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________________ गणवा जोईए; अर्थात् कई नहि होवा छतां पण ते सर्व कई करी शके छे.३२. विद्वान जीवंधर कुमार पोताना नानाभाई अने मित्रो सहित अत्यन्त हर्षित थया, कारण के श्रेष्ठ पुरुषोने माटे समान अभिप्रायवाळाना संगमथी वधीने कोई बीजुं सुख नथी. ३३. ___त्यार पछी मित्रोद्वारा पोतार्नु कदी नहि थएलु एवं सन्मान थएवं जोईने स्वामीने संदेह थयो; अर्थात् तेमने संशय थयो के, ते आटलो आदरसत्कार केम करे छे. ? कारण के जे लोक विशेषताने ओळखनार छे, ते विशेष आकृति जोईने सन्देह करे छे. ३४. तेथी तेमणे मित्रोने एकान्तमां तेनुं कारण पूछ्यु. सत्य छे, के जेनो अभिप्राय एकज होय छे, जे एक बीजाथी पोतानी वात छुपावता नथी, तेमनामां उप्तन्न थएली मित्रता स्थिर रहे छे. ३५. त्यारे तेमांथी जे पद्मास्य नामनो प्रधान मित्र हतो, ते बोल्यो;-कारण के सज्जनोनी ए शैली छे के, ते अनुक्रमे कोई कार्यनो आरंभ करे छे. ३६. –“हे स्वामिन् ! आपना वियोगमा अमे लोक मानो के आगळ उदय थनार बहु भारे भाग्यना हस्तावलम्बन मळवाथी दग्धप्राण थईने पण जीवता रह्या छीए; अर्थात् जे पुण्यकर्मना उदयथी आपनुं आ दर्शन थवा, हतुं, तेना अवलम्बनथी अमे हजु सुधी जीवता रह्या छीए. ३७. पछी देवीए (गंधर्वदत्ताए) अमने पोताना हाथर्नु अवलम्बन आपीने बचाव्या अने धीरज आपी. त्यारे अमे घोडा वेचनारनो वेष धारण करीने त्यांथी
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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