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________________ शुं प्रसन्न थाओ छो ? तेमां आपनी शी वडाइ ?) ज्यारे सुरमंजरीनी साथे लग्न करशो त्यारे आप भाग्यशाळी थशो; अर्थात् बीजानी माफक सुरमंजरी, मळवू सहज नथी ! " ५. विदूषकना तानथी उत्तेजित थइने जीवंधर कुमारे ते मानिनी (मानवाळी) सुरमंजरीने परणवानी मनमां इच्छा करी (के जेना चूर्णने जीवंधरे सुगंधरहित खराब बताव्युं हतुं.) कारण के कोई बहानुं मळी जवाथी दुराग्रह वधी जाय छे. ६. हवे कुमारे आ विषे यक्षे बतावेल ते उपायभूत मंत्रनु स्मरण कर्यु, कारण के पंडितोनी इच्छा स्थिर अने अटल उपायथीज पूर्ण थाय छे. ७. अने उपाय जाणनार स्वामीने वृद्धनुं रुप धारण करवानो उपाय सारो लाग्यो, कारण के जीवोने बाळ अने वृद्ध दया पात्रज छ; अर्थात् लोक बाळको अने वृद्धोथी जो कोई अपराध पण थई जाय छे, तो पण तेपर दया करे छे. ८. मंत्रना महिमाथी कुमारने तेज वखते बुढापो आवी गयो. शुं निर्दोष अने प्रशंसनीय विद्या कदी निष्फळ थई शके छ ? नहि. ९. त्यार पछी ए बुड्डो ते नगरीनी चारे तरफ बिहार करवा लाग्यो; कारण के जे लोक नीतिना जाणनार छे, तेमनी वर्तगुंकपर कोई शंका करता नथी. १०. बुढ्ढा ब्राह्मणनो वेश तेणे एवो धारण कर्यो हतो के, ते ओईने विवेकी पुरुष विषयथी विरक्त थई जाय, कारण के बुढापण विरक्तिने माटेज होय छे.
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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