्वामीए कई विरोध को नहि, अर्थात् ते तेना पिताने मळवाने राजी थईने गया. सत्य छे के देव मनुष्यने जातेज इष्ट पदार्थो मेळवी आपे छे. ७१. त्यार पछी जीवंधर कुमार राजाने जोईने अने तेनाथी आदरसत्कार पामीने तेने वश थई गया. संसारमा एवो कोण सचेतन छे के जे अनुसारप्रिय न होय; अर्थात् पोतानी ईच्छानुसार चालनारना वशमां बधाज रहे छे. ७२. राजाए पण क्षण मात्रमा तेमनु महात्म्य जोई लीधुं, कारण के शरीर मनुष्यना प्रभावने अक्षर रहित परंतु स्पष्टरुपथी कही दे छे; अर्थात् शरीरनी चेष्टाथी मनुष्यनो प्रभाव जणाई आवे छे. ७३. पछी राजाए पोताना पुत्रोने शीखववाने तेमने बहु प्रार्थना करी, कारण के विद्या गुरुनी आराधना करवाथीज प्राप्त थाय छे अने बीजा कशा साधनथी नहि. ७४. वारंवार प्रार्थना करवाथी जीवंधर कुमार पण विद्या भणाववाने तैयार थया, कारण के उत्तम विद्या तो ते पोते जातेज आपवी जोईए, पछी प्रार्थना करवाथी तो कहेज शुं ? अर्थात् अवश्य आपवी जोईए. ७५. पछी पवित्र जीवंधर स्वामीए राजाना पुत्रोने खरा मनथी विद्या शीखवी, कारण के जे कृतार्थ अने धर्मात्मा छे ते पोताना संसारीक प्रयोजननी ईच्छा नहि करतां बीजार्नु हित करे छे. ७६. राजाना पुत्रो पण परिश्रम करीने प्रत्यक्ष आचार्यरुप
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
७६ अर्थात् पोताना गुरु जीवंधरना जेवा थई गया, कारण के विनय विद्यारूपी दूधने तरतज आपनारी कामधेनु समान छे; अर्थात् विनय करवाथी विद्या वह जल्दी प्राप्त थाय छे. तात्पर्य ए छे के ते पुत्रो विनयपूर्वक भण्या, तेथी तेमने विद्या पण तरतज प्राप्त थई. ७७. पोताना पुत्रोने विद्यामां प्रवीण जोईने राजा बहु संतुष्ट थयो. पिताने ज्यारे पुत्र मात्रज आनन्दनुं कारण छे, तो विद्वान पुत्र तो होय. आ बाबतमां तो कहेवुंज शुं ? ७८. पवित्र जीवंधर कुमारनुं तेणे बहुज सन्मान कर्यु. एम करवुंज जोईए कारण के जो पंडितोनुं सन्मान न थाय, तो तेमां सन्मान न करनारनोज दोष छे. ७९ पछी तेणे ए विचार्य के, हुं आ महान उपकार करनारनो शो उपकार करूं ? आ संसारमां विद्या आपनारनो प्रत्युपकार शुं थई शके छे ? ८०. आखरे तेणे कुमारने पोतानी कन्या आपी देवानुं उचित धार्यु. दातारथी जे कंई बने-जे ते आपी शके, ते आदरपूर्वक आपकुं जोईए. ८१. त्यारे ते पोतानी पुत्रीने परणाववाने कुमारनी सन्मुख आव्यो, कारण के जे उदार पुरुष छे, ते आ त्रणे लोकने पण आपवाने तृण समान समझे छे. पछी पुत्री आपवी ते तो वातज शी ? ८२. त्यार पछी पवित्र जीवंधर स्वामी अग्निनी साक्षीथी राजाद्वारा मळेली ते कनकमाला कन्याने परण्या ८३.
आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभसिंहे रचेल क्षत्रणूडामणि ग्रन्थमां "कनकमालालम्भ" नामे सातमुं प्रकरण पूर्ण थयुं.
19
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
৩৩
प्रकरण ८ मुं.
नकमाला साथे परण्या पछी बुद्धिमान जीवंधर कुमार तेमां अतिशय अनुरक्त रह्या नहि-तटस्थ रह्या, कारण के जे अनुराग अथवा विषय
भोगना समुद्रमा अवगाहन करे छे, ते जीवता नथी, अर्थात् विषयसमुद्रमां डूबी जाय छे. अने तेज जीवे छे के, जे आ समुद्रना किनारापरज रहे छ; अर्थात् जे विषयभोगथी अलग रहे छे—निमग्न थता नथी, तेज सुखी रहे छे. १. हेमाभा नगरीमा बुद्धिमान कुमार पोताना साळाना प्रेमथी बहु वखत सुधी रह्या, कारण के पोताना प्यारामां मोहज थइ जाय छे अने प्रेमभाव बहुज मनोहर होय छे. २. त्यां बहु वखत वीती गयो, परंतु तमने तेथी कई पण खेद थयो नहि, कारण के प्यारा मित्रोनी साथे रहेवाथी एक वर्ष पण एक क्षण समान वीती जाय छे. ३.
हवे एक दिवस कोई स्त्री तेमनी पासे मश्करी करती आवीने बेठी. सत्य छे के स्त्रीओनी चेष्टा स्वभावथीज चित्तने मोहित करनार होय छे. ४. त्यारे कुमारे कोई मतलबथी आवेली ते स्त्रीने आदरपूर्वक पूछयु के-"तमे अहीं केम आव्यां?" ठीकज छे, के जे कोई पुरुष कई वार्तालाप करवानुं इच्छे छे,
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
७८ तेने पहेला प्रश्न करवानुज कुतूहळ थाय छे. ५. ते बोली, " हे स्वामी ! आयुधशाळामां में आपने एकज वखत अभेद रुपथी दीठा छ; अर्थात् जे वखते आप अहीं हता, ते वखते आपनाज सरखो कोई पुरुष आयुधशाळामां पण हतो." ६. पवित्र जीवधरने आ वात सांभळीने बहु आश्चर्य लाग्यु, कारण के अयुक्त अथवा न थवानी वात जोवा सांभळवाथी आश्चर्य थाय छेज. ७. पछी तेमणे तर्क कों-विचार कों के, शुं अहीं नन्दाढय आव्यो छे ? (तेणे खास तेनेज दीठो हशे, कारण के ते मारीज सीकलनो छे). सत्य छे, के संसारना विषयोमा मनना तरंग तत्काळज अने आपोआपज चाले छे. ८. नन्दाढयना स्नेहने लीधे जीवंधर कुमार- शरीर मनना व्यापारथी पहेलुंज आयुधशाळामां पहोंच्यु; अर्थात् त्यां बहु जल्दी जइ पहोंच्या, कारण के आस्था होवाथी कोई कोई वखत यत्न वगर पण वचन अने कायानी चेष्टा थइ जाय छे. ९. अने त्यां जइने ते नन्दाढयने जोइने बहुज प्रसन्न थया, कारण के प्रथम तो भाई- मळवुज प्रीतिकर अथवा आनन्ददायक होय छे, पछी वियोगी भाइजें तो कहेवुज शु ? अर्थात् वियोगी, मळवु वधारे हर्षनुं कारण होय छे. १०. नानो भाई पण तेमने जोईने दुःखसागरथी तरी गयो; कारण के लांबा वखत सुधी दुःख सहेवा पछी सुख मळवाथी दुःखनुं विस्मरण थई जाय छे. ११. पछी मोटा भाईए नानाने एकान्तमां पूछयु के, तमे अहीं केम आव्या छो ? " कारण के
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
७९
बुद्धिमान पोतानी ठगाई अने अपमानने प्रगट करता नथी. १२. त्यारे तेणे खेद साथे दुःखनुं ध्यान करता करतां पोतानुं वृत्तान्त कह्यु;-कारण के पहेलां दुःखनुं ध्यान करवाथी मनुष्यने बहु दुःख थाय छे. १३.-" हे पूज्यपाद ! अमारा पापना उदयथी ज्यारे आप चाल्या गया, त्यारे हुं मुडदा जेवो थई गयो अने में मरवानो संकल्प करी दीधो. १४. पछी विद्याना बळथी बधुं वृत्तान्त जाणनार मारी भोजाई ( आपनी स्त्री ) ना शा समाचार छ ? एवो विचार करतांज मने योग्य समयमां ज्ञान थयु; अर्थात् में विचार्यु के भोजाईथी आपनो पत्तो मेळववो जोईए, कारण के ते अवलोकिनी विद्याथी आपनुं वृत्तान्त जाणती हशे. १५. पछी ए रीते भविष्यमां आपना दर्शन- सुख मळवानी आशाथी हुं मारी भोजाईने घेर गयो अने त्यां विषाद करतो रह्यो. १६. ज्यारे में तेने ए कहेवानो प्रारंभ कर्यो के, ' हे स्वामिनि! (भोजाई), जेना पाते नथी, एवी (विधवा) स्त्रीना सुखनी स्थिति केवी थाय छे ? ' त्यारे मारा हृदयनी वात जाणनार गंधर्वदत्ताओ कयु;-१७. 'हे वत्स ! तुं खेद केम करे छे ? तारा भाई सर्व प्रकारथी उपद्रव रहित छे. ते तो मोटा सुखमां छे. हुंज बहु पापी छु के जे दुःखना समुद्रमां पडी छं. १८. एमनो तो प्रत्येक देश, प्रत्येक गाम अने प्रत्येक घरमां ज्यां जाय छे त्यां आदरसत्कार थाय छे, कारण के शुभ भाग्यनो उदय थाय छे, त्योर
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
विपत्ति पण संपत्ति अथवा सुरखनुं कारण बने छे. १९. हे वत्स ! जो तमे तमारा मोटा भाई ने मळवाने इच्छता हो, तो दुःखी केम थाओ छो ? जाओ, हुं पापणी स्त्री कंई जई शकुं ? “२०. एवं कहीने भोजाइए मने मंत्र भणीने पलंगपर सुवाड्यो अने आ पत्र आपीने अहीं मोकल्यो. २१. "
जीवंधरस्वामी पोताना भाइनां करुणाजनक वाक्योथी बहु दुःखी थया. सत्य छे, के ज्यां सुधी संसार छे, त्यां सुधी प्राणीओना स्नेहनी फांसीथी छुटको थतो नथी. २२: पछी तेमणे गंधर्वदत्ताए आपेली चीठी वांची, तेमां गुणमालानी विरह पीडानुं वृत्तान्त लखेलुं हतुं. सत्य छे, के चतुर माणस पोताना मुखथी पोताना कामनी वात कहेता नथी. बीजाना बहानाथी कही दे छे. २३. जो के ते पत्रमा जे संदेशो लखेलो हतो, ते गुणमालाना बहानाथी हतो, परंतु ते वांचीने कुमारने गंधर्वदत्ता विद्याधरीना विषयमांज खेद थयो, कारण के द्वेष अने पक्षपात प्रत्येक पात्रनी अथवा वस्तुनी अपेक्षाथी भेदरुप होय छे. २४. परंतु पोतानी स्त्रीना शोकने सांभळवाथी कुमारने जे शोक थयो, ते तेमणे प्रगट कर्यो नहि, कारण के विवेकी पुरुष सुख अने दुःखमां माध्यस्थभाव राखे छे. २५.
पछी राजा दृढमित्रनां घरवाळांए पण कुमारना नाना भाई नन्दाढय साथे केटलोक वार्तालाप कर्यो- अथवा आदर सत्कार कर्यो. सत्य छ, के भाईओ भाईमां पण प्रेम त्यारेज थाय छे के ज्यारे ठगाइ रहित खरी बंधुता होय छे. २६. .
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
हवे एक दिवस घणाज गोवाळीआ गायोना रोकावाने लीधे राजाना आंगणामां आवीने रडवा लाग्या, कारण के अत्यन्त पीडा थवाथी प्राणी पोतानी रक्षा करनार पासे रक्षानी आशा करे छ. २७. क्षमावान् जीवंधर तेमनुं करुणाजनक रुदन सांभळीने रही शक्या नहि, कारण के जो कोईने नाश थवाथी अने दुःखथी न बचाववामां आवे, तो लोकनी मर्यादा केम रहे? २८. ससराए रोक्या, पण ते तेमना रोकेला न रह्या अने गायोने छोडाववाने गया, कारण के ज्यारे शक्ति वगरनो पुरुष पण अपमान सहन करी शकतो नथी, तो शक्तिवाळा अथवा प्रबळ पुरुषोनुं तो कहज शुं ? ते केवी रीते सहन करी शके ? २९. परंतु त्यां जतांज जे लोक गायोने चोरीने लइ गया हता, ते स्वामीना मित्र बनी गया, कारण के ज्यारे भाग्यनो उदय थाय छे, त्यारे लाडो शोधनारने पण रत्न मळी जाय छे. ३० एक बीजाने जोवाथी स्वामी अने स्वामीना ते मित्रोमां एक सरखी प्रीति थई गई. निश्चयथी एक कोटीगत स्नेह अर्थात् एकंगी प्रीति मूर्योनीज चेष्टा छे, बुद्धिमानोनी नथी. अभिप्राय ए के, बुद्धिमानोमा बन्ने तरफथी एक सरखोज प्रेम होय छे. ३१. , शत्रुओने मित्र थएला जोईने पोताना जमाईना विषयमां राजाने बहुज आश्चर्य थयु. सत्य छे, के पुण्यात्मा पुरुषोने सेना आदि समृद्ध सामग्रीथी रहित होवा छतां पण तेथी रहित नहीं
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
गणवा जोईए; अर्थात् कई नहि होवा छतां पण ते सर्व कई करी शके छे.३२. विद्वान जीवंधर कुमार पोताना नानाभाई अने मित्रो सहित अत्यन्त हर्षित थया, कारण के श्रेष्ठ पुरुषोने माटे समान अभिप्रायवाळाना संगमथी वधीने कोई बीजुं सुख नथी. ३३. ___त्यार पछी मित्रोद्वारा पोतार्नु कदी नहि थएलु एवं सन्मान थएवं जोईने स्वामीने संदेह थयो; अर्थात् तेमने संशय थयो के, ते आटलो आदरसत्कार केम करे छे. ? कारण के जे लोक विशेषताने ओळखनार छे, ते विशेष आकृति जोईने सन्देह करे छे. ३४. तेथी तेमणे मित्रोने एकान्तमां तेनुं कारण पूछ्यु. सत्य छे, के जेनो अभिप्राय एकज होय छे, जे एक बीजाथी पोतानी वात छुपावता नथी, तेमनामां उप्तन्न थएली मित्रता स्थिर रहे छे. ३५. त्यारे तेमांथी जे पद्मास्य नामनो प्रधान मित्र हतो, ते बोल्यो;-कारण के सज्जनोनी ए शैली छे के, ते अनुक्रमे कोई कार्यनो आरंभ करे छे. ३६. –“हे स्वामिन् ! आपना वियोगमा अमे लोक मानो के आगळ उदय थनार बहु भारे भाग्यना हस्तावलम्बन मळवाथी दग्धप्राण थईने पण जीवता रह्या छीए; अर्थात् जे पुण्यकर्मना उदयथी आपनुं आ दर्शन थवा, हतुं, तेना अवलम्बनथी अमे हजु सुधी जीवता रह्या छीए. ३७. पछी देवीए (गंधर्वदत्ताए) अमने पोताना हाथर्नु अवलम्बन आपीने बचाव्या अने धीरज आपी. त्यारे अमे घोडा वेचनारनो वेष धारण करीने त्यांथी
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
13
आव्या. ३८. पछी रस्ते लांघीने मार्गनो थाक दूर करवा माटे अमे तपस्वीओना प्रसिद्ध दंडकारण्यमा विश्राम कर्यो. ३९. पछी चार तरफ नवी नवी मनोहर वस्तुओ जोता जोता अने ते वनमा विहार करता करता अमे कोई एक स्थानमां आपनी पुण्यस्वरुपा माताने दीठी. ४०. अमने जोतांज माताए प्रश्न कों के, तमे क्यांथी आव्या ? त्यारे अमे पण माताना प्रश्ननो यथाक्रम उत्तर आपवानो प्रारंभ कर्यो;-४१“राजपुर नगरमां एक पंडतोनो अने वैश्योनो शिरोमणि जीवक नामे पुरुष छे. अमे बधा तेना अनुजीवी अथवा दास छीए. ४२. त्यां कोई काष्ठांगार नामे पुरुष ते निरपराधीने मारवाने माटे-" बस अमे एटलुंज कह्यु के, माता मूर्छा खाईने पडी गई. ४३. " हाय ! हाय ! हे माता ! जीवक मर्यो नथी." ज्यारे में आ प्रमाणे कयु, त्यारे ते जेनो प्राण नीकळवाने रोकाई गयो हतो, सचेत थईने प्रलाप करवा लागी. ४४. जेम मेघमाळा वज्रपात अने पाणीनी वर्षा एक साथ करे छे, तेमज माताए प्रलाप करतां करतां पोतानी वीतेली बधी कथा संभळावी अर्थात् तेमनो प्रलाप अमारा हृदयमां वज्रपात समान प्रतीत थयो अने आपनुं वृत्तान्त जळधारा समान. ४५. तेमना मुखरुपी आकाशथी वरसती आपनी उन्नतिरुपी रत्नानी वर्षा पामीने अर्थात् माताना मुखथी आपनी उन्नतिना समाचार सांभळीने अमे ए समज्या के, मानो बधी पृथ्वीज अमने मळी गई छे. ४६. त्यार पछी आफ्ना वैभवना महिमाना वर्णनथी माताने
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
धीरज आपीने अने तेमने पुछतां ज्यारे तेमणे आज्ञा आपी, त्यारे अमे आ देशमां आव्या छीए. ४७."
माताने जीवती पण मरेली समझीने अर्थात् मारी माता यद्यपि जीवती छे, तोपण देशान्तरमा होवाथी मरेला समानज छ एवं जाणीने; तत्वोना जाणनार जीवंधरने पण खेद थयो. कारण के प्राणीओनो मातृस्नेह (मातानो प्रेम) बीजा उपायथी नष्ट थतो नथी. ४८. पछी ते बहु भारे गौरवना धारण करनार जीवंधर कुमार माताने जोवा माटे आतुर थई गया. तेनी पासे तरतज जवा लाग्या. भला एवो कोण छे, के जे पोतानी पहेला न दीठेली माताने जोवानुं ईच्छे नहि ? ४९. ते वखते माननीय स्वामी पोताना माताना स्नेहमां बीजा बधाने सर्वथा भूली गया. अने तेमना ते बळवान स्नेहे रागद्वेषादि विकार नष्ट करी दीधा. ५०. पछी तेमणे पोतानी स्त्री अने बीजा पुरुषो पासे पण पोताने जवानी वात प्रगट करी, कारण के आवश्यक कामने माटे पण बंधुओने विना पुछये विमुख थईने जर्बु दुःखदायी थाय छे. ५१. पछी पोताना साथीओ तथा बंधुओने समझावीने ते हठपूर्वक त्यांथी चाल्या गया, कारण के समझाववा बुझाववाथी अथवा अनुनयथी महान पुरुषोनो महिमा वधे छे. ५२.
त्यार पछी कार्यने पुरुं करवानी बुद्धिना धारण करनार चतुर स्वामी दंडकवनमां गया अने त्यां पोतानी माताने जोईने प्रेमान्ध थइ गया, कारण के तत्त्वज्ञान अथवा विचारना जता रहेवाथी रागादिभाव प्रबळ थाय छे. ५३. पुत्रने जन्मतांज
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
त्यागवाथी माताने जे दुःख थयुं हतुं, ते हवे तेने जोवाथी बधुं दुःख जतुं रह्यं. कारण के पुत्रज माताओना प्राण छ. ५४. पुत्रने जोईने ते दुःखीणी माताए ए इच्छ्यु के, हवे आ राजा थाय. कारण के, एक वस्तु पामवाथी मनुष्य बीजी कोई वस्तु पामवानी इच्छा करे छे. तेने कदी संतोष थतो नथी. ५५. पछी माताए कह्यु,-" हे पुत्र ! तने तारा पितानुं राज्य हवे क्यारे मळशे ? कारण के लोकमां कोई पण कार्य एवं दीठामां आवतुं नथी के, जे सामग्री विना बनी शके. " ५६. पुत्र बोल्यो-" हे माता ! व्यर्थ खेद करवाथी शुं ? तुं खेद केम करे छे ? राज्य मने अवश्य मळशे.": चतुर पुरुषोए मूढ मनुष्यो सन्मुख पोताना बळनी प्रशंसा करवी. ५७. पुत्रनुं आ वचन सांभळीने माताए जाण्युं के, पृथ्वी तो हवे मारा हाथमांज आवी गई. कारण के मूढ मनुष्य सांभळीनेज निश्चय करे छे, युक्तिद्वारा तर्क वितर्क करवानी शक्ति राखता नश्री. ५८.
राज्यनी वात कहीने माताए जीवंधरने कठिणाइथी रक्षा थवा योग्य एक बहु भारे नाशना स्थाननी सन्मुख करी दीधा अर्थात् युद्धने माटे तैयार कर्या. सत्य छ, के बीजं तो शं, क्षत्रीओनी स्त्रीओ पण शत्रु थाय छे. ५९. त्यार पछी खामीने जे कंई कर, हतुं ते विषे पोतानी माता साथे सलाह करी. कारण के जे लोक काम करवामां चतुर होय छे ते जे काम होय छे ते बीजा साथे विचार करीनेज करे छे.
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
६०. पछी बुद्धिमान स्वामीए पोतानी माताने तो पोताना मामाने त्यां मोकली दीधी. कारण के पोतानी मातानी दुर अवस्था कोई पण सजीव पुरुष सहन करी शकता नथी. ६१. अने पोते दंडकारण्यना तपस्वीओनी पासेथी संतोषथी पोताना नगरमां गया अने त्यां पासेना एक बागमां उता. ६२.
पछी मित्रोने त्यां बेसाडीने पोते नगरमां चारे तरफ ज्यां त्यां विहार करवा लाग्या, कारण के बन्धनरहित इंद्रियरुपी हाथी कांइ एक जग्याए रहेतो नथी. ६३. पछी बुद्धिमान कुमार राजपुरीने जोईने अत्यंत खुशी थया, कारण के प्राणीओए ममतानी बुद्धिथी करेलो मोह बहु वधारे होय छे; अर्थात् जे वस्तुमा एवी बुद्धि होय छे के, आ मारी छे, तेमां प्राणी बहु मोह करे छे. ६४. ते वखते कोई क्रीडा करती स्त्रीए पोताना महेलना अग्रभागथी एक दडो नांखी दीघो. सत्य छे, के सम्पत्ति अने आपत्तिनी प्राप्ति कोईने कोई बहानाथीज थाय छे. ६५. ज्यारे अंतरंग बुद्धिवाळा स्वामीए उंचे मुख करीने जोयुं, त्यारे ए दडो नांखनारी तरुण स्त्रीने जोईने ते मोहित थई गया. कारण के जीतेंद्रिय अथवा इंद्रिओने वशमां राखनार पुरुषोनां मन योग्य वस्तुपरज जाय छे. ६६. पछी मोहने वश थईने ते तरतज तेना महेलना छजापर चढी गया. कारण के पुण्यवानोनी ईच्छा पण निष्फळ थती नथी; अर्थात् विचार करतांज तेमना कार्यनी सिद्धि थई जाय छे. ६७. तेमने ए रीते छजापर चढता जोईने कोई वैश्यपति ( शेठ ) आव्या अने बोल्या; कारण के
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
८७
प्राणी पोतानी लांबा वखतथी इच्छेली वस्तुने पामीने
बहु प्रसन्न थाय छे. ६८ - " हे भद्र ! हुं सागरदत्त नामे वैश्य छं. आ मारुं घर छे. अने आ मारी सहधर्मिणी कमळाथी उत्पन्न थएल विमळा नामनी कन्या छे. हवे ते तरुण थई गई छे. ६९. जे वखते आ कन्या उप्तन्न थई हती, ते वखते ज्योतिषीओए ए विचार कर्यो हतो, के जेना आववाथी तमारो नहि बेचानार रत्नोनो समूह वेचाई जशे, तेज पुरुष आ कन्यानो पति थशे. ७०. ते आपना अहीं आववाथी ए वात एवीज थई; अर्थात् मारां बधां रत्न अने मणि वेचाई गयां; तेथी हे भाग्याधिक ( बहु भाग्यवान् ) ! आपज आ कन्याना लग्नने योग्य छो. तेथी अधिक शुं निवेदन करूं ? ७१. तेना आ विषे बहु आग्रह करवाथी तेमणे पण स्वीकार करी लीधो. कारण के जीतेंद्रिय के वशी पुरुष के वस्तुने इच्छे छे, तेने पण लेवामां अधीरता प्रकट करता नथी. भाव ए छे के, जोके ते विमळाने चाहता हता, तोपण तेमणे तेनुं ग्रहण करवं सागरदत्तना आग्रहथीज स्वीकार्य, धीरज छोडी नहि. ७२.
त्यार पछी सत्यंधरना पुत्र सागरदत्ते आपेली कन्या साथे अग्निनी साक्षीथी लग्न कर्यु. ७३.
आ प्रमाणे श्रीमान् वादी सिंहसूरिए रचेल क्षत्रचूडामणि ग्रन्थमां “ विमळालम्भ" नामे आठमुं प्रकरण पूर्ण थयुं.
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
८८
प्रकरण ९ मुं.
त्या र पछी अत्यंत स्नेही स्वामीए आ नवी परणेली विमळा स्त्रीने बहु प्यारी अनुभवी. जेने अमे चाहीए छीए अने जो ते पण अमने चहाय, तो आ संसार पण साररुप जणाय छे; अर्थात् आ संसारमां परस्पर खरो प्रेम होवाथी बहु सुख प्राप्त थाय छे. १ पछी ते स्त्रीने प्रसन्न करीने तेने छोडीने आप पोताना मित्रोने आवी मळ्या. कारण के जीतेंद्रिय पुरुषोना मनने कोई कदी रोकी शकतं नथी. २. ते वखते स्वामीना शरीरपर वरनां चिन्ह जोईने बंधुओए तेमनो बहु आदरसत्कार कर्यो. कारण के जीवोनी प्रीति आ लोक संबंधी अतिशयोमांज बहु होय छे; अर्थात् कोईनी संसारिक चढती जोईनेज लोक ते पर प्रीति करे छे. ३. ते मित्रोना साथमां जे बुद्धिषेण नामे विदूषक हतो तेणे हसीने कर्छु; — कारण के बीजाने प्रसन्न करवाने जे सेवकाई करवामां आवे छे ते नाना प्रकारनी होय छे; अर्थात् जे रीते बने छे ते रीते विदूषक पोताना स्वामीने प्रसन्न करे छे. ४. दुर्भाग्यने लधे जे कन्याओने कोई पूछतुं पण नथी, जेनी लोक उपेक्षा करे छे ते तो सहेलाईथी मळी शके छे ( तेथी तेनी साथे लग्न करीने आप
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
शुं प्रसन्न थाओ छो ? तेमां आपनी शी वडाइ ?) ज्यारे सुरमंजरीनी साथे लग्न करशो त्यारे आप भाग्यशाळी थशो; अर्थात् बीजानी माफक सुरमंजरी, मळवू सहज नथी ! " ५. विदूषकना तानथी उत्तेजित थइने जीवंधर कुमारे ते मानिनी (मानवाळी) सुरमंजरीने परणवानी मनमां इच्छा करी (के जेना चूर्णने जीवंधरे सुगंधरहित खराब बताव्युं हतुं.) कारण के कोई बहानुं मळी जवाथी दुराग्रह वधी जाय छे. ६.
हवे कुमारे आ विषे यक्षे बतावेल ते उपायभूत मंत्रनु स्मरण कर्यु, कारण के पंडितोनी इच्छा स्थिर अने अटल उपायथीज पूर्ण थाय छे. ७. अने उपाय जाणनार स्वामीने वृद्धनुं रुप धारण करवानो उपाय सारो लाग्यो, कारण के जीवोने बाळ अने वृद्ध दया पात्रज छ; अर्थात् लोक बाळको अने वृद्धोथी जो कोई अपराध पण थई जाय छे, तो पण तेपर दया करे छे. ८. मंत्रना महिमाथी कुमारने तेज वखते बुढापो आवी गयो. शुं निर्दोष अने प्रशंसनीय विद्या कदी निष्फळ थई शके छ ? नहि. ९.
त्यार पछी ए बुड्डो ते नगरीनी चारे तरफ बिहार करवा लाग्यो; कारण के जे लोक नीतिना जाणनार छे, तेमनी वर्तगुंकपर कोई शंका करता नथी. १०. बुढ्ढा ब्राह्मणनो वेश तेणे एवो धारण कर्यो हतो के, ते ओईने विवेकी पुरुष विषयथी विरक्त थई जाय, कारण के बुढापण विरक्तिने माटेज होय छे.
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
९०
तेने जोईने वैराग्य थवोज जोईए. ११. बुढापण मूढ माणसोने ए बतावे छे के, माखीओनी पांखथी पण पातळा मांसने ढांकनार चामडीमां (शरीर उपरनी पातळी छालमां) सुंदरता मानवी एक प्रकारनी भ्रान्ति के भ्रम छे. १२. हे मूर्खो ! खेद छे के, आ आयुष्य अने शरीर क्षण क्षणमां नाश पामनार छे. परंतु अमे ए वातने जाणता नथी. फक्त समयनेज क्षयात्मक अर्थात नाश पामनार जाणीए छीए. १३. हाय ! बीजुं तो शुं, बुढापो आववाथी लोक पोतानी माताने पण तरणा बराबर गणता नथी, अर्थात् तरणाथी पण तुच्छ समजे छे. तथा बुढापाथी तो मरकुंज सारुं छे. १४. पंडितोमां आ रीते विचार अने मूर्खोमां हांसी उप्तन्न करावतो ते बुढ्ढो केटलीक वारे सुरमंजरीने घेर पहोंच्यो. १५. ज्यारे त्यां घरनी द्वारपालिनी स्त्रीओए तेने आववानुं कारण पुछ्युं, त्यारे बुढाए कह्युं के "हुं मारा कल्याणने माटे कुमारी तीर्थमां स्नान करवा आव्यो छु. ( अहीं कुमारी एक तीर्थनुं नाम छे, अने कुमारी सुरमंजरीनी तरफ बनावट छे). ठीकज छे के सज्जनोनां वचन मिथ्या थतां नथी; अर्थात् ते ते माटेज आव्या हता. १६. द्वाररक्षक स्त्रीओ तेनी आ अजायब जेवी वात सांभळीने हसी पडी. कारण के मूर्खोने सज्जननां वाक्य कौतकज लागे छे. १७. पछी तेमणे कृपा करीने तेने रोक्यो नहि, तेथी बुढो सुरमंजरीना घरमा चाल्यो गयो, जे लोकोने कोई प्रकारनी ग्लानि रही नथी, ते बळेला बीजनी माफक निर्लज क्यां जीवे छे ? ते तो मरेलाज छे. भाव ए छे
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
के आ रीते आदर विना कोईनी कृपाना भरोशाथी जवू, ए तो लज्जावानने माटे मरवुज छे. १८, द्वाररक्षक सुंदरीओए डरतां डरतां आ वात सुरमंजरीने कही दीधी. कारण के स्वामीने आधीन रहेनार सेवकोने भय अने स्नेहनुज बळ रहे छे. १९. पुरुषोथी द्वेष करनार सुरमंजरीए पण ते अतिशय वृद्ध पुरुषने दीठो अने बेसाडयो. सत्य छे के प्राणीओनांबधां काम कुदरतने अनुसारज थाय छे. २०. पछी ते बुढाने भूख्यो जोईने ते श्रेष्ठ कुमारीए भोजन कराव्यु, कारण के अंतःस्वरुपनी यथार्थतामां वेष नियन्ता होतो नथी; अर्थात् बहारनी आकृतिथी अंदरनो खरो भेद खुलतो नथी. २१. भोजन कर्या पछी ते बुद्धिमान जाणे बुढापाथी थाकी गयेला होय तेम एक शय्यापर सूई गया. कारण के जे लोक विचार करीने काम करे छे, ते योग्य समयनी प्रतीक्षा करता रहे छे. २२.
त्यार पछी गायन विद्याना जाणनार ते बुट्टाए संसारने मोहित करनार गायन गायुं, कारण के पांचे इंद्रिओथी उत्पन्न थएल मोह एक बीजा साथे अधिक अधिक प्रीतिजनक होय छे. २३. सुरमंजरीए गावानी कुशळता जोईने बुढाने बहु शक्तिवान मान्या. कारण के जे विशेषज्ञ होय छे, ते कोई ने कोई प्रकारथी विद्वानो अने अविद्वानोने ओळखीज ले छे. २४. अने तेथी ते आ वृद्ध ब्राह्मण पासे पोताना कामनी पण आदरपूर्वक परीक्षा कराववाने तप्तर थई,
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
कारण के जीवोने स्वभावथीज पोताना काममां तप्तरता रहे छे. २५. तेणे पूछ्यु के,—गायन विद्या समान तमारी बीजा कोइ विषयमां शक्ति छे ? अर्थात् बीजी पण कोई विद्यामां तमे निपुण छो के नहि ? सत्य छे के जो ज्ञानी पुरुषोने कंई प्रार्थना करवामां आवे अने ते निष्फळ जाय, तो ते जीवता नथी-तेमने मरवुज थई जाय छे. अभिप्राय ए छे के, जो सुरमंजरी एवो प्रश्न करे के, तमो अमुक विद्या जाणो छो, अने कदाच ते न जाणता होय, तो ते उत्तर आपवामां तेने मरवू थई जाय छे के, 'हुं जाणतो नथी.' तेथी तेणे एवी युक्तिथी पुछ्युं के, जेथी ते कोई ने कोई विद्यामां पोतानी गति बतावी दे. २६. त्यारे ते बहु चतुर बुढ्ढाए उत्तर आप्यो के, " हा ! बधा विषयोमां मारी शक्ति छे, अने ते खूब छे. " कारण के कहेवानी चतुराईथी कहेला विषयमा बहु दृढता आवी जाय छे. २७. आ सांभळीने सुरमंजरीए पोते ईच्छेला वरने पामवानो उपाय पूछ्यो, कारण के जो कोई प्रीतिमां अंध थई जाय छे, तो तेना मनमा ए वातनो विचार नथी थतो के, आ याचनाथी दीनता प्रगट थशे. २८. बुढ्ढाए बताव्यु के-" सर्व मनोरथोने सफळ करनार कामदेव छे. " कारण के इष्ट मनोरथने अनुकूळ बचनज प्राणीओना मनने प्रसन्न करे छे. २९. आ सांभळीने सुरमंजरीए पोताना ईच्छित पदार्थने पोताना हाथमां आव्योज समझी जे माणस मनोरथोथीज संतुष्ट थई
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाय छे, तेने जो मूळ वस्तु मळी जाय, तो पछी कहेवुज शुं छे ? ३०.
त्यार पछी ते बुड्ढो ब्राह्मण सुरमंजरीने पोते धारेला कामदेवना मंदिरमा लई गयो. सत्य छे, के जे लोक सारी रीते विचार करीने काम करे छे, तेना काममां दोष केवी रीते आवी शके ? तेनुं काम तो सफळज थाय छे. ३१. त्यां ते कुमारीए जीवंधर स्वामीने प्राप्त करवानी इच्छाथी कामदेवने बहुज प्रार्थना करी. सत्य छे के जे राग अने द्वेष जन्मोजन्मथी बांधेला होय छे ते नाश पामता नथी. ३२. ते वखते " ते पोताना वरने प्राप्त करी लीधो" ए रीते बुद्धिषेण विदूषके कहेला वचनने सांभळीने पतिव्रता सुरमंजरी समझी के, आ वचन साक्षात् कामदेवे कयुं छे. कारण के भोळापणज स्त्रीओन आभूषण छे. अभिप्राय ए छे के, ते कामदेवना मंदिरमां जीवंधरनो मित्र बुद्धिषेण विदूषक पहेलेथीज संताई बेठो हतो. ते ज्यारे सुरमंजरीए प्रार्थाना करी के, मने जीवंधर वर मळे, त्यारे ते मूर्तिनी पासेथी कही दीर्थै के, 'तने तारो वर मळ्यो.' अने तेने ते भोळी कुमारी समझी के, कामदेवे मारी प्रार्थनाथी प्रसन्न थईने वर आप्यो छे. ३३. ते वखते जीवंधर कुमारे पोतानुं असलरुप प्रगट कर्यु; जे जोईने कुमारी लज्जित थई गई. अने एम थर्बुज जोईए, कारण के जेने लज्जा नथी, ते लोक दया विनाना पुरुषो समान जीवता पण मरेलाज छे. ३४. पछी त्यां कुमारने तेणे पतिभावथी बहुज संतुष्ट कर्या. सत्य छे
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
के स्त्री अने पुरुषना एक कंठ अथवा एकरुप थवाथी अने तेमां अति प्रेम होवाथी आ संसार पण साररुप थई जाय छे. ३५. ____ त्यार पछी जीवंधर कुमारे कुबेरदत्तद्वारा ग्रहण करेली सुमतिनी पुत्री सुरमंजरीनी साथे विधिपूर्वक लग्न कर्यु. ३६..
आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभसिंहमूरिए रचेल क्षत्रचूडामाण ग्रन्थमा “ सुरमंजरीलम्भ" नामे नवमुं प्रकरण पूर्ण थयुं.
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
त्या
९५
प्रकरण १० मुं.
र पछी ते बहु प्यार करनार कुमारे ते परणेली सुरमंजरीनुं बहु सन्मान कर्यु. कारण के जे वस्तु बहु यत्नथी मळे छे, तेमां प्रेम पण विशेष होय छे. १.
पछी तेने कोईने कोई रीते प्रसन्न करीने समझावीने कुमार पोताना मित्रो पासे आव्या. जे कुलिन स्त्रीओ होय छे, ते पोताना स्वामीनी इच्छा बिरुद्ध आचरण करती नथी. २.
त्यार पछी सुरमंजरी सहजज मळवाथी जे मित्र बहुज आश्चर्य करता हता, तेमनी साथे कुमार पोतानां मातपितानी पासे गया. मित्रोने आश्चर्य थवुंज जोइए, कारण के जे वस्तु पोताने दुर्लभ होय छे - कठीणाइथी पण मळती नथी, ते जो बीजान सहजज मळी जाय छे, तो आश्चर्यकारक लागे छेज. ३. तेने जोईने माता पिताने पण अतिशय स्नेह थयो. काळना मोढामांथी नीकळेल पुत्र कोने आनन्ददायक के स्नेहनुं कारण होतुं नथी ! सर्वनेज होय छे. ४. पछी तेमणे पोतानी बन्ने प्यारी स्त्रीओने वारंवार प्रसन्न करी. कारण के संसारनी एज नीति छे. ५.
त्यार पछी जीवंधर कुमार गंधोत्कट साथे मंत्रणा करीने - विचार करीने त्यांथी चाल्या गया, कारण के पंडित
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुरुष जे कार्य करवा ईच्छे छे, ते ज्यां सुधी पूर्ण थतुं नथी, त्यां सुधी विश्राम लेता नथी. ६. अने विदेह देशनी धरणीतिलका नामनी राजधानी के जे धरणीमां ( पृथ्वीमां ) तिलक स्वरुप उत्तम नगरी छे, त्यां पहोंच्या. ७. त्यां तेमना मामा विदेहदेशना राजाए तेमनो बहु आदरसत्कार कर्यो. एवो कोण छे, जे पोतानी बहेनना महा भाग्यवान् पुत्रनो आदरसत्कार करतो नथी ? सर्व करे छे. ८. गोविन्दराज पण जीवंधर कुमारना गयेला राज्यनी स्थापना करवाने तैयार थया. ज्यारे मत्त हाथी पोतेज दन्तप्रहार करवा इच्छे छे, त्यारे बीजाना करवाथी तो कहेज शु अर्थात् गोविन्दराज तैयार हताज. पछी कुमारना कहेवाथी तो तैयार थवाज छे. ९.
पछी शत्रुने केवी रीते जीतवा जोईए, अथवा शत्रुना विषयमां शुं करवू जोईए, ए प्रकारनी वातोना जाणनार राजाए मंत्रशाळामां आवीने मंत्रीओ साथे सलाह करी. कारण के कोई वातनो निश्चय सलाह विना करवो जोईए नहि. अने ज्यारे कोई वात करवानो निश्चय कर्यो होय, त्यार पछी सलाह करवी जोईए नहि. १०. ते वखते मंत्रीओने राजाए काष्टांगारनो आ संदेशो कह्यो;-कारण के शत्रुनुं हृदय जाणीनेज प्रतीकार प्रारंभ करवो जोईए. ११.-" राजा सत्यं धरने एक मदोन्मत हाथीए मारी नांख्या हता, परंतु पापना उदयथी तेने मारवानो अपजश मने लाग्यो छे. परंतु आ अपजशने आप जेवा यथार्थ वातने जाणनार जूठीज समझो छो. १२. ( हवे आप कृपा
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
करीने अहीं आवो. ) आपना आववाथी हुं निःशल्य थई जईश; अर्थात् मारा चित्तमा जे आ अपजशनो कांटो भराई रह्यो छे ते नीकळी जशे, कारण के सज्जनोनी साथे जो संगम थई जाय, तो दुष्ट माणसोमां पण सज्जनता आवी जाय छे. १३." आ संदेशाथी ए निश्चय थयो के, शत्रु बहु जल्दी नुकशान करवा ईच्छे छे. सत्य छे, के दुर्जनोनुं नम्र थq, पण धनुष्यना नमवानी माफक भयानक होय छे. १४. शत्रु अमने नुकशान करवा ईच्छे छे, ए जोईने पोतानुं काम करवा सिवाय जेने कई पण सुझतुं नहोतुं, एवा गोविन्दराज संतप्त थइ गया. सत्य छे के-दुर्जनना आगळ सज्जनता बताक्वी ए कीचडमां दूध नांखवा बराबर छे. भाव ए छे के, काष्ठांगारपर कोप करवोज योग्य हतो. तेनी साथे शान्तिनुं वर्तन करवू कीचडमां दूध नाखवा समान छे. १५. " तेणे अमने कोई मतलबथी बोलाव्या छे, तेथी अमे पण तेना आ बोलाववाना व्हानाथी त्यां जइए छीए, अर्थात् ज्यारे तेणे अमने छळ करीने बोलाव्या छे, त्यारे अमे पण तेना आ छळथी लाभ लेवाने-तेने उलटुं नुकशान आपवा त्यां जईए छीए " ए वात सारी रीते गोविन्दराजे नक्की करी. सत्य छे के-जे लोक कोईने जीतवा इच्छे छे, ते बगला माफक आचरण करे छ; अर्थात् बगला सरखा बहारथी साधु बने छे, परंतु अंदरथी घात करवाना प्रयत्नमां रहे छे. १६. पछी तेणे बधा लोकमां ए प्रसिद्ध कराव्युं के, मारी काष्ठांगार
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
९८
साथे मित्रता थई गई छे अने ढंढेरो पण पीटाव्यो, कारण के समाचारनी सूचना गमनथी पण पहेलांज पहोंची जाय छे; अर्थात् पोताना जवा पहेलांज ए समाचार त्यां पहोंची जशे, आ विचारथी तेणे ढंढेरो पीटाव्यो. १७. त्यार पछी आ चतुर राजाए एक बहु भारे चतुरंगिनी सेना तैयार करी, कारणके पोताना शत्रुना कामोनी प्रबळतानो विचार करीनेज उपाय नक्की करवामां आवे छे. १८. त्यार पछी गोविन्दराज मुनि, आर्जीका, वगेरे पात्रोने दान आपीने सारा मुहूर्तमां पोताना नगरथी नीकळ्या, कारण के दानपूजा करनारनां तथा तप अने शीयलनुं पालण करनारनां एवां कयां काम छ के, जे सिद्ध थतां नथी ? अर्थात् सर्व कार्य सिद्ध थाय छे. १९. पछी ए वहु भारे सेनाना स्वामी राजमार्गोमां केटलाक पडाव नांखीने राजपुरी पहोंच्या अने त्यां राजपुरीनी पासे कोई स्थानमा रह्या. २०.
आ वखते काष्ठांगारे गोविन्दराजने वारंवार बहुज भेटो मोकली, परंतु व्यर्थ. हाय ! ए कपटी लोक चतुर माणसोनी माफक मायाथी आचरण करे छे. २१. अहींथी स्वामीना मामाए पण बदलानी भेट मोकली, कारण के ज्यां सुधी मनोरथ पुरा न थाय, त्यां सुधी शत्रुओनी आरधना करवीज जोईए. २२. ___त्यार पछी गोविन्दराजे एक चंद्रकयंत्र तैयार कराव्यु, जेमां त्रण भुंड बनावेलां हता, अने ढंढेरो फेरव्यो के, जे कोई पुरुष आ यंत्रना त्रणे मुंडने एकी वखते छेदशे, तेने हुं
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
९९
मारी कन्या परणावीश. ठीकज छे के, जे लोक उत्तम उपायोमां तत्पर रहे छे, ते कार्यने नियमथी सिद्ध करे छे.२३. ढंढेरो सांभळीने त्रणे वर्णना कुळमां उसन्न थएल ( ब्राह्मण, क्षत्रि, वैश्य ) धनुर्धारी एकठा थई गया; कारण के ज्यां सुधी मोह रहे छे, त्यां सुधी जीवोनो प्रयत्न एवी वस्तु पामवा माटेज होय छे, जे तेमने योग्य होतो नथी. २४. परंतु ते बधाज धनुर्धारी ते यंत्रनां मूंडने छेदवामां समर्थ थया नहि, कारण के पारगामिनी अर्थात् सम्पूर्ण विद्या क्यां राखी छे ? २५. आखर विज्याना पुत्रे अर्थात् जीवंधर कुमारे चंद्रकयंत्रपर चढीने अलात चक्रथी त्रणे मूंडने रमतमां तरतज वेधी नांख्यां सत्य छे के, शुं सूर्य अंधकारनो नाश करनार नथी ? २६.
आ वखते अवसर जोईने गोविन्दराजे त्यां जेटला राजा एकठा थया हता, ते बधाने कही दीधुं के, ते महाराजा सत्यंधरना पुत्र छे. ठीकज छे, के कृती पुरुषोनी वाणी योग्य स्थानमांज होय छे; अर्थात् विद्वान पुरुष अवसर जोईनेज बोले छे. २७. ए सांभळीने ते राजाओए पण एवं कह्युं के, - ' हें ! अमने पण याद आवी गयुं. ' गोविन्दराजनी वात मानी अने राजपुत्रनुं अभिनन्दन कर्यु, कारण के जे पुरुष आलीढादि पांच स्थानमां चतुर होय छे, तेनुं नरेन्द्रत्व अथवा राजापणुं सूचित थाय छे; अर्थात् कुमारनी धनुर्विद्यानी उपर कहेली चतुराई जोईने तेमणे जाणी लीधुं के, निश्चयेज आ राजानो पुत्र छे. २८.
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
काष्ठांगार जीवंधर कुमारने जोईने क्षीणचित्त थई गयो, तेनो उत्साह भंग थई गयो अने राजाओनी उपली वात सांभळीने तो ते मूर्ख मरेला जेवो थईने आ रीते विचार करवा लाग्यो;-२९. “जो ते सत्यंधरनो पुत्र होय, तो हाय ! हुं हमणांज मार्यों गयो, कारण के पृथ्वी वीरभोक्ता छे. जे वीर होय छे तेज पृथ्वीने भोगवे छे. अने पछी जेमां सर्व प्रकारनी योग्यता छे तेनुं तो कहेवूज ? ३०. ते वखते मथने मारी आज्ञाथी आ कुत्सित वणीकने केवो मार्यो हतो, पण जो ते बची गयो. सत्य छे के, आ लोकमां पोताना हितने माटे पोताना सिवाय बीजु कोई सामुहितकारी:नथी. ३१. अने तेना दुराशय मामाने में व्यर्थ केम बोलाव्यो ? सत्य छे, के मूर्ख लोक पोताना नाशने माटे पोतेज काम उठावे छे. ३२. गोविन्दराज साथे मळीने ए दुर्दान्त अर्थात् कठीणाइथी दमन करनार कुमार शुं करशे ? वायुनी प्रेरणाथी वायुनो मित्र अमि पृथ्वीनी कई वस्तुने बाळतो नथी ? भाव ए छे के, ए बन्ने मळीने मारो बधो नाश करी नांखशे. " ३३. ए रीते ज्यारे शत्रु (काष्ठांगार) चिंताथी व्याकुळ थई रह्यो हतो, त्यारे स्वामीना मित्रोए तेनुं अपमान करता करता तेथी पण विशेष चिंतातुर को. सत्य छे के, जेनां पुण्य कर्म क्षीण थई जाय छे, तेनी पाछळ विपत्तिओ लागीज रहे छे. ३४. तेथी आ अपमानथी क्षुब्ध थईने मत्सर करनार काष्ठांगारे जीवंधर साथे युद्ध करवा धार्यु, कारण के जे पुरुष मत्सरी होय छे--बीजानी भलाईथी
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
बळे छे, ते यथार्थ वातने विचारी शकता नथी. ३५. आखरे युद्ध थवा लाग्युं, तेमां केटलाक राजा तो जीवंधरनी तरफ थई गया अने केटलाक वेरीना पक्षमां गया, कारण के संसारमा सुजन अने दुर्जन बन्ने प्रकारना मनुष्य होय छे, अने ते आज थई गया नथी, हम्मेशांथीज छे. ३६. त्यार पछी ते युद्धमां कौरव अर्थात् जीवंधर कुमारे काष्टांगारने परलोकमां पहोंचाइयो. हाय ! आ संसारमा दुर्बळ पुरुष बळवानथी मार्या जाय छे. ३७. शत्रुना मरवाथी व्यर्थ जीवहत्याना डरथी कुमारे लडाई बंध करी दीधी, कारणके जे क्षत्री होय छे ते व्रती होय छे; अर्थात् क्षत्रीओने संकल्पी हिंसानो सहजज त्याग होय छे, अने विरोधीना मरी जवा पछी नरहत्या थवाथी जे हिंसा. थाय छे, ते संकल्पी होय छे. ३८.
ते वखते गोविन्दराजे एवं कडं के,-" मारी बहेन विज्याए आवा वीर पुत्रने जन्म आप्यो अने मारी पुत्री लक्ष्मणा आवा वीर पुरुषनी स्त्री थई. " पछी कुमार- आनंदथी अभिनंदन कयु. ३९. पछी आसपासना चारे तरफथी आवेला सामन्त राजा तेमनी सेवा करवा लाग्या, कारण के नाटकना सभ्यो अर्थात् दर्शकोने नाटकमां कोईनी संपत्तिनो नाश थवो अने उदय थवो बराबर छ, अर्थात् आधीनस्थ सामन्तगण जे राजा थाय छे, तेनी सेवा करवा मंडे छे. एकनो उदय अने बीजानो अस्त तेमने समान छे. ४०. पछी जीवंधर स्वामी राजपुरीना जिनमंदिरमां राज्याभिषेकथी अभिषिक्त थवाने गया, कारण के दिव्य स्वरुप
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
जिन भगवानना समीप होवाथी सिद्धिओ अवश्य थाय छे. ४१. एटलामां सुदर्शन यक्ष पण प्रसन्नताथी त्यां आव्या, कारण के सज्जन पुरुष फणस कठहर वृक्षोनी माफक फळज आपे छे. ४२. त्यारे ते यक्षे गोविन्दराज साथे बहु गौरवथी कौरव महाराज अर्थात् जीवंधर कुमारनो विधिपूर्वक राज्याभिषेक कर्यो. ४३. पछी यक्षेन्द्र राजेन्द्रने पुछीने पोताने स्थाने चाल्यो गयो, कारण के सूर्य कमळने खीलावे छे, परंतु तेथी आसक्तिनी अपेक्षा राखतो नथी; अर्थात् खीलाव्या पछी तेथी कई संबंध राखतो नथी पण अस्ताचल तरफ चाल्यो जाय छे. ४४. पछी बधा लोकने प्रसन्न करनार ते राजसिंह अर्थात् महाराजा जीवंधर जिनमंदिरथी पोताना महेलमां आव्या अने त्यां तेमणे पोताना वंश परंपरागत सिंहासनने अलंकृत कर्यु. ४५.
बधा लोक बहु नवाइ पामीने तेमना वृतान्तने विचारवा लाग्या, कारण के जे संपत्ति के विपत्ति समजमां आवी शकती नथी-अचानक आवी जाय छे, ते विशेष करीने आश्चर्यकारक होय छे. ४६. " अहो ! कर्मोनी विचित्रताने जुओ, के क्यां ते पूज्य राजपुत्रपणुं, क्यां ते स्मशान भूमिमां जन्म लेवो अने क्यां आ फरीथी राज्य, मळवू! ४७. पुण्य अने पाप सिवाय बीजी कोई पण यस्तु मुख दुःखनुं कारण नथी, कारण के ज्यारे पापनो उदय थाय छे, त्यारे . करोळीआने तेनी जाळ पण कुवामां पडवाथी बचाबी शकती नथी. ४८. जेने मारवा चाहता हता, तेणे पोताने
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०३
मारनारनेज मारीने राज्य लई लीधुं ! कारण के जे कंई थनार होय छे, ते अवश्य थई रहे छे. भावी कोईथी टळी शकतुं नथी. ४९. पोताने जीववानी ईच्छाना विस्तारथी जेणे राजाने ठग्यो हतो - मार्यो हतो, ते काष्ठांगार पण मार्यो गयो ! सत्य छे के, बीजानो नाश करनार पोतानोज नाश करनार थाय छे. ५०. जुओ ! ते यक्ष तो फक्त क्षणवारना उपकारथी प्राणानी रक्षा करनार थई गयो, अर्थात् तेणे जीवंधरनो जीव बचावी दीघो अने काष्ठांगार जेने सत्यंधरे बधुं राज्य सोंपी दधुं हतुं, ते कृतघ्न थई गयो - तेणे पोताना उपकारकनोज जीव लई लीधो ! तेथी कहे छे के, स्वभाव बदलातो नथी. ५१. अपकार अने उपकार करवाथी सज्जन अने दुर्जनमां कोई प्रकार अंतर पडतुं नथी; अर्थात् सज्जनो साथे अपकार करवामां अवे, तोपण ते सज्जन रहे छे अने दुर्जनो साथे उपकार करवामां आवे, तोपण ते दुर्जन रहे छे. जेम सोनुं बाळवाथी पण चळके छे, परंतु कोयला कोई पण प्रकारथी (धोवाथी पण ) शुद्ध, थता नथी. ५२. खाली अने भरी दशामां अर्थात् धनवान अने निर्धननी अवस्थामां पण सज्जन अने दुर्जनमां भेद पडतो नथी. जुओ, सुकाई गएली नदी पण खोदवाथी मी पाणी नीकळे छे, परंतु भरेला समुद्री मीटुं पाणी मळतुं नथी. " ५३. जीवंधरना सुराज्यमां ते देशमां ए प्यारी कवत प्रसिद्ध थई गई के, ""सुंदर राजावाळी उत्तम पृथ्वी सुखनो अनुभव
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
केम करे नहि ? " अर्थात् जे देशमा उत्तम राजा होय छ, त्यांनी प्रजा अवश्य सुखीज थाय छे, ५४. महाराजे काष्ठांगारना कुटुंबने पोताना स्थानमा सुखथी रहेवानी आज्ञा आपी दीधी, तेमने कोई प्रकार- कष्ट आप्यु नहि, कारण के सज्जनोनो क्रोध अयोग्योपर थतो नथी. ५५. पछी पोताना भाई नन्दाढयने युवराजना पदपर, पिता गंधोत्कटने वृद्ध क्षत्रीओना योग्य पदपर, अने बन्ने माताओने ( विज्या अने सुनन्दाने ) लोकपूज्य पदपर स्थापन करी. ५६. पृथ्वीने बार वर्षना करथी ( टेक्षथी ) रहित करी दीधी अर्थात् जमीनन महेसूल बार वर्ष माटे बीलकुल माफ करी दीधुं, कारण के जे पाणीने भेसो डोळी नांखे छे, ते तरतज ठरीने निर्मळ थतुं नथी. भाव ए छे के, काष्ठांगारे अनुचित असह्य कर वसूल करीने प्रजाने एटली निर्धन बनावी हती के, आ रीते बार वर्ष माटे कर छोडी दीधा विना प्रजानी आर्थिक अवस्था तत्काळज सारी थवानी नहोती. ५७. त्यार पछी जीवंधर महाराजे पद्मास्य आदि मित्रोने पण यथायोग्य पदवी आपी. कारण के लोक साधारण परिज्ञानथी रंजायमान थता नथी; अर्थात् कोण कया पदने योग्य छे, तेनुं पुरुं ज्ञान थवाथी अने तेने अनुसार लोकोने योग्य पद आपवाथी ते प्रसन्न रहे छे. ५८.
ते वखते महाराजनी आज्ञाथी तेमनी पद्मा आदि बधी । राणीओ आवी गई अने ते स्वामाने जोईने क्षणवारमा संपूर्ण मानसिक व्यथाओथी रहित थई मई. तेमना मननी बधी
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
पीडाओ जती रही. ५९. कारण के विरुद्ध पदार्थ जोवाथी चिरस्थायी पदार्थ पण नाश पामे छ; अर्थात् सुख मळवाथी पहेलांनु बधुं दुःख जतुं रहे छे. शुं दीवो पासे आववाथी पण गुफा, मुख अंधकारयुक्त रही शके छ ? नहि. ६०.
पछी महाराजा जीवंधरे गोविन्दराजे आपेली नवुतिनी पुत्री लक्ष्मणा साथे लग्न कर्यु. विवाहमां खंडीआ राजाओए बहु भारे उत्सव मान्यो. ६१.
आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभसिंहसूारिए रचेल क्षत्रचूडामाणि ग्रन्थमां " लक्ष्मणालम्भ" नामे दशमुं प्रकरण पूर्ण थयुं.
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
०
प्रकरण ११ मुं.
++
"
त्यार पछी बुद्धिमान महाराज राज्यलक्ष्मी अने लक्ष्मणाने प्राप्त करीने बहुज प्रसन्न थया, कारण के लांबा वखतथी इच्छेली वस्तु भळवाथी बहु भारे तृप्ति अथवा प्रसन्नता थाय छे. १. राज्य मळवाथी राजाना बधा गुण शोभायमान थवा लाग्या. सत्य छे के हारमां जो का परोववामां आवे तो ते खराब जणाय छे. परंतु जो मणि परोववामां आवे तो बहुज शोभायमान थाय छे- तेनो गुण वधी जाय छे. तात्पर्य ए के, जीवंधर जो के एवाज गुणवान हता, परंतु राज्य प्राप्त करवाथी तेथी पण विशेष गुणोथी शोभायमान थवा लाग्या. २. संपत्ति अने विपत्तिमां बुद्धिमानोनी एकज वृत्ति रहे छे. सत्य छे के, नदीना पाणीना आववाथी समुद्रमां कोई प्रकारनो विकार उप्तन्न थतो नथी, ते ज्यां के त्यां रहे छे. अभिप्राय ए छे के, राज्य वैभव मळवाथी पण जीवंधर कुमारनी वृत्तिमां कं विकार थयो नहि. ३.
हवे जीवंधर महाराजां बधां सुख दुःख प्रजाने आधीन थई गया; अर्थात् प्रजानां सुख दुःखथी ते पोताने सुखी दुखी समजवा लाग्या, कारण के जन्म आप्या सिवाय बीजा बधा
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
;
१०७ विषयोमां राजाज प्रजानां माबाप छे. ४. जे रीते दान आप सुखदायक होय छे, तेज रीते ते राजाने कर (महसूल) आपवो पण प्रजाने प्रीतिकर अर्थात् आनन्ददायक थयो. सत्य छे के, शुं धान्यना खेतरमां बी वाववाथी शुद्ध संतुष्ठ थता नथी ? अवश्य थाय छे. भाव एछे के, ते योग्य राजाने कर आपवामां प्रजाने आनन्दज थतो हतो, जेवोके, शुद्रने योग्य खेतरमां बी वाववाथी थाय छे तेम. ५. जो के राजाने मित्र, शत्रु अने उदासीन (मीत्र शत्रु प्रत्ये समभाव राखनार) राजाओनुं साक्षात् ज्ञान होतुं नथी (तेमने ते विषयनुं ज्ञान गुप्त अनुचरो द्वाराज थाय छे ) तथापि गुप्त अनुचरो द्वारा बधो वृत्तान्त जाणीने ते तेनो उपाय तेज बखते करी दे छे. ६. ते नियमपूर्वक काम करनार थया अने रात दिवसना विभागोमां नक्की करेलां कामोने योग्य समये करवा लाग्या, कारण के जे काम वखतसर करवामां आवतुं नथी ते वखत थई गया पछी करवामां आवे छे, तो ते सिद्ध, धतुं नथी. ७. जेम तपमां योग्य क्षेमनी अर्थात् मन वचन कायारुप योगोने रोकवानी आवश्यकता छे, तेज रीते राज्यमां योगक्षेमनी अर्थात् नहि पामेलाने पामवानी अने पामेलानी रक्षा करवानी आवश्यकता छे. तेथी राज्य अने तप बन्ने सरखांज छे. ८. ज्यारे ते महाराज सावधान थईने बी पृथ्वीनी एक नगरीना समान मोटी सुविद्याथी रक्षा करवा लाग्या, ते वखते त्यांनी पृथ्वी निष्कंटक शासन थवाथी पोताना रत्नागर्भा नामनुं सार्थक करवा लागी. ९.
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
ए रीते ज्यारे ते महाप्रतापी राजाओना राजा जीपंधर विरजमान थया हता-राज्य करता हता, त्यारे तेमनी माता विज्या संसारथी विरक्त थई गयां; अर्थात् तेमने वैराग्य उप्तन्न थई गयो. १०. (ते विचारवा लाग्या के,)-...." में आ श्रेष्ठ पुत्रने तेना पितानी पदवीए जोई लीधो; अर्थात् तेने राजाना पदपर प्रतिष्ठित जोई लीधो. अने पहेलां जेमणे उपकार कर्यो हतो, ते पण यथायोग्य कृतकृत्य करवामां आव्या अर्थात् ते बधानो प्रत्युपकार करवामां आव्यो. ११. अने पुण्य पापनुं फळ शास्त्रा सिवाय में पोते पोतानामांज जोई लीधुं. पछी कर्मोनुं परिपक्वपणुं अन्यत्र जोवानुं शुं प्रयोजन छे ? १२. तेथी हवे हुं पुत्रनो मोह छोडी दईने जेवू जोईए तेवू तप करीश, कारण के सर्व कई जाणीने पण संसाररुपी कुंडमां पडी रहेवू नीच मनुष्यनुं काम छे. १३.
विजयाना आ रीते विरक्त थई जवाथी सुनन्दाने पण वैराग्य थई गयो, कारण के पुण्य अने पापनो उदय थवामां कोईने कोई बाह्य कारण अवश्य होय छे; अर्थात् विज्याना वैराग्यनुं कारण मळवाथी तेने पण वैराग्य थई गयो. १४. अने पछी ते बन्ने शोकयुक्त राजा पासेथी कोईने कोई रीते सम्मति लईने त्यांथी चाली गई अने बन्नेए विधिपूर्वक जीनदीक्षा लई लीधी. १५. ते वखते बधी आर्जीकाओमां श्रेष्ठ जे पद्मा नामनी आर्जीका हती, ते आ बन्ने राजमाताओने आर्जीकार्नु पद
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
""
१०९ आपीने जीवंधर महाराजने प्रतिबोधित करवा लागी; १६ – बुद्धिमानोने ए उचित नथी के, कोईने संन्यासिनी थतां रोके. आकाशथी जो रत्नोनी वर्षा थती होय, तो ते रोकाती नथी. १७. जे बुद्धिमान छे, ते अवस्थाना अंतमां पण अर्थात् वृद्ध थवा छतां पण दीक्षा लेवानी अपेक्षा करे छे - दीक्षा लेवानुं इच्छे छे; कारण के पंडितजन रत्नोना हारने भस्मने मांटे बाळता नथी; अर्थात् आ मनुष्य जन्मरुपी रत्नाना हारने संसार सुखरुप निस्सार भस्म माटे नष्ट करता नथी, तपज करे छे. १८. जीवंधर महाराजने पद्मा आर्जीकाए ज्यारे आ रीते प्रबोधित करी दीधा - समजावी दीधा, त्यारे ते नमस्कार करीने पोताना मातानी पासेथी नम्रतापूर्वक पाछा आव्या, अने पोताना राजमहलमां चाल्या गया. १९, बुद्धिमाने नां हृदय लांबा वखत सुधी विकार युक्त रहेतां नथी. मलिनता तो रत्नमां पण लागी जाय छे, परंतु तेनुं साफ थवं कंई कठण होतुं नथी. भाव ए छे के,- मातानी दीक्षाथी राजाना हृदयमां ने शोकनो विकार थयो हतो, ते तरतज दूर थई गयो - बहु वखत सुधी रह्यो नहि, जेम रत्नमां लागेलो डाघ सहजज साफ थई जाय छे तेम. २०.
त्यार पछी क्षत्रविद्याने जाणनार जीवंधर महाराजे देवताओ सरखां सुखोथी पृथ्वीने भोगवीने त्रीस वर्ष एक क्षण वारना समान व्यतीत करी दीधां; अर्थात् तेमणे त्रीस वर्ष राज्य
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
११०
कर्यु. अने ते समय सर्व प्रकारनां सुखने लीधे वातनी वातमां वाती गयो. २१. ___ एक वखते तेमणे वसन्तरुतुमा पोतानी आठे स्त्रीओ साथे मोटा कौतकथी जळक्रीडानो महान् उत्सव कर्यो. २२. ते उत्सवमा जळाडाना श्रमथी थाकीने महाराज एक लतामंडपयुक्त ( वेलाओना मांडवावाळा ) उद्यानमां वांदरा साथे क्रीडा करवा लाग्या अने तेमनी पासे सारी सारी चेष्टाओ कराववा लाग्या. २३. ते वखते कोई एक वांदरे कोई बीजी वांदरी साथे उपभोग कर्यो, तेथी तेनी प्यारी वांदरी क्रोध करवा लागी. वांदराए पोतानी वांदरीने बहुज उपाय करीने मनावा धार्यु, परंतु ते तेने प्रसन्न करी शक्यो नहि. २४. पछी ते वांदरो कपटथा मरण तुल्य थईने जमीनपर पडी रह्यो. ए जोईने ते वांदरी डरी गई अने वांदरानी पासे जईने तेणे तेनी ते मरणतुल्य अवस्थाने दूर करी दीधी. २५. त्यारे वांदराए पण हर्षित थईने पोतानी वांदरीने एक फणस फळ भेट तरीके आप्युं, परंतु एक वनपाले वांदरीने मारीने ते फळ छीनवी लीधुं. २६.
__ आ बधी घटना जोईने विशेष वातोना जाणनार विद्वान राजाने ते वखते वैराग्य थई गयो. अने तेओ आ रीते १२ अनुप्रेक्षाओतुं चितवन करवा लाग्या;-२७.
१ अनित्य भावना. __ आ वनपाळ मारा समान छे, वांदरो काष्ठांगार समान छे, अने फणस फळ राज्य समान छे, तेथी आ फळ मारे
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
त्यागवांज योग्य छे. २८. प्राणीओनी ए प्रथा छे के, तेमणे जन्म लधिो, पुष्ट थयो, अने पछी नाश थयो. स्थिर कोई रघु नथी, तथा हे आत्मा! स्थिरस्थान अर्थात् मोक्ष तरफ ध्यान आप अथवा मोक्ष प्राप्त कर. २९. आ जीवन क्षण मात्र पण स्थायी जणातुं नथी, तोपण बहु खेदनी वात छे के, प्राणीओनी ईच्छाओ करोडोथी पण अधिक छे. ३०. विषयभोग लांबा वखत सुधो रहीने पण आखरे नाश पामे छे. ” ज्यारे एवो निश्चय छे, त्यारे तेने पोतेज छोडी देवो जोईए. कारण के अमे नहि छोडीए, तोपण ते नाश थवाथी बचशे नहि. जो अमे लेने पोते छोडी दईशु, तो अमारी मुक्ति थई जशे, नहि तो जन्म मरणरुष संसारनी - वृद्धि थशे. ३१. जो नाशवान् शरीरर्थी अविनाशी सुख अथवा मोक्ष प्राप्त थई शके, तो हे आत्मा ! व्यर्थ समय केम खुवे छे ? तारे समयने सफळ करवो जोईए. अर्थात् मुक्ति प्राप्त करवानो यत्न करवो जोईए. ३२.
२. अशरण भावना. हे जीव ! जेम नावना डूबवाथी समुद्रमां पक्षीने कोई पण शरण होतुं नथी, तेज रीते मृत्यु समये तारं कोईपण शरण थई शकतुं नथी. स्वास्थ्य रहेतांज अर्थात् सारी भलाइमांज हजारो शरण सहायक जणाय छे. ३३. जो आ जीवनी रक्षा .माटे एना प्यारा बंधु बहुज आयुध लइने चारे तरफ घेराएला होय, तोपण ते जोत जोतामांज नाश पामे छे. ३४. हे आत्मा! मंत्रयंत्रादिक पण तारा साचा स्वतंत्र रक्षक नथी. पुण्य होवा
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
थीज ते बधा सहाय करे छे अने जो पुण्यनो उदय न होय, तो तेनु होवू पण निष्फळ छे. ३५.
३ संसार भावना. हे आत्मा ! तुं पोताना कर्मने वश थईने नटनी माफक नाना प्रकारना वेष धारण करीने भ्रमण कर्या करे छे. पापथी तिर्यंच अने नरकगतिमा, पुण्यथी स्वर्गलोकमां अने पुण्य पापथी मनुष्यगतिमां जन्म धारण करे छे. ३६. हे जीव बहु खेदनी वात छे के, तुं लोढाना पांजरामां पुरेला सिंहना माफक एक क्षण मात्र पण जे सहन थतुं नथी एवा दुस्सह देहमां केवी रीते रहे छे ? ३७. ___आ पुद्गलोमां कोई पण परमाणुं एवं नथी, के जेने तें कोईवार भोगव्यु होय नहि. पछी शुं ए पुद्गळोना अंश के जे पीधेल समुद्रना बिंदुनी माफक छे, तेथी तारी तृप्ति थई शके छ ? कदापि नहि. ३८. जे वस्तु भोगवीने छोडी दीधी छे, ते उच्छिष्टने तुं फरी भोगववा इच्छे छे. हवे तुं भोगव्या विनानी अने सर्वोत्तम मुक्तिना आनन्दने भोगववानी इच्छा केम करतो नथी ? संसारमा रागद्वेषथी कर्म बंधाय छ, कर्मथी बीजा शरीरमां जवानुं थाय छे, शरीरथी इंद्रियो उत्पन्न थाय छे, इंद्रियोद्वारा रागद्वेषादि थाय छे अने रागद्वेषादिथी फरी आज रीते संसार चक्रमा भ्रमण करवू पडे छे. ४०, आ कार्यकारणरुप प्रबन्ध अनादिथी चाली रह्यो छे. तेमां नित्य दुःखज मळे छे, तेथी हे आत्मा ! तुं तेने हमणांज छोडी दे. ४१.
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
११३
४ एकत्व भावना.
हे आत्मा ! जो के तुं एक शरीरने छोडीने बीजुं धारण करे छे अने पोताना कर्मने अनुसार भ्रमण करतो रहे छे; परंतु जन्म अने मरण वखते तुं सदा एकलोज रहे छे. ४२.
बंधुजन फक्त स्मशान पर्यन्त साथे जाय छे, उपार्जीत करेलं धन घरमा रहे छे, अने शरीर भस्म थई जाय छे. केवळ एक धर्म तारी साथ रहेशेः अर्थात् धर्म तारो साथ छोडशे नहि. बीजा सर्व छोडी देशे . ४३. पुत्र, मित्र, स्त्री तथा बीजा लोक जे साथ वचमांज तारे सोबत थई गई छे, ते जो तारी साथै जता नथी, तो तेमां कंई आश्चर्य नथी. आश्चर्य तो ए छे के, तारुं शरीर पण जे आ पर्यायना प्रारंभथीज साथे छे, ते तारी साथे जशे नहि. ४४. तुंज कर्मोनो कर्त्ता अने फळनो भोक्ता छे अने तुंज मुक्तिनो प्राप्त करनार छे, पछी हे तात ! तुं पोताने आधीन मुक्तिने लेवामां इच्छा केम करतो नथी : ४५. हे आत्मा ! कर्मोद्वाराज अज्ञानी थइने तुं स्वाधीन सुख अर्थात् मोक्षसुखने पामवाने तेना उपायोमा अभिलाषा करतो नथी; अर्थात् मोक्ष प्राप्त करवाना जे जे उपाय छे, ते ते करतो नथी; अने उलटो दुःखनां कारमां लागी रह्यो छ ४६.
अन्यत्व भावना.
हे आत्मा ! हुं देहरूप छु, ए वात तुं कदापि पोताना चित्तमां लावीश नाहे. कर्म करवाथीज तारो शरीर साथ संबंध छे. तुं तो म्यानमा रहेनार तलवार समान छे. ४७, हे आत्मा !
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
११४
अनित्य, अपवित्र अने चेतनारहित होवाथी आ शरीर ताराथी दु छे अने सचेतन, अविनाशी, तथा पवित्र होवाने लधि तुं आ शररिथी जुदो छे. ४८. जे बुद्धि आपोआपज अशुभ कार्यमा लागे छे अने यत्न करवाथी पण शुभ काममां प्रवृत्त थती नथी, तेनो हेतु पूर्व जन्मनां दुष्कर्म छे, अने आ हेतुथी आत्मा पण तेवां कर्म करवा मांडे छे. ४९.
६ अशुचित्व भावना.
जेना संबंधथी पवित्र वस्तुओ पण अपवित्र थई जाय छे अने जे रुधिर वीर्यादि मळोथी उत्पन्न थएल छे, शुं ते शरीर अपवित्र नथी ? अवश्य छे. १०. कर्मरुपी कारीगरनी खूबीथी आ शरीर स्पष्ट देखातुं नथी, तेथी रमणीय भासे छे, परंतु विचार करवाथी तेमां मळ, मांस, हाडकां अने मज्जा सिवाय बीजुं शुं छे ! अर्थात् शरीर एज अपवित्र पदार्थोनो पिंड छे. ५१. हे आत्मा ! बीजुं तो शुं, जो दैवयोगथी आ शरीरनुं अन्तःस्वरुप अर्थात् अंदरना भाग शरीरनी बहार नकळी आवे, तो तेनो अनुभव न करवानी इच्छा तो दूरज रही, परंतु कोई तेने जोशे पण नहि. १२. आ रीते हे आत्मा ! नाशने प्राप्त करनार, परंतु अविनाशी मोक्षना साधनभूत आ मांसपिंडमय शररिने आथी जे मोक्षरुप फळ मळे छे, तेने तेनो नाश थवा पहेलांज प्राप्त करीने छोडी दे; अर्थात् शरीरथी तपस्यादिक करीने मोक्ष प्राप्त कर अने पछी तेने छोड. ५३. हे आत्मा ! तुं आ शरीरनो सारांश लई ले, छ
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
११५ आ शरीरनो नाश थवा छतां पण बुद्धिमान पुरुष शोक करता नथी. जेमके शेरडीनो रस लई लोधा पछी जो शेरडीने बाळी नांखवामां आवे तो कई शोक थतो नथी तेम ५४.
"
७ आश्रव भावना.
हे आत्मा ! कर्मरुपी पुद्गल जे मोटा दुःखथी दूर होय छे, निरन्तर आगमन कर्या करे छे, अने ते कर्मथी भरेल थइने तुं पाणीथी भरेला नावनी माफक नीचेज नीचे चाल्यो जाय छे अर्थात् अधोगतिए पहोंचे छे. ५५. हे आत्मा ! आ आम्रवनुं कारण ताराज योग अने कषाय छे, जे सदा उत्पन्न थया करे छे. आत्माना प्रदेशोमां चंचळता होवाने योग अने शुभ अशुभ रुप परिणामोने कषाय कहे छे. ५६. हे आत्मा ! आ कर्मनो आ आस्रव छे, अने आ कर्मनो आ आस्रव छे, ए रीते सारी रीत जाणीने जे जे कर्मोंना जे जे आस्रव छे, तेना त्याग करीने कर्म अने तेना कारणरूप आस्रव छोडीने मोक्षगामी थइ जा. ५७. ८ संवर भावना.
धारण करतो
हे आत्मा ! तुं अनुप्रेक्षाओनुं ( भावनाओनुं ) चिंतवन करतो करतो, समिति अने गुप्तिओनुं पालन करतो करतो, अने तप, संयम तथा धर्मने करतो, नाना प्रकारना परिषहोने हे आत्मा ! ज्यारे तुं एवो थई जाय, त्यारे कर्मोंनो आस्रव रोकाई जवाथी आ संसाररूपी समुद्रमां ते नावना जेवो थई जा, के जेना पाणी आववाना छेद बंध थई जाय छे, अने तेथी जे
जीत. ५८.
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
११६ विघ्न वगर अभीष्ट स्थानपर पहोंची जाय छे. ५९. विकथादि पंदर प्रमादोने छोडीने, अने आत्मभावनामां लवलीन थईने बाह्य परिग्रहथी ममत्व छोडी दे. पछी गुप्ति वगेरे तो तारा हाथ परज राखी छे; अर्थात् ते तो सहजज पाळी शकाय छे. ६०. आ रीते सदा आत्माधीन थईने सुखथी प्राप्त थनार मुक्तिमार्गमां पोतानी बुद्धि लगाड. दुःखदायी बाह्य मार्गमां बुद्धि लगाववाथी शो लाभ थशे : ६१. हे आत्मा ! बाह्य पदार्थो साथै निस्सार संबंध जोडीने तुं मोह करे छे; तेथी तारा हृदयमां प्रत्यक्षज व्यथा उत्पन्न थाय छे, जे साक्षात् नरके लई जनार छे. ६२.
९. निर्जरानुप्रेक्षा.
त्रणे रत्नोनी अर्थात् सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन अने सम्यकुचारित्रनी वृद्धिथी तारां पूर्व संचित कर्मोंनो पण नाश थई शके छे, कारण के कोई कारणथी उद्वीप्त थलो अनि शुं दाहा वस्तुमां कंई बाकी राखे छे : नहि. ६३. हे आत्मा ! तुं पूर्व कर्मोनो नाश करीने अने आगळ आवनार कर्मोने रोकीने तेरमा गुणस्थानवर्ती केवळी थई जा. ज्यारे तळावनुं बधुं पाणी नीकळी जाय छे, अने नवुं पाणी आववा पामतुं नथी, त्यारे मां पाणी क्यां रही शके छे ! ६४. हे आत्मा ! पछी तुं ए त्रणे रत्नोने सुगमताथी पूर्ण करी शके छे, कारण के मोहना क्षोभथी रहित थई जवाथी परिणाम निर्मळ थई जाय छे. भावार्थ ए छे के, तेरमा गुणस्थानथी चौदमा गुणस्थानमां जवं
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
बहुज सहज छे. ६५. परिणामनी शुद्धि माटे बाह्य तप कर, जोईए. कारण के अग्नि वगेरेनो नाश थवाथी चोखा पकावी (रांधी) शकाता नथी. ६६. ज्यारे तुं बाह्य पदार्थोमां ईच्छा करीश नहि, त्यारेज परिणाम विशुद्धि थशे अने ईच्छा न करवामांज सुख छे, तेथी तुं बाह्य पदार्थोमां केम वृथा मोहित थाय छ ? ६७. हे आत्मा ! मोक्ष सुखनी वात तो जवा दे, हजु तुं पोतानी इंद्रियोने टुंक वशमां राखीने पोते जातेज पोताना स्वरुपने पोतामांज विचारीने तेना सुखनोज अनुभव कर. ६८. शान्त अंतःकरणवाळा पुरुषने पोताना अनुभवमां आवनारी जे प्रीति उत्पन्न थाय छे, तेज प्रीति आ वातने माटे प्रमाण छे के, आत्माथी उत्पन्न थएल कोई अनन्त सुख पण होय छे. ६९.
१०. लोकभावना. आ लोक तण पवनोथी घेराएला, चरण फेलाएला अने कमर पर हाथ राखेला पुरुष समान छे. तेना उध्वं, मध्य अने अधो ए त्रण भाग छे; अर्थात् उर्वलोक, मध्यलोक अने अधोलोक. ७०. हे आत्मा ! आ असंख्यात प्रदेशवाळा लोकमां जे जन्म अने मरणतुं स्थान छे, तेमां एवो एक पण प्रदेश नथी, के ज्यां तुं अनन्तवार जन्म्यो अने मर्यो हशे नहि. ७१. हे आत्मा ! अज्ञान अथवा मिथ्याज्ञानमा होवाथी तुं पहेलां प्रमाणे फरी संसारमा भ्रमण करशे, कारणके कारण- प्रबळ थवाथी कार्यनो नाश थतो नथी. ७२. हे आत्मा ! मूढ माणसोने भोगववा योग्य सुखनो त्याग करीने तप करवामां यत्न कर, कारणके प्रकाश थवाथी चिरस्थायी अंधकार पण नाश पामे छे.७३.
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
११ बोधिदुर्लभ भावना. आ कर्मभूमपां जन्म लेवो, मनुष्य पर्याय- पामवं, भव्यता अर्थात् त्रणे रत्नोनो प्रकाश करवानी आवश्यक्ता, स्वंगवंश्यता अर्थात् अवयवोनुं सुंदर सुदृढ होवू अने सारा कुळमां उत्पत्ति, हे आत्मा ! आ बधी वातोनुं मळवू एक एकथी विशेष कठीण छे अने सर्वनुं एकदम मळ तो बहुज कठण छे. तेनी दुर्लभताना विषयमां तो कहेवानुज शुं छे ? ७४. परंतु हे आत्मा ! जो तारी धर्ममां बुद्धि न होय, तो ए बधी वातोनुं एकत्र थवू पण निष्फळ छे. जो अन्नना छोडमां दाणा न होय, तो खेतर वगेरे सामग्रीओना उत्तम होवाथीज शुं ? कई पण नहि. ७५. तेथी हे मूढ ! आ दुर्लभ शरीरने धर्ममां लगाव. जे मनुष्य राखने माटे रत्नने बाळी नाखे छे, तेथी अधिक मूर्ख बीजो कोण हशे ? अभिप्राय ए छे के, धर्म कर्या विना विषयादि सेवनमां शरीरने लगाववु राखने माटे रत्नने बाळवा जेवू छे. ७६. धर्म अने पापथी कुतगे देव थई जाय छे, अने देव कुतरो थई जाय छ, तेथी तुं दुर्लभ धर्मने धारण कर, कारण के धर्मज संसारमा मनोरथोने पूर्ण करनार छे. ७७. हे आत्मा ! तने भव्यता, अन्तरगदृष्टि, जीव मात्र पर दया, अने अंतमां अधःकरण अपूर्वकरण तथा अनिवृत्तिकरणथी परिणामोनी निर्मळता ए बधानी प्राप्ति करीने तुं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्रनी वृद्धियुक्त था. ७८.
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
११९
१२ धर्म भावना. हे आत्मा ! धर्मनु महात्म्य जो ! धर्म कार्य करनार कदी शोक करतो नथी. बधा प्राणी धार्मिक पुरुषमा विश्वास फरे छे अने आश्चर्यनी वात ए छ के, धर्मात्मा लोक बन्ने लोकमां सुखी रहे छे. ७९. हे आत्मा ! ज्यां सुधी तें मोक्षप्राप्ति करी नथी, त्यां सुधी तारी आ हितकारी अने अतिशय निर्मळ जैन धर्ममां मोक्ष आपनारी अत्यन्त स्थिर साचे रहो. ८०.
आ रीते बार भावनाओना चिंतवनथी राजाने स्थिर अथवा निश्चळ वैराग्य थई गयो. थवोज जोईए, कारण के सज्जनोनी ए प्रकृतिज छे के, तेमना विचारोमा स्थिरता होय छे. अने पछी आ विषयमां सहायता मळवाथी तो कहेज ? अर्थात् पछी तो बीजी पण स्थिरता आवी जाय छे. ८१.
विरक्त थईने महाराजा जीवंधर पोताना राज्यने तथा बीजा पदार्थोने तृण समान पण गण्या नहि. सत्य छ के जो हाथमां अमृत आवा जाय, तो पछी कडवी वस्तुने कोण पीए ? ८२. आखरे जैन शास्त्रोना जाणनार ते जीवंधर स्वामीए त्यांथी चालीने जिनेन्द्र भगवाननी पूजा करी अने एक चारण ऋद्धिना धारण करनार योगीन्द्र पासे धर्म श्रवण कर्यो. ८३. अने तेना श्रवण करवाथी ते अतिशय निर्मळ महाराज धर्म विद्याना जाणनार थया, कारण के रत्नोना संस्कार करवामां जे मणिकार चतुर होय छे, तेने पाणीदार बनाववानो अने चळकाववानो प्रयत्न करवाथी रत्न बहुज उज्वळ थई जाय छे.८४.
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
१९०
त्यार पछी राजा पोतानो पूर्व जन्मनो वृतान्त जाणवानी ईच्छाथी ते चारण मुनिने प्रश्न कर्यो. त्यारे तेमणे महाराजना पूर्वजन्मनी आ रीते कथा कही ; - ८५. " हे राजा ! तुं पहे लां धातकीखंडना भूमितिलक नगरमां राजा पचनपेगनो यशोधर नामे पुत्र हतो. ८ ६. हे राजश्रेष्ठ ! कोई वखते तुं राजहंसना बच्चाने तेना माळामांथी खेलवा माटे लई आव्यो अने तेनुं तें निर्दोषताथी पालणपोषण कर्यु. ८७. ए बात तारा धर्मज्ञ पिताए कशेथी सांभळी लीधी, तेथो तेणे ते वखते तने धर्मनो उपदेश आप्यो; अर्थात् समजाव्यो के, आ रीते पक्षीओने बंधनमां राखवा ए सारुं नथी, तेमां दोष लागे छे. कारण के आ बचाने एकतो बंधननुं दुःख थाय छे अने बीजुं तेनां मात्राप तेना वियोगथी अतिशय दुःखी थशे. तेथी आ उपदेश सांभळवाथी तुं अतिशय धर्मात्मा बनी गयो. ८८. ते वखते तने अत्यन्त वैराग्यई गयो. पिता पण रोक्यो, परंतु तें मान्युं नहि अने पोतानी स्त्रीओ सुद्धां तें जिनदीक्षा लई लीधी. तुं दिगम्बर मुनि थई गयो. ८९. हे भव्योत्तम ! पछी घोर तपश्चरण करीने तेना प्रभावथी तुं पोतानी आठे स्त्रीओ साथे देव थयोः अर्थात् तुं देव थयो अने तारी आठे स्त्रीओ देवांगनाओ थई पछी स्वर्ग लोकथी चवीने तुं पोतानी स्त्रीओ सुद्धां अहीं राजा थयो. ९०. पूर्वजन्ममां तें हंसना बच्चाने तेना माबापथी तथा तेना स्थानथी जुदुं कर्यु हतुं अने पोताने घेर लावांने पांजरामां पूर्वं हतुं, तेथी तन जुदुं करवाथी ने वियोग अने तेने बांधवाथी तने बंधन
·
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
थयु. ९१. योगीन्द्रनु आ वाक्य सांभळीने जीवंधर महाराज राज्यथी एवा डर्या के जेमके साप वीजळीना खरवाथी डरे छे अने पछी नमस्कार करीने पोताना नगरमां आव्या. ९२.
त्यार पछी तेमना नन्दाव्य आदि नाना भाईओए अने तेमनी आठे स्त्रीओए पण सद्धर्मरुपी अमृतनुं पान क्युं अने तेथी ते सर्व विषयभोगोना सुखने विष तुल्य समझ्या. ९३. त्यारे त्यां विद्वान जीवंधर स्वामी गंधर्वदत्ताना पुत्र सत्यंधरनो राज्याभिषेक करीने अर्थात् तेने गादीपर बेसाडीने पोते पोतानी आठे स्त्रीओ साथे भगवान, समोसरण प्राप्त कर्यु. ९४.
__समवसरण सभामां आवीने पूज्य राजाए श्रीमहावीर तीर्थकरनी पूजा करी अने वारंवार स्तुति करी ९५.-हे भगवान ! हुं संसारना जन्ममरणना रोगथी सदा पीडित अने भयभीत रहुं छ, तेथी आप जेवा अकारण वैद्यना उपस्थित होवा छतां पण शु ते तीव्र पडिा सहेवा योग्य छ ? अर्थात् आप एवो उपाय करो के, जेथी आ पीडा सहेवी पडे नहि.९६. आप बधाना हितकारी छो, सर्व कई जाणो छो, प्रारब्धना बधां कर्मोनो नाश करी शको छो, अने हुं एक भव्य छु. पछी मारो आ जन्ममरणरुप भवरोग केम दूर थतो नथी ? ९७. हे मोहरहित भगवान ! हुं आ देहरुपी पुराणा अने मोटा वनमा मोहरुपी दावानळथी बळी रह्यो छु. अने तेथी निरन्तर मोहित थई रह्यो छु, मारी रक्षा करो! रक्षा करो! ९८.हे वतिराग! बधी विपत्तिओनुं फळ आपनार संसाररुपी विषवृक्षना मारा रागरुपी अंकुरोने जडथी उखेडाने फेंकी दो ! ९९. हे रक्षा करनार
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
'भगवान ! संसार सागरना मध्यमां डूबतां में रत्नत्रयरुपी नौका बहु कठीणाईथी प्राप्त करी छे, तेथी ए नौका मने मोक्षपार पहोंचाडनारी छे. १००. . आ रीते त्रण जगतना गुरु श्रीमहावीर भगवाननी स्तुति कर्या पछी जीवंधर महाराजे आज्ञा लईने जिनदीक्षा माटे गणधर देवने नमस्कार को. १०१. पछी बुद्धिमान राजाए दिगम्बरी दीक्षा लईने ते महावीर भगवान आगळ बहु कठण तप कर्यु, के जेथी ज्ञानावरणीय, दर्शनावराय, वेदनी, मोहनीय, अंतराय वगेरे आठे कर्मोनो अनुक्रमे नाश थई जाय छे.१०२. ___ त्यारपछी जीवंधर महामुनि त्रणे रत्नोनी पूर्तिने माटे अनन्तज्ञान, अनन्तसुखादि गुणोथी पुष्ट थया. १०३. अने अंतमां तेमणे सिद्धपदवी प्राप्त करीने अलौकिक शोभायुक्त केवळज्ञानरुपी अतुल्य,अमुख्य अने अनन्त मोक्षलक्ष्मीनो अनुभव को.१०४.
आ रीते जे महान इच्छावाळो पुरुष ते महान सुखने प्राप्त करवानी इच्छा करे छे, के जे पवित्र जैनधर्मद्वारा बधां कोनो नाश थवाथी मळे छे, ते बुद्धिमाने कल्याणनी प्राप्तिने माटे पवित्र जैनधर्मर्नु अवलम्बन कर जोईए के जे जैनधर्म कुमतिरुपी हाथीने मारवामां सिंह समान छे. १०५. .
गुणोए करीने बधा क्षत्रीओना चूडामणि (शिरोमणि ), प्रभाव अने युवावस्थाए करीने शूरवीर, अने महान ऐश्वर्यथी कुबेरतुल्य ए राजाओना राजा जविंधर शोभायमान हो!१०६. __ आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभीसंहमूरिए रचेल क्षत्रचूडा मणि ग्रन्थमां मुक्तिश्रीलम्भ नामे अगीआरमुं प्रकरण पूर्ण थयु
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________ DECEREBERRIERRECTCCEEEEEEEEEEN. di sect अनेक पुस्तको तदन मफत!!! RECTEEEEEETECCCCCCCCCCCEEEEEEEEEEEE E EECTECREEEEEEEEEEEE REEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE दर वर्षे सचित्र खास अंक, जैन पंचांग अन अनेक चित्रो भेट आपतुं तथा धार्मिक-व्यवहारिक-ऐतिहासिक लेखो अने जैन समाचारोथी भरपुर एवं कोई पण मासिक पत्र समग्र जैनोमां प्रकट थतुं होय, तो ते सुरतथी नियमितरीते प्रकट थतुं हिंदी-गुजराती भाषानुं मासिक पत्र "दिगंबर जैन"ज छे, जेना ग्राहकोने दर वर्षे लवाजमना करतां पण वधु किंमतना अनेक हींदी-गुजराती पुस्तको तो तदन भेट अपाय छे, जेथी आ पत्र आखा हिंदुस्तानमां एटलं बधुं लोकप्रिय थइ पडयुं छे के हाल आ पत्र दिगंबर जैनोना समस्त पत्रोमां सौथी वधु ग्राहकसंख्या धरावे छे. भेटोना पोस्टेज साथे वार्षिक मुल्य रु.१-१२-० अगाउथी लेवाय छे. नमुनानो अंक अडधा आनानी टीकीट बीडवाथी तदन मफत मोकलाय छे. मेनेजर, “दिगंबर जैन", चंदावाडी-सुरत. FREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE HRESREEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN