SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हवे गृहस्थना धर्मनो स्वीकार कर, कारण के एकज वखते उच्च श्रेणी पर चढवू कठण होय छे--अनुक्रमे चढाय छे. २१. त्रण प्रकारना गुणवत, चार प्रकारना शिक्षात्रत, अने पांच प्रकारना अणुव्रतयुक्त, सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्दर्शन सम्पन्न अने दोष सहित पुरुष गृहस्थ होय छे. २२. ए गृहस्थोना आठ मूळगुण आ छे-पांच अणुव्रत अने त्रण मकारनो त्याग. १. अहिंसा ( हिंसा करवी नहि.) २. सत्य ( साचुं बोलq.) ३. अस्तेय (चोरी करवी नहि.) ४. ब्रह्मचर्य ( पोतानी स्त्री साथे पण नियमित भोग करवो. ) ५. मितवसुग्रहण ( निर्वाह मात्रने माटे धनादिनो संग्रह करवो ). ६-७-८. मदिरा, मांस अने मधनो त्याग. २३. मूळ गुणने वघारनार त्रण गुणव्रत छे. पहेलु दिग्वत, बीजं अनर्थ दंडवत अने त्रीजुं भोगोपभोग परिमाण व्रत. २४. प्रोषधोपवास, सामायिक, देशावकाशिक अने वैयावृत्य ए चार शिक्षाव्रत छे. २५. दशे दिशाओमा नियमित मर्यादा सुधी नवु, प्रयोजन विनाना पापोनो त्याग करवो, अने परिमित अन्न स्त्री वगेरे भोग उपभोगना पदार्थो- सेवन करवू, ए त्रण गुणवतोनां त्रण कार्य छे. २६. आठम चौदश वगेरे पर्वना दिवसोमां उपवास अर्थात् १६ पहोर सुधी चारे प्रकारना आहारनो त्याग करवो, आत्माना भावने सर्व जीवोमां समता वगरे. चिन्हथी निर्मळ राखवो, अने गमन करवानी निरंतर अवधि बांधवी अर्थात् दिग्वतमा ग्रहण करेली मर्यादानी अंतर्गत वर्ष, छ महिना, दिवस, पहोर वगेरे वखतना नियमथी गमन करवानी
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy